॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – बाईसवाँ अध्याय..(पोस्ट०३)
बलि के द्वारा भगवान् की स्तुति और
भगवान् का उस पर प्रसन्न होना
पितामहो मे भवदीयसम्मतः
प्रह्लाद
आविष्कृतसाधुवादः ।
भवद्विपक्षेण विचित्रवैशसं
संप्रापितस्त्वं परमः स्वपित्रा ॥ ८ ॥
किमात्मनानेन जहाति योऽन्ततः
किं रिक्थहारैः
स्वजनाख्यदस्युभिः ।
किं जायया संसृतिहेतुभूतया
मर्त्यस्य
गेहैः किमिहायुषो व्ययः ॥ ९ ॥
इत्थं स निश्चित्य पितामहो महान्
अगाधबोधो भवतः
पादपद्मम् ।
ध्रुवं प्रपेदे ह्यकुतोभयं जनाद्
भीतः
स्वपक्षक्षपणस्य सत्तम ॥ १० ॥
अथाहमप्यात्मरिपोस्तवान्तिकं
दैवेन नीतः
प्रसभं त्याजितश्रीः ।
इदं कृतान्तान्तिकवर्ति जीवितं
ययाध्रुवं
स्तब्धमतिर्न बुध्यते ॥ ११ ॥
प्रभो ! मेरे पितामह प्रह्लादजी की कीर्ति सारे जगत् में
प्रसिद्ध है। वे आपके भक्तों में श्रेष्ठ माने गये हैं। उनके पिता हिरण्यकशिपु ने
आपसे वैर-विरोध रखनेके कारण उन्हें अनेकों प्रकार के दु:ख दिये; परंतु वे आपके ही परायण रहे, उन्होंने अपना जीवन आपपर ही निछावर कर दिया ॥ ८ ॥ उन्होंने यह निश्चय कर लिया
कि शरीरको लेकर क्या करना है, जब यह एक-न-एक
दिन साथ छोड़ ही देता है। जो धन- सम्पत्ति लेनेके लिये स्वजन बने हुए हैं, उन डाकुओंसे अपना स्वार्थ ही क्या है ? पत्नीसे भी क्या लाभ है, जब वह जन्म-मृत्युरूप संसार के चक्रमें डालनेवाली ही है। जब मर ही जाना है, तब घरसे मोह करनेमें भी क्या स्वार्थ है ? इन सब वस्तुओंमें उलझ जाना तो केवल अपनी आयु खो देना है ॥ ९
॥ ऐसा निश्चय करके मेरे पितामह प्रह्लादजीने, यह जानते हुए भी कि आप लौकिक दृष्टिसे उनके भाई-बन्धुओंके नाश करनेवाले शत्रु हैं, फिर आपके ही भयरहित एवं अविनाशी चरण- कमलोंकी शरण ग्रहण की
थी। क्यों न हो—वे संसारसे परम विरक्त, अगाध बोधसम्पन्न,
उदार- हृदय एवं संतशिरोमणि जो हैं ॥ १० ॥ आप उस दृष्टिसे
मेरे भी शत्रु हैं,
फिर भी विधाताने मुझे बलात् ऐश्वर्य-लक्ष्मीसे अलग करके
आपके पास पहुँचा दिया है। अच्छा ही हुआ; क्योंकि ऐश्वर्य- लक्ष्मीके कारण जीवकी बुद्धि जड हो जाती है और वह यह नहीं
समझ पाता कि ‘मेरा यह जीवन मृत्युके पंजेमें पड़ा हुआ और अनित्य है’ ॥ ११ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
Jay shree Krishna
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जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌹🌺🙏
जवाब देंहटाएं🌹💖🍂जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो नारायण
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण मेरे नारायण श्रीमन्
नारायण हरि: नारायण
जय श्री सीताराम
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