गुरुवार, 28 नवंबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण नवम स्कन्ध –तीसरा अध्याय..(पोस्ट०५)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
नवम स्कन्ध तीसरा अध्याय..(पोस्ट०५)

महर्षि च्यवन और सुकन्या का चरित्र, राजा शर्याति का वंश

अहो राजन् निरुद्धास्ते कालेन हृदि ये कृताः ।
तत्पुत्रपौत्र नप्तॄणां गोत्राणि च न श्रृण्महे ॥ ३२ ॥
कालोऽभियातस्त्रिणव चतुर्युगविकल्पितः ।
तद्‍गच्छ देवदेवांशो बलदेवो महाबलः ॥ ३३ ॥
कन्यारत्‍नमिदं राजन् नररत्‍नाय देहि भोः ।
भुवो भारावताराय भगवान् भूतभावनः ॥ ३४ ॥
अवतीर्णो निजांशेन पुण्यश्रवणकीर्तनः ।
इत्यादिष्टोऽभिवन्द्याजं नृपः स्वपुरमागतः ।
त्यक्तं पुण्यजनत्रासाद्‍भ्रातृभिर्दिक्ष्ववस्थितैः ॥ ३५ ॥
सुतां दत्त्वानवद्याङ्‌गीं बलाय बलशालिने ।
बदर्याख्यं गतो राजा तप्तुं नारायणाश्रमम् ॥ ३६ ॥



महाराज ! तुमने अपने मनमें जिन लोगोंके विषयमें सोच रखा था, वे सब तो काल के गालमें चले गये। अब उनके पुत्र, पौत्र अथवा नातियोंकी तो बात ही क्या है, गोत्रोंके नाम भी नहीं सुनायी पड़ते ॥ ३२ ॥ इस बीचमें सत्ताईस चतुर्युगीका समय बीत चुका है। इसलिये तुम जाओ। इस समय भगवान्‌ नारायणके अंशावतार महाबली बलदेवजी पृथ्वीपर विद्यमान हैं ॥ ३३ ॥ राजन् ! उन्हीं नररत्न को यह कन्यारत्न तुम समर्पित कर दो। जिनके नाम, लीला आदिका श्रवण-कीर्तन बड़ा ही पवित्र हैवे ही प्राणियोंके जीवनसर्वस्व भगवान्‌ पृथ्वीका भार उतारनेके लिये अपने अंशसे अवतीर्ण हुए हैं।राजा ककुद्मीने ब्रह्माजीका यह आदेश प्राप्त करके उनके चरणोंकी वन्दना की और अपने नगरमें चले आये। उनके वंशजोंने यक्षोंके भयसे वह नगरी छोड़ दी थी और जहाँ-तहाँ यों ही निवास कर रहे थे ॥ ३४-३५ ॥ राजा ककुद्मी ने अपनी सर्वाङ्गसुन्दरी पुत्री परम बलशाली बलरामजी को सौंप दी और स्वयं तपस्या करनेके लिये भगवान्‌ नर-नारायणके आश्रम बदरीवन की ओर चल दिये ॥ ३६ ॥

इति श्रीमद्‍भागवते महापुराणे पारमहंस्यां
संहितायां नवमस्कन्धे तृतीयोऽध्यायः ॥ ३ ॥

हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




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