॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – तेईसवाँ अध्याय..(पोस्ट०३)
बलि का बन्धन से छूटकर सुतल लोक को जाना
श्रीभगवानुवाच -
वत्स प्रह्राद भद्रं ते प्रयाहि सुतलालयम् ।
मोदमानः स्वपौत्रेण ज्ञातीनां सुखमावह ॥ ९ ॥
नित्यं द्रष्टासि मां तत्र गदापाणिमवस्थितम् ।
मद्दर्शनमहाह्लाद ध्वस्तकर्मनिबन्धनः ॥ १० ॥
श्रीशुक उवाच -
आज्ञां भगवतो राजन् प्रह्रादो बलिना सह ।
बाढमित्यमलप्रज्ञो मूर्ध्न्याधाय कृताञ्जलिः ॥ ११ ॥
परिक्रम्यादिपुरुषं सर्वासुरचमूपतिः ।
प्रणतः तदनुज्ञातः प्रविवेश महाबिलम् ॥ १२ ॥
अथाहोशनसं राजन् हरिर्नारायणोऽन्तिके ।
आसीनं ऋत्विजां मध्ये सदसि ब्रह्मवादिनाम् ॥ १३ ॥
ब्रह्मन् सन्तनु शिष्यस्य कर्मच्छिद्रं वितन्वतः ।
यत् तत् कर्मसु वैषम्यं ब्रह्मदृष्टं समं भवेत् ॥ १४ ॥
श्रीभगवान् ने कहा—बेटा प्रह्लाद ! तुम्हारा कल्याण हो। अब तुम भी सुतल लोक में जाओ। वहाँ अपने
पौत्र बलिके साथ आनन्दपूर्वक रहो और जाति-बन्धुओंको सुखी करो ॥ ९ ॥ वहाँ तुम मुझे
नित्य ही गदा हाथमें लिये खड़ा देखोगे। मेरे दर्शनके परमानन्दमें मग्र रहनेके कारण
तुम्हारे सारे कर्मबन्धन नष्ट हो जायँगे ॥ १० ॥
श्रीशुकदेवजी कहते हैं—परीक्षित् ! समस्त दैत्यसेनाके स्वामी विशुद्धबुद्धि प्रह्लादजीने ‘जो आज्ञा’ कहकर, हाथ जोड़, भगवान्का
आदेश मस्तकपर चढ़ाया। फिर उन्होंने बलिके साथ आदिपुरुष भगवान्की परिक्रमा की, उन्हें प्रणाम किया और उनसे अनुमति लेकर सुतल लोककी यात्रा
की ॥ ११-१२ ॥ परीक्षित् ! उस समय भगवान् श्रीहरिने ब्रह्मवादी ऋत्विजोंकी सभामें
अपने पास ही बैठे हुए शुक्राचार्यजीसे कहा ॥ १३ ॥ ‘ब्रह्मन् ! आपका शिष्य यज्ञ कर रहा था। उसमें जो त्रुटि रह गयी है, उसे आप पूर्ण कर दीजिये। क्योंकि कर्म करनेमें जो कुछ
भूल-चूक हो जाती है,
वह ब्राह्मणोंकी कृपादृष्टिसे सुधर जाती है’ ॥ १४ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
Jay shree Krishna
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌺🌹🙏
जवाब देंहटाएंOm namo bhagawate vasudevay 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएं🌺🍂🌾जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण
🌹🍂🥀जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण
जय श्री सीताराम जय हो प्रभु
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