मंगलवार, 15 अक्तूबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण अष्टम स्कन्ध – तेरहवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – तेरहवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)

आगामी सात मन्वन्तरोंका वर्णन

मनुस्त्रयोदशो भाव्यो देवसावर्णिरात्मवान्
चित्रसेनविचित्राद्या देवसावर्णिदेहजाः ३०
देवाः सुकर्मसुत्राम संज्ञा इन्द्रो दिवस्पतिः
निर्मोकतत्त्वदर्शाद्या भविष्यन्त्यृषयस्तदा ३१
देवहोत्रस्य तनय उपहर्ता दिवस्पतेः
योगेश्वरो हरेरंशो बृहत्यां सम्भविष्यति ३२
मनुर्वा इन्द्र सावर्णिश्चतुर्दशम एष्यति
उरुगम्भीरबुधाद्या इन्द्र सावर्णिवीर्यजाः ३३
पवित्राश्चाक्षुषा देवाः शुचिरिन्द्रो भविष्यति
अग्निर्बाहुः शुचिः शुद्धो मागधाद्यास्तपस्विनः ३४
सत्रायणस्य तनयो बृहद्भानुस्तदा हरिः
वितानायां महाराज क्रियातन्तून्वितायिता ३५
राजंश्चतुर्दशैतानि त्रिकालानुगतानि ते
प्रोक्तान्येभिर्मितः कल्पो युगसाहस्रपर्ययः ३६

तेरहवें मनु होंगे परम जितेन्द्रिय देवसावर्णि। चित्रसेन, विचित्र आदि उनके पुत्र होंगे ॥ ३० ॥ सुकर्म और सुत्राम आदि देवगण होंगे तथा इन्द्रका नाम होगा दिवस्पति। उस समय निर्मोक और तत्त्वदर्श आदि सप्तर्षि होंगे ॥ ३१ ॥ देवहोत्रकी पत्नी बृहतीके गर्भसे योगेश्वरके रूपमें भगवान्‌का अंशावतार होगा और उसी रूपमें भगवान्‌ दिवस्पतिको इन्द्रपद देंगे ॥ ३२ ॥
महाराज ! चौदहवें मनु होंगे इन्द्रसावर्णि। उरु, गम्भीरबुद्धि आदि उनके पुत्र होंगे ॥ ३३ ॥ उस समय पवित्र, चाक्षुष आदि देवगण होंगे और इन्द्रका नाम होगा शुचि। अग्रि, बाहु, शुचि, शुद्ध और मागध आदि सप्तर्षि होंगे ॥ ३४ ॥ उस समय सत्रायणकी पत्नी वितानाके गर्भसे बृहद्भानुके रूपमें भगवान्‌ अवतार ग्रहण करेंगे तथा कर्मकाण्डका विस्तार करेंगे ॥ ३५ ॥
परीक्षित्‌ ! ये चौदह मन्वन्तर भूत, वर्तमान और भविष्यतीनों ही कालमें चलते रहते हैं। इन्हींके द्वारा एक सहस्र चतुर्युगीवाले कल्पके समयकी गणना की जाती है ॥ ३६ ॥

इति श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायामष्टमस्कन्धे
मन्वन्तरानुवर्णनं नाम त्रयोदशोऽध्यायः

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से






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