गुरुवार, 24 अक्तूबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण अष्टम स्कन्ध – सत्रहवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)


ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – सत्रहवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)

भगवान्‌ का प्रकट होकर अदिति को वर देना

अदितिरुवाच -
यज्ञेश यज्ञपुरुषाच्युत तीर्थपाद
     तीर्थश्रवः श्रवणमंगलनामधेय ।
आपन्नलोकवृजिनोपशमोदयाद्य
     शं नः कृधीश भगवन् असि दीननाथः ॥ ८ ॥
विश्वाय विश्वभवनस्थितिसंयमाय
     स्वैरं गृहीतपुरुशक्तिगुणाय भूम्ने ।
स्वस्थाय शश्वदुपबृंहितपूर्णबोध
     व्यापादितात्मतमसे हरये नमस्ते ॥ ९ ॥
आयुः परं वपुरभीष्टमतुल्यलक्ष्मीः
     द्योभूरसाः सकलयोगगुणास्त्रिवर्गः ।
ज्ञानं च केवलमनन्त भवन्ति तुष्टात्
     त्वत्तो नृणां किमु सपत्‍नजयादिराशीः ॥ १० ॥

श्रीशुक उवाच -
अदित्यैवं स्तुतो राजन् भगवान् पुष्करेक्षणः ।
क्षेत्रज्ञः सर्वभूतानां इति होवाच भारत ॥ ११ ॥

अदितिने कहाआप यज्ञके स्वामी हैं और स्वयं यज्ञ भी आप ही हैं। अच्युत ! आपके चरणकमलोंका आश्रय लेकर लोग भवसागरसे तर जाते हैं। आपके यश-कीर्तनका श्रवण भी संसारसे तारनेवाला है। आपके नामोंके श्रवणमात्रसे ही कल्याण हो जाता है। आदि पुरुष ! जो आपकी शरणमें आ जाता है, उसकी सारी विपत्तियोंका आप नाश कर देते हैं। भगवन् ! आप दीनोंके स्वामी हैं। आप हमारा कल्याण कीजिये ॥ ८ ॥ आप विश्वकी उत्पत्ति, स्थिति और प्रलयके कारण हैं और विश्वरूप भी आप ही हैं। अनन्त होनेपर भी स्वच्छन्दतासे आप अनेक शक्ति और गुणोंको स्वीकार कर लेते हैं। आप सदा अपने स्वरूपमें ही स्थित रहते हैं। नित्य-निरन्तर बढ़ते हुए पूर्ण बोधके द्वारा आप हृदयके अन्धकारको नष्ट करते रहते हैं। भगवन्! मैं आपको नमस्कार करती हूँ ॥ ९ ॥ प्रभो! अनन्त! जब आप प्रसन्न हो जाते हैं, तब मनुष्योंको ब्रह्माजीकी दीर्घ आयु, उनके ही समान दिव्य शरीर, प्रत्येक अभीष्ट वस्तु, अतुलित धन, स्वर्ग, पृथ्वी, पाताल, योगकी समस्त सिद्धियाँ, अर्थ-धर्म-कामरूप त्रिवर्ग और केवल ज्ञानतक प्राप्त हो जाता है। फिर शत्रुओंपर विजय प्राप्त करना आदि जो छोटी-छोटी कामनाएँ हैं, उनके सम्बन्धमें तो कहना ही क्या है ॥ १० ॥
श्रीशुकदेवजी कहते हैंपरीक्षित्‌ ! जब अदितिने इस प्रकार कमलनयन भगवान्‌की स्तुति की, तब समस्त प्राणियोंके हृदयमें रहकर उनकी गति-विधि जाननेवाले भगवान्‌ने यह बात कही ॥ ११ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से



5 टिप्‍पणियां:

  1. जय श्री सीताराम जय हो प्रभु जय हो

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  2. 🌼🍂💐जय श्री हरि: 🙏
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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  3. 🌷कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने
    प्रणतक्लेश नाशाय गोविन्दाय नमो नमः।।

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