शनिवार, 9 नवंबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण अष्टम स्कन्ध – बाईसवाँ अध्याय..(पोस्ट०३)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – बाईसवाँ अध्याय..(पोस्ट०३)

बलि के द्वारा भगवान्‌ की स्तुति और
भगवान्‌ का उस पर प्रसन्न होना

पितामहो मे भवदीयसम्मतः
     प्रह्लाद आविष्कृतसाधुवादः ।
भवद्विपक्षेण विचित्रवैशसं
     संप्रापितस्त्वं परमः स्वपित्रा ॥ ८ ॥
किमात्मनानेन जहाति योऽन्ततः
     किं रिक्थहारैः स्वजनाख्यदस्युभिः ।
किं जायया संसृतिहेतुभूतया
     मर्त्यस्य गेहैः किमिहायुषो व्ययः ॥ ९ ॥
इत्थं स निश्चित्य पितामहो महान्
     अगाधबोधो भवतः पादपद्मम् ।
ध्रुवं प्रपेदे ह्यकुतोभयं जनाद्
     भीतः स्वपक्षक्षपणस्य सत्तम ॥ १० ॥
अथाहमप्यात्मरिपोस्तवान्तिकं
     दैवेन नीतः प्रसभं त्याजितश्रीः ।
इदं कृतान्तान्तिकवर्ति जीवितं
     ययाध्रुवं स्तब्धमतिर्न बुध्यते ॥ ११ ॥

प्रभो ! मेरे पितामह प्रह्लादजी की कीर्ति सारे जगत् में प्रसिद्ध है। वे आपके भक्तों में श्रेष्ठ माने गये हैं। उनके पिता हिरण्यकशिपु ने आपसे वैर-विरोध रखनेके कारण उन्हें अनेकों प्रकार के दु:ख दिये; परंतु वे आपके ही परायण रहे, उन्होंने अपना जीवन आपपर ही निछावर कर दिया ॥ ८ ॥ उन्होंने यह निश्चय कर लिया कि शरीरको लेकर क्या करना है, जब यह एक-न-एक दिन साथ छोड़ ही देता है। जो धन- सम्पत्ति लेनेके लिये स्वजन बने हुए हैं, उन डाकुओंसे अपना स्वार्थ ही क्या है ? पत्नीसे भी क्या लाभ है, जब वह जन्म-मृत्युरूप संसार के चक्रमें डालनेवाली ही है। जब मर ही जाना है, तब घरसे मोह करनेमें भी क्या स्वार्थ है ? इन सब वस्तुओंमें उलझ जाना तो केवल अपनी आयु खो देना है ॥ ९ ॥ ऐसा निश्चय करके मेरे पितामह प्रह्लादजीने, यह जानते हुए भी कि आप लौकिक दृष्टिसे उनके भाई-बन्धुओंके नाश करनेवाले शत्रु हैं, फिर आपके ही भयरहित एवं अविनाशी चरण- कमलोंकी शरण ग्रहण की थी। क्यों न होवे संसारसे परम विरक्त, अगाध बोधसम्पन्न, उदार- हृदय एवं संतशिरोमणि जो हैं ॥ १० ॥ आप उस दृष्टिसे मेरे भी शत्रु हैं, फिर भी विधाताने मुझे बलात् ऐश्वर्य-लक्ष्मीसे अलग करके आपके पास पहुँचा दिया है। अच्छा ही हुआ; क्योंकि ऐश्वर्य- लक्ष्मीके कारण जीवकी बुद्धि जड हो जाती है और वह यह नहीं समझ पाता कि मेरा यह जीवन मृत्युके पंजेमें पड़ा हुआ और अनित्य है॥ ११ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




6 टिप्‍पणियां:

  1. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🙏

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  2. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌹🌺🙏

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  3. 🌹💖🍂जय श्री हरि: 🙏🙏
    ॐ नमो नारायण
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण मेरे नारायण श्रीमन्
    नारायण हरि: नारायण

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  4. जय श्री सीताराम

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