॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – बाईसवाँ अध्याय..(पोस्ट०४)
बलि के द्वारा भगवान् की स्तुति और
भगवान् का उस पर प्रसन्न होना
श्रीशुक उवाच -
तस्येत्थं भाषमाणस्य प्रह्रादो भगवत्प्रियः ।
आजगाम कुरुश्रेष्ठ राकापतिरिवोत्थितः ॥ १२ ॥
तमिन्द्रसेनः स्वपितामहं श्रिया
विराजमानं
नलिनायतेक्षणम् ।
प्रांशुं पिशंगांबरमञ्जनत्विषं
प्रलंबबाहुं
शुभगर्षभमैक्षत ॥ १३ ॥
तस्मै बलिर्वारुणपाशयन्त्रितः
समर्हणं
नोपजहार पूर्ववत् ।
ननाम मूर्ध्नाश्रुविलोललोचनः
सव्रीडनीचीनमुखो बभूव ह ॥ १४ ॥
स तत्र हासीनमुदीक्ष्य सत्पतिं
हरिं
सुनन्दाद्यनुगैरुपासितम् ।
उपेत्य भूमौ शिरसा महामना
ननाम मूर्ध्ना
पुलकाश्रुविक्लवः ॥ १५ ॥
श्रीशुकदेवजी कहते हैं—परीक्षित् ! राजा बलि इस प्रकार कह ही रहे थे कि उदय होते हुए चन्द्रमा के
समान भगवान् के प्रेम-पात्र प्रह्लादजी वहाँ आ पहुँचे ॥ १२ ॥ राजा बलि ने देखा कि
मेरे पितामह बड़े श्रीसम्पन्न हैं। कमल के समान कोमल नेत्र हैं, लंबी-लंबी भुजाएँ हैं, सुन्दर ऊँचे और श्यामल शरीरपर पीताम्बर धारण किये हुए हैं ॥ १३ ॥ बलि इस समय
वरुणपाशमें बँधे हुए थे। इसलिये प्रह्लादजी के आनेपर जैसे पहले वे उनकी पूजा किया
करते थे,
उस प्रकार न कर सके। उनके नेत्र आँसुओंसे चञ्चल हो उठे, लज्जाके मारे मुँह नीचा हो गया। उन्होंने केवल सिर झुकाकर
उन्हें नमस्कार किया ॥ १४ ॥ प्रह्लादजी ने देखा कि भक्तवत्सल भगवान् वहीं
विराजमान हैं और सुनन्द,
नन्द आदि पार्षद उनकी सेवा कर रहे हैं। प्रेमके उद्रेक से
प्रह्लादजी का शरीर पुलकित हो गया, उनकी आँखोंमें आँसू छलक आये। वे आनन्दपूर्ण हृदयसे सिर झुकाये अपने स्वामीके
पास गये और पृथ्वीपर सिर रखकर उन्हें साष्टाङ्ग प्रणाम किया ॥ १५ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
Jay shree Krishna
जवाब देंहटाएंJai Jai Shree Radhe Radhe Jai Shree Krishna 🙏💗🙏🌺👏💐🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
जवाब देंहटाएं🕉 namo bhagwate Vasudev
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌺🌹🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌺🌹🙏
जवाब देंहटाएं🌼🌿🌺जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण हरि: हरि:
जय श्री सीताराम
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