शनिवार, 23 नवंबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण नवम स्कन्ध –दूसरा अध्याय..(पोस्ट०१)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
नवम स्कन्ध दूसरा अध्याय..(पोस्ट०१)

पृषध्र, आदि मनु के पाँच पुत्रों का वंश

श्रीशुक उवाच ।
एवं गतेऽथ सुद्युम्ने मनुर्वैवस्वतः सुते ।
पुत्रकामः तपस्तेपे यमुनायां शतं समाः ॥ १ ॥
ततोऽयजन् मनुर्देवं अपत्यार्थं हरिं प्रभुम् ।
इक्ष्वाकु पूर्वजान् पुत्रान् लेभे स्वसदृशान् दश ॥ २ ॥
पृषध्रस्तु मनोः पुत्रो गोपालो गुरुणा कृतः ।
पालयामास गा यत्तो रात्र्यां वीरासनव्रतः ॥ ३ ॥
एकदा प्राविशद् गोष्ठं शार्दूलो निशि वर्षति ।
शयाना गाव उत्थाय भीतास्ता बभ्रमुर्व्रजे ॥ ४ ॥
एकां जग्राह बलवान् सा चुक्रोश भयातुरा ।
तस्यास्तु क्रन्दितं श्रुत्वा पृषध्रोऽनुससार ह ॥ ५ ॥
खड्गमादाय तरसा प्रलीनोडुगणे निशि ।
अजानन् अहनद् बभ्रोः शिरः शार्दूलशङ्‌कया ॥ ६ ॥
व्याघ्रोऽपि वृक्णश्रवणो निस्त्रिंशाग्राहतस्ततः ।
निश्चक्राम भृशं भीतो रक्तं पथि समुत्सृजन् ॥ ७ ॥
मन्यमानो हतं व्याघ्रं पृषध्रः परवीरहा ।
अद्राक्षीत् स्वहतां बभ्रुं व्युष्टायां निशि दुःखितः ॥ ८ ॥

श्रीशुकदेवजी कहते हैंपरीक्षित्‌ ! इस प्रकार जब सुद्युम्न तपस्या करनेके लिये वनमें चले गये, तब वैवस्वत मनु ने पुत्र की कामना से यमुनाके तटपर सौ वर्षतक तपस्या की ॥ १ ॥ इसके बाद उन्होंने सन्तान के लिये सर्वशक्तिमान् भगवान्‌ श्रीहरि की आराधना की और अपने ही समान दस पुत्र प्राप्त किये, जिनमें सबसे बड़े इक्ष्वाकु थे ॥ २ ॥ उन मनुपुत्रों में से एकका नाम था पृषध्र। गुरु वसिष्ठजी ने उसे गायों की रक्षा में नियुक्त कर रखा था, अत: वह रात्रि के समय बड़ी सावधानी से वीरासन से बैठा रहता और गायों की रक्षा करता ॥ ३ ॥ एक दिन रात में वर्षा हो रही थी। उस समय गायोंके झुंडमें एक बाघ घुस आया। उससे डरकर सोयी हुई गौएँ उठ खड़ी हुर्ईं। वे गोशालामें ही इधर-उधर भागने लगीं ॥ ४ ॥ बलवान् बाघने एक गायको पकड़ लिया। वह अत्यन्त भयभीत होकर चिल्लाने लगी। उसका वह क्रन्दन सुनकर पृषध्र गाय के पास दौड़ आया ॥ ५ ॥ एक तो रातका समय और दूसरे घनघोर घटाओं से आच्छादित होनेके कारण तारे भी नहीं दीखते थे। उसने हाथमें तलवार उठाकर अनजानमें ही बड़े वेगसे गायका सिर काट दिया। वह समझ रहा था कि यही बाघ है ॥ ६ ॥ तलवार की नोक से बाघका भी कान कट गया, वह अत्यन्त भयभीत होकर रास्ते में खून गिराता हुआ वहाँसे निकल भागा ॥ ७ ॥ शत्रुदमन पृषध्र ने यह समझा कि बाघ मर गया। परंतु रात बीतने पर उसने देखा कि मैंने तो गाय को ही मार डाला है, इससे उसे बड़ा दु:ख हुआ ॥ ८ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से



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