॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
नवम स्कन्ध –चौथा अध्याय..(पोस्ट०१)
नाभाग और अम्बरीष की कथा
श्रीशुक उवाच ।
नाभागो नभगापत्यं
यं ततं भ्रातरः कविम् ।
यविष्ठं व्यभजन्
दायं ब्रह्मचारिणमागतम् ॥ १ ॥
भ्रातरोऽभाङ्क्त
किं मह्यं भजाम पितरं तव ।
त्वां
ममार्यास्तताभाङ्क्षुः मा पुत्रक तदादृथाः ॥ २ ॥
इमे अंगिरसः सत्रं
आसतेऽद्य सुमेधसः ।
षष्ठं षष्ठं
उपेत्याहः कवे मुह्यन्ति कर्मणि ॥ ३ ॥
तांन् त्वं शंसय
सूक्ते द्वे वैश्वदेवे महात्मनः ।
ते स्वर्यन्तो धनं
सत्र परिशेषितमात्मनः ॥ ४ ॥
दास्यन्ति तेऽथ तान्
गच्छ तथा स कृतवान् यथा ।
तस्मै दत्त्वा ययुः
स्वर्गं ते सत्रपरिशेषणम् ॥ ५ ॥
श्रीशुकदेवजी कहते हैं—परीक्षित् ! मनुपुत्र नभग का पुत्र था नाभाग । जब वह दीर्घकाल तक ब्रह्मचर्यका पालन करके लौटा, तब बड़े भाइयोंने अपनेसे छोटे किन्तु विद्वान् भाई को हिस्से में केवल पिता को ही दिया (सम्पत्ति तो उन्होंने पहले ही आपसमें बाँट ली थी) ॥ १ ॥ उसने अपने भाइयों से पूछा—‘भाइयो ! आपलोगों ने मुझे हिस्सेमें क्या दिया है ?’ तब उन्होंने उत्तर दिया कि ‘हम तुम्हारे हिस्से में पिताजी को ही तुम्हें देते हैं।’ उसने अपने पिता से जाकर कहा—‘पिताजी ! मेरे बड़े भाइयोंने हिस्सेमें मेरे लिये आपको ही दिया है।’ पिताने कहा—‘बेटा ! तुम उनकी बात न मानो ॥ २ ॥ देखो, ये बड़े बुद्धिमान् आङ्गिरस-गोत्र के ब्राह्मण इस समय एक बहुत बड़ा यज्ञ कर रहे हैं। परंतु मेरे विद्वान् पुत्र ! वे प्रत्येक छठे दिन अपने कर्ममें भूल कर बैठते हैं ॥ ३ ॥ तुम उन महात्माओंके पास जाकर उन्हें वैश्वदेवसम्बन्धी दो सूक्त बतला दो; जब वे स्वर्ग जाने लगेंगे, तब यज्ञसे बचा हुआ अपना सारा धन तुम्हें दे देंगे। इसलिये अब तुम उन्हींके पास चले जाओ।’ उसने अपने पिताके आज्ञानुसार वैसा ही किया। उन आङ्गिरसगोत्री ब्राह्मणों ने भी यज्ञका बचा हुआ धन उसे दे दिया और वे स्वर्ग में चले गये ॥ ४-५ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
Jay shree Krishna
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌺
जवाब देंहटाएं🚩नमोस्तुते भगवते वासुदेव🚩
जवाब देंहटाएंजय श्री सीताराम
जवाब देंहटाएं🌺🍂🌼🥀जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण
Jay shreekrishna
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