॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
नवम स्कन्ध –तीसरा अध्याय..(पोस्ट०४)
महर्षि च्यवन और सुकन्या का चरित्र,
राजा शर्याति का वंश
सोमेन याजयन् वीरं ग्रहं सोमस्य चाग्रहीत् ।
असोमपोः अपि अश्विनोः च्यवनः स्वेन तेजसा ॥ २४ ॥
हन्तुं तमाददे वज्रं सद्यो मन्युरमर्षितः ।
सवज्रं स्तम्भयामास भुजं इन्द्रस्य भार्गवः ॥ २५ ॥
अन्वजानन् ततः सर्वे ग्रहं सोमस्य चाश्विनोः ।
भिषजाविति यत् पूर्वं सोमाहुत्या बहिष्कृतौ ॥ २६ ॥
उत्तानबर्हिरानर्तो भूरिषेण इति त्रयः ।
शर्यातेरभवन् पुत्रा आनर्ताद् रेवतोऽभवत् ॥ २७ ॥
सोऽन्तःसमुद्रे नगरीं विनिर्माय कुशस्थलीम् ।
आस्थितोऽभुङ्क्त विषयान् आनर्तादीन् अरिन्दम ॥ २८ ॥
तस्य पुत्रशतं जज्ञे ककुद्मि ज्येष्ठमुत्तमम् ।
ककुद्मी रेवतीं कन्यां स्वां आदाय विभुं गतः ॥ २९ ॥
पुत्र्या वरं परिप्रष्टुं ब्रह्मलोकं अपावृतम् ।
आवर्तमाने गान्धर्वे स्थितोऽलब्धक्षणः क्षणम् ॥ ३० ॥
तदन्त आद्यमानम्य स्वाभिप्रायं न्यवेदयत् ।
तत् श्रुत्वा भगवान् ब्रह्मा प्रहस्य तमुवाच ह ॥ ३१ ॥
महर्षि च्यवन ने वीर शर्यातिसे सोमयज्ञ का अनुष्ठान करवाया और सोमपान के अधिकारी न होने पर भी अपने प्रभाव से अश्विनीकुमारोंको सोमपान कराया ॥ २४ ॥ इन्द्र बहुत जल्दी क्रोध कर बैठते हैं। इसलिये उनसे यह सहा न गया। उन्होंने चिढक़र शर्याति को मारनेके लिये वज्र उठाया। महर्षि च्यवनने वज्रके साथ उनके हाथको वहीं स्तम्भित कर दिया ॥ २५ ॥ तब सब देवताओंने अश्विनीकुमारोंको सोमका भाग देना स्वीकार कर लिया। उन लोगोंने वैद्य होनेके कारण पहले अश्विनीकुमारों का सोमपान से बहिष्कार कर रखा था ॥ २६ ॥
परीक्षित् ! शर्याति के तीन पुत्र थे—उत्तानबर्हि, आनर्त और भूरिषेण। आनर्त से रेवत हुए ॥२७॥ महाराज ! रेवतने समुद्रके भीतर कुशस्थली नामकी एक नगरी बसायी थी। उसीमें रहकर वे आनर्त आदि देशोंका राज्य करते थे ॥ २८ ॥ उनके सौ श्रेष्ठ पुत्र थे, जिनमें सबसे बड़े थे ककुद्मी। ककुद्मी अपनी कन्या रेवतीको लेकर उसके लिये वर पूछनेके उद्देश्यसे ब्रह्माजीके पास गये। उस समय ब्रह्मलोकका रास्ता ऐसे लोगोंके लिये बेरोक-टोक था। ब्रह्मलोकमें गाने-बजानेकी धूम मची हुई थी। बातचीतके लिये अवसर न मिलनके कारण वे कुछ क्षण वहीं ठहर गये ॥ २९-३० ॥ उत्सवके अन्तमें ब्रह्माजीको नमस्कार करके उन्होंने अपना अभिप्राय निवेदन किया। उनकी बात सुनकर भगवान् ब्रह्माजीने हँसकर उनसे कहा — ॥ ३१ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
Jay ßhree Krishna
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌺🌹🙏
जवाब देंहटाएं🌹🍂🌺जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण
जय श्री सीताराम
जवाब देंहटाएं