॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – बीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०५)
भगवान् वामनजी का विराट् रूप होकर
दो ही पग से पृथ्वी और स्वर्ग को नाप लेना
तद्वामनं रूपमवर्धताद्भुतं
हरेरनन्तस्य
गुणत्रयात्मकम् ।
भूः खं दिशो द्यौर्विवराः पयोधयः
तिर्यङ्नृदेवा
ऋषयो यदासत ॥ २१ ॥
काये बलिस्तस्य महाविभूतेः
सहर्त्विगाचार्यसदस्य एतत् ।
ददर्श विश्वं त्रिगुणं गुणात्मके
भूतेन्द्रियार्थाशयजीवयुक्तम् ॥ २२ ॥
रसामचष्टाङ्घ्रितलेऽथ पादयोः
महीं
महीध्रान्पुरुषस्य जंघयोः ।
पतत्त्रिणो जानुनि विश्वमूर्तेः
ऊर्वोर्गणं
मारुतमिन्द्रसेनः ॥ २३ ॥
इसी समय एक बड़ी अद्भुत घटना घट गयी। अनन्त भगवान् का वह
त्रिगुणात्मक वामनरूप बढऩे लगा। वह यहाँतक बढ़ा कि पृथ्वी, आकाश, दिशाएँ, स्वर्ग, पाताल, समुद्र, पशु-पक्षी, मनुष्य, देवता और ऋषि—सब-के-सब उसी में समा गये ॥ २१ ॥ ऋत्विज्, आचार्य और सदस्यों साथ बलि ने समस्त ऐश्वर्यों के एकमात्र स्वामी
भगवान् के उस त्रिगुणात्मक शरीर में पञ्चभूत, इन्द्रिय,
उनके विषय, अन्त:करण और
जीवोंके साथ वह सम्पूर्ण त्रिगुणमय जगत् देखा ॥ २२ ॥ राजा बलिने विश्व- रूप भगवान्के
चरणतलमें रसातल,
चरणोंमें पृथ्वी, ङ्क्षपडलियोंमें पर्वत,
घुटनोंमें पक्षी और जाँघों में मरुद्गण को देखा ॥ २३ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
जवाब देंहटाएंJay shree Krishna
जवाब देंहटाएं🌷नमो नारायणाय🌷
जवाब देंहटाएंजय श्री सीताराम
जवाब देंहटाएं🌹💖🥀जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण