मंगलवार, 15 अक्तूबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण अष्टम स्कन्ध – चौदहवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – चौदहवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)

मनु आदिके पृथक्-पृथक् कर्मोंका निरूपण

श्रीराजोवाच -
मन्वन्तरेषु भगवन् यथा मन्वादयस्त्विमे ।
यस्मिन्कर्मणि ये येन नियुक्ताः तद् वदस्व मे ॥ १ ॥

श्रीऋषिरुवाच -
मनवो मनुपुत्राश्च मुनयश्च महीपते ।
इन्द्राः सुरगणाश्चैव सर्वे पुरुषशासनाः ॥ २ ॥
यज्ञादयो याः कथिताः पौरुष्यस्तनवो नृप ।
मन्वादयो जगद् यात्रां नयन्त्याभिः प्रचोदिताः ॥ ३ ॥
चतुर्युगान्ते कालेन ग्रस्तान् श्रुतिगणान्यथा ।
तपसा ऋषयोऽपश्यन् यतो धर्मः सनातनः ॥ ४ ॥

राजा परीक्षित्‌ने पूछाभगवन् ! आपके द्वारा वर्णित ये मनु, मनुपुत्र, सप्तर्षि आदि अपने-अपने मन्वन्तर में किसके द्वारा नियुक्त होकर कौन-कौन-सा काम किस प्रकार करते हैंयह आप कृपा करके मुझे बतलाइये ॥ १ ॥
श्रीशुकदेवजी कहते हैंपरीक्षित्‌ ! मनु, मनुपुत्र, सप्तर्षि और देवतासबको नियुक्त करनेवाले स्वयं भगवान्‌ ही हैं ॥ २ ॥ राजन् ! भगवान्‌ के जिन यज्ञपुरुष आदि अवतार-शरीरोंका वर्णन मैंने किया है, उन्हींकी प्रेरणासे मनु आदि विश्व-व्यवस्थाका सञ्चालन करते हैं ॥ ३ ॥ चतुर्युगी के अन्त में समय के उलट-फेरसे जब श्रुतियाँ नष्टप्राय हो जाती हैं, तब सप्तर्षिगण अपनी तपस्यासे पुन: उनका साक्षात्कार करते हैं। उन श्रुतियोंसे ही सनातनधर्म की रक्षा होती है ॥ ४ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




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