॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – चौदहवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)
मनु आदिके पृथक्-पृथक् कर्मोंका निरूपण
ततो धर्मं चतुष्पादं मनवो हरिणोदिताः ।
युक्ताः सञ्चारयन्ति अद्धा स्वे स्वे काले महीं नृप ॥ ५ ॥
पालयन्ति प्रजापाला यावदन्तं विभागशः ।
यज्ञभागभुजो देवा ये च तत्र अन्विताश्च तैः ॥ ६ ॥
इन्द्रो भगवता दत्तां त्रैलोक्यश्रियमूर्जिताम् ।
भुञ्जानः पाति लोकान् त्रीन् कामं लोके प्रवर्षति ॥ ७ ॥
राजन्! भगवान् की प्रेरणा से अपने-अपने मन्वन्तर में बड़ी
सावधानी से सब-के-सब मनु पृथ्वी पर चारों चरण से परिपूर्ण धर्म का अनुष्ठान करवाते
हैं ॥ ५ ॥ मनुपुत्र मन्वन्तरभर काल और देश दोनों का विभाग करके प्रजापालन तथा
धर्म-पालन का कार्य करते हैं। पञ्चमहायज्ञ आदि कर्मों में जिन ऋषि, पितर, भूत और मनुष्य
आदि का सम्बन्ध है—उनके साथ देवता उस मन्वन्तर में यज्ञ का भाग स्वीकार करते
हैं ॥ ६ ॥ इन्द्र भगवान् की दी हुई त्रिलोकी की अतुल सम्पत्ति का उपभोग और प्रजा का
पालन करते हैं। संसार में यथेष्ट वर्षा करने का अधिकार भी उन्हीं को है ॥ ७ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
Jay shree Krishna
जवाब देंहटाएंश्री हरि
जवाब देंहटाएं🌿🌹🍂 जय श्री हरि: 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
ॐ नमो नारायण
ओम नमो भगवते वासुदेवाय।जय जय श्री राधे कृष्ण।जय जय श्री राम
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌹🌺🌹
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