॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – उन्नीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)
भगवान् वामन का बलि से तीन पग पृथ्वी माँगना,
बलि का वचन देना और शुक्राचार्यजी का उन्हें रोकना
यतो जातो हिरण्याक्षः चरन्नेक इमां महीम् ।
प्रतिवीरं दिग्विजये नाविन्दत गदायुधः ॥ ५ ॥
यं विनिर्जित्य कृच्छ्रेण विष्णुः क्ष्मोद्धार आगतम् ।
आत्मानं जयिनं मेने तद्वीर्यं भूर्यनुस्मरन् ॥ ६ ॥
निशम्य तद्वधं भ्राता हिरण्यकशिपुः पुरा ।
हन्तुं भ्रातृहणं क्रुद्धो जगाम निलयं हरेः ॥ ७ ॥
तं आयान्तं समालोक्य शूलपाणिं कृतान्तवत् ।
चिन्तयामास कालज्ञो विष्णुर्मायाविनां वरः ॥ ८ ॥
यतो यतोऽहं तत्रासौ मृत्युः प्राणभृतामिव ।
अतोऽहं अस्य हृदयं प्रवेक्ष्यामि पराग्दृशः ॥ ९ ॥
(श्रीभगवान् राजा बलि से कह रहे हैं) आपके
कुल में ही हिरण्याक्ष-जैसे वीर का जन्म हुआ था। वह वीर जब हाथ में गदा लेकर अकेला
ही दिग्विजय के लिये निकला, तब सारी पृथ्वी में घूमने पर भी उसे अपनी जोड क़ा कोई वीर न मिला ॥ ५ ॥ जब
विष्णुभगवान् जल में से पृथ्वी का उद्धार कर रहे थे, तब वह उनके सामने आया और बड़ी कठिनाईसे उन्होंने उसपर विजय
प्राप्त की। परंतु उसके बहुत बाद भी उन्हें बार-बार हिरण्याक्षकी शक्ति और बलका
स्मरण हो आया करता था और उसे जीत लेनेपर भी वे अपनेको विजयी नहीं समझते थे ॥ ६ ॥
जब हिरण्याक्षके भाई हिरण्यकशिपुको उसके वधका वृत्तान्त मालूम हुआ, तब वह अपने भाईका वध करनेवालेको मार डालनेके लिये क्रोध
करके भगवान्के निवासस्थान वैकुण्ठधाममें पहुँचा ॥ ७ ॥ विष्णुभगवान् माया
रचनेवालोंमें सबसे बड़े हैं और समयको खूब पहचानते हैं। जब उन्होंने देखा कि
हिरण्यकशिपु तो हाथमें शूल लेकर कालकी भाँति मेरे ही ऊपर धावा कर रहा है, तब उन्होंने विचार किया ॥ ८ ॥ ‘जैसे संसारके प्राणियोंके पीछे मृत्यु लगी रहती है—वैसे ही मैं जहाँ-जहाँ जाऊँगा, वहीं-वहीं यह मेरा पीछा करेगा। इसलिये मैं इसके हृदयमें
प्रवेश कर जाऊँ,
जिससे यह मुझे देख न सके; क्योंकि यह तो बहिर्मुख है, बाहरकी
वस्तुएँ ही देखता है ॥ ९ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
जय श्री सीताराम जय हो
जवाब देंहटाएंJay shree Krishna
जवाब देंहटाएंOm namo narayanay 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएं🌸🥀🍂जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌺🌹🙏
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