सोमवार, 4 नवंबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण अष्टम स्कन्ध – बीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०५)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – बीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०५)

भगवान्‌ वामनजी का विराट् रूप होकर
दो ही पग से पृथ्वी और स्वर्ग को नाप लेना

तद्वामनं रूपमवर्धताद्‍भुतं
     हरेरनन्तस्य गुणत्रयात्मकम् ।
भूः खं दिशो द्यौर्विवराः पयोधयः
     तिर्यङ्‌नृदेवा ऋषयो यदासत ॥ २१ ॥
काये बलिस्तस्य महाविभूतेः
     सहर्त्विगाचार्यसदस्य एतत् ।
ददर्श विश्वं त्रिगुणं गुणात्मके
     भूतेन्द्रियार्थाशयजीवयुक्तम् ॥ २२ ॥
रसामचष्टाङ्‌घ्रितलेऽथ पादयोः
     महीं महीध्रान्पुरुषस्य जंघयोः ।
पतत्त्रिणो जानुनि विश्वमूर्तेः
     ऊर्वोर्गणं मारुतमिन्द्रसेनः ॥ २३ ॥

इसी समय एक बड़ी अद्भुत घटना घट गयी। अनन्त भगवान्‌ का वह त्रिगुणात्मक वामनरूप बढऩे लगा। वह यहाँतक बढ़ा कि पृथ्वी, आकाश, दिशाएँ, स्वर्ग, पाताल, समुद्र, पशु-पक्षी, मनुष्य, देवता और ऋषिसब-के-सब उसी में समा गये ॥ २१ ॥ ऋत्विज्, आचार्य और सदस्यों  साथ बलि ने समस्त ऐश्वर्यों के एकमात्र स्वामी भगवान्‌ के उस त्रिगुणात्मक शरीर में पञ्चभूत, इन्द्रिय, उनके विषय, अन्त:करण और जीवोंके साथ वह सम्पूर्ण त्रिगुणमय जगत् देखा ॥ २२ ॥ राजा बलिने विश्व- रूप भगवान्‌के चरणतलमें रसातल, चरणोंमें पृथ्वी, ङ्क्षपडलियोंमें पर्वत, घुटनोंमें पक्षी और जाँघों में मरुद्गण को देखा ॥ २३ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




5 टिप्‍पणियां:

  1. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

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  2. 🌷नमो नारायणाय🌷

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  3. जय श्री सीताराम

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  4. 🌹💖🥀जय श्री हरि: 🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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