॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – बाईसवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)
बलि के द्वारा भगवान् की स्तुति और
भगवान् का उस पर प्रसन्न होना
श्रीशुक
उवाच –
तस्यानुश्रृण्वतो
राजन् प्रह्रादस्य कृताञ्जलेः ।
हिरण्यगर्भो
भगवान् उवाच मधुसूदनम् ॥ १८ ॥
बद्धं
वीक्ष्य पतिं साध्वी तत्पत्नी भयविह्वला ।
प्राञ्जलिः
प्रणतोपेन्द्रं बभाषेऽवांमुखी नृप ॥ १९ ॥
श्रीविन्ध्यावलिरुवाच
–
क्रीडार्थमात्मन
इदं त्रिजगत्कृतं ते
स्वाम्यं तु तत्र कुधियोऽपर ईश कुर्युः ।
कर्तुः
प्रभोस्तव किमस्यत आवहन्ति
त्यक्तह्रियस्त्वदवरोपितकर्तृवादाः ॥ २० ॥
श्रीशुकदेवजी कहते हैं—परीक्षित् ! प्रह्लादजी अञ्जलि बाँधकर खड़े थे। उनके सामने ही भगवान्
ब्रह्माजीने वामनभगवान्से कुछ कहना चाहा ॥ १८ ॥ परंतु इतनेमें ही राजा बलिकी परम
साध्वी पत्नी विन्ध्यावलीने अपने पतिको बँधा देखकर भयभीत हो भगवान्के चरणोंमें
प्रणाम किया और हाथ जोड़,
मुँह नीचा कर वह भगवान्से बोली ॥ १९ ॥
विन्ध्यावली ने कहा—प्रभो ! आपने अपनी क्रीडाके लिये ही इस सम्पूर्ण जगत्की रचना की है। जो लोग
कुबुद्धि हैं,
वे ही अपनेको इसका स्वामी मानते हैं। जब आप ही इसके कर्ता, भर्ता और संहर्ता हैं, तब आपकी मायासे मोहित होकर अपनेको झूठमूठ कर्ता माननेवाले निर्लज्ज आपको
समर्पण क्या करेंगे ?
॥ २० ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
जय श्री कृष्ण
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः
Jay shree Krishna
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🌹🌺🙏🙏
जवाब देंहटाएं🌼🍂💐जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण