रविवार, 10 नवंबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण अष्टम स्कन्ध – बाईसवाँ अध्याय..(पोस्ट०५)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – बाईसवाँ अध्याय..(पोस्ट०५)

बलि के द्वारा भगवान्‌ की स्तुति और
भगवान्‌ का उस पर प्रसन्न होना

श्रीप्रह्लाद उवाच

त्वयैव दत्तं पदमैन्द्रमूर्जितं
     हृतं तदेवाद्य तथैव शोभनम् ।
मन्ये महानस्य कृतो ह्यनुग्रहो
     विभ्रंशितो यच्छ्रिय आत्ममोहनात् ॥ १६ ॥
यया हि विद्वानपि मुह्यते यतः
     तत् को विचष्टे गतिमात्मनो यथा ।
तस्मै नमस्ते जगदीश्वराय वै
     नारायणायाखिललोकसाक्षिणे ॥ १७ ॥

प्रह्लादजीने कहाप्रभो ! आपने ही बलिको यह ऐश्वर्यपूर्ण इन्द्रपद दिया था, अब आज आपने ही उसे छीन लिया। आपका देना जैसा सुन्दर है, वैसा ही सुन्दर लेना भी ! मैं समझता हूँ कि आपने इसपर बड़ी भारी कृपा की है, जो आत्माको मोहित करनेवाली राज्यलक्ष्मीसे इसे अलग कर दिया ॥ १६ ॥ प्रभो। लक्ष्मी के मद से तो विद्वान् पुरुष भी मोहित हो जाते हैं। उसके रहते भला, अपने वास्तविक स्वरूपको ठीक-ठीक कौन जान सकता है ? अत: उस लक्ष्मीको छीनकर महान् उपकार करनेवाले, समस्त जगत् के महान् ईश्वर, सबके हृदय में विराजमान और सबके परम साक्षी श्रीनारायणदेव को मैं नमस्कार करता हूँ ॥ १७ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




5 टिप्‍पणियां:

  1. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌹🌺🙏

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  2. 🌹💖🥀🍂 जय श्री हरि: 🙏
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    हे करुणामय दीन बंधु दीनानाथ
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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  3. अरुण त्रिपाठी28 जुलाई 2023 को 8:33 pm बजे

    लक्ष्मी छीनना, श्री हरि का महान अनुग्रह।

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  4. जय श्री सीताराम

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