॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – बीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०३)
भगवान् वामनजी का विराट् रूप होकर
दो ही पग से पृथ्वी और स्वर्ग को नाप लेना
सुलभा युधि विप्रर्षे ह्यनिवृत्तास्तनुत्यजः ।
न तथा तीर्थ आयाते श्रद्धया ये धनत्यजः ॥ ९ ॥
मनस्विनः कारुणिकस्य शोभनं
यदर्थिकामोपनयेन दुर्गतिः ।
कुतः पुनर्ब्रह्मविदां भवादृशां
ततो वटोरस्य
ददामि वाञ्छितम् ॥ १० ॥
यजन्ति यज्ञं क्रतुभिर्यमादृता
भवन्त
आम्नायविधानकोविदाः ।
स एव विष्णुर्वरदोऽस्तु वा परो
दास्याम्यमुष्मै क्षितिमीप्सितां मुने ॥ ११ ॥
यद्यपि असौ अधर्मेण मां बध्नीयाद् अनागसम् ।
तथाप्येनं न हिंसिष्ये भीतं ब्रह्मतनुं रिपुम् ॥ १२ ॥
एष वा उत्तमश्लोको न जिहासति यद् यशः ।
हत्वा मैनां हरेद् युद्धे शयीत निहतो मया ॥ १३ ॥
गुरुदेव ! ऐसे लोग संसार में बहुत हैं, जो युद्ध में पीठ न दिखाकर अपने प्राणोंकी बलि चढ़ा देते
हैं;
परंतु ऐसे लोग बहुत दुर्लभ हैं, जो सत्पात्रके प्राप्त होनेपर श्रद्धाके साथ धनका दान करें
॥ ९ ॥ गुरुदेव ! यदि उदार और करुणाशील पुरुष अपात्र याचककी कामना पूर्ण करके दुर्गति
भोगता है,
तो वह दुर्गति भी उसके लिये शोभाकी बात होती है। फिर
आप-जैसे ब्रह्मवेत्ता पुरुषोंको दान करनेसे दु:ख प्राप्त हो तो उसके लिये क्या
कहना है। इसलिये मैं इस ब्रह्मचारीकी अभिलाषा अवश्य पूर्ण करूँगा ॥ १० ॥ महर्षे !
वेदविधिके जाननेवाले आपलोग बड़े आदरसे यज्ञ-यागादिके द्वारा जिनकी आराधना करते हैं—वे वरदानी विष्णु ही इस रूपमें हों अथवा कोई दूसरा हो, मैं इनकी इच्छाके अनुसार इन्हें पृथ्वीका दान करूँगा ॥ ११ ॥
यदि मेरे अपराध न करनेपर भी ये अधर्मसे मुझे बाँध लेंगे, तब भी मैं इनका अनिष्ट नहीं चाहूँगा। क्योंकि मेरे शत्रु
होनेपर भी इन्होंने भयभीत होकर ब्राह्मणका शरीर धारण किया है ॥ १२ ॥ यदि ये
पवित्रकीर्ति भगवान् विष्णु ही हैं तो अपना यश नहीं खोना चाहेंगे (अपनी माँगी हुई
वस्तु लेकर ही रहेंगे)’। मुझे युद्धमें मारकर भी पृथ्वी छीन सकते हैं और यदि
कदाचित् ये कोई दूसरे ही हैं, तो मेरे
बाणोंकी चोट से सदा के लिये रणभूमि में सो जायँगे ॥ १३ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
जवाब देंहटाएंJay shree Krishna
जवाब देंहटाएंजय श्री सीताराम
जवाब देंहटाएं🌷💖🥀जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री सर्वात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण