गुरुवार, 7 नवंबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण अष्टम स्कन्ध – इक्कीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०४)



॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – इक्कीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०४)

बलि का बाँधा जाना

ते सर्वे वामनं हन्तुं शूलपट्टिशपाणयः
अनिच्छन्तो बले राजन्प्राद्रवन्जातमन्यवः ॥ १४ ॥
तानभिद्रवतो दृष्ट्वा दितिजानीकपान्नृप
प्रहस्यानुचरा विष्णोः प्रत्यषेधन्नुदायुधाः ॥ १५ ॥
नन्दः सुनन्दोऽथ जयो विजयः प्रबलो बलः
कुमुदः कुमुदाक्षश्च विष्वक्सेनः पतत्त्रिराट् ॥ १६ ॥
जयन्तः श्रुतदेवश्च पुष्पदन्तोऽथ सात्वतः
सर्वे नागायुतप्राणाश्चमूं ते जघ्नुरासुरीम् ॥ १७ ॥
हन्यमानान्स्वकान्दृष्ट्वा पुरुषानुचरैर्बलिः
वारयामास संरब्धान्काव्यशापमनुस्मरन् ॥ १८ ॥
हे विप्रचित्ते हे राहो हे नेमे श्रूयतां वचः
मा युध्यत निवर्तध्वं न नः कालोऽयमर्थकृत् ॥ १९ ॥
यः प्रभुः सर्वभूतानां सुखदुःखोपपत्तये
तं नातिवर्तितुं दैत्याः पौरुषैरीश्वरः पुमान् ॥ २० ॥
यो नो भवाय प्रागासीदभवाय दिवौकसाम्
स एव भगवानद्य वर्तते तद्विपर्ययम् ॥ २१ ॥
बलेन सचिवैर्बुद्ध्या दुर्गैर्मन्त्रौषधादिभिः
सामादिभिरुपायैश्च कालं नात्येति वै जनः ॥ २२ ॥
भवद्भिर्निर्जिता ह्येते बहुशोऽनुचरा हरेः
दैवेनर्द्धैस्त एवाद्य युधि जित्वा नदन्ति नः ॥ २३ ॥
एतान्वयं विजेष्यामो यदि दैवं प्रसीदति
तस्मात्कालं प्रतीक्षध्वं यो नोऽर्थत्वाय कल्पते ॥ २४ ॥

परीक्षित्‌ ! राजा बलिकी इच्छा न होनेपर भी वे सब बड़े क्रोध से शूल, पट्टिश आदि ले-लेकर वामन भगवान्‌ को मारने के लिये टूट पड़े ॥ १४ ॥ परीक्षित्‌ ! जब विष्णु- भगवान्‌ के पार्षदों ने देखा कि दैत्यों के सेनापति आक्रमण करनेके लिये दौड़े आ रहे हैं, तब उन्होंने हँसकर अपने-अपने शस्त्र उठा लिये और उन्हें रोक दिया ॥ १५ ॥ नन्द, सुनन्द, जय, विजय, प्रबल, बल, कुमुद, कुमुदाक्ष, विष्वक्सेन, गरुड, जयन्त, श्रुतदेव, पुष्पदन्त और सात्वतये सभी भगवान्‌के पार्षद दस-दस हजार हाथियोंका बल रखते हैं। वे असुरोंकी सेनाका संहार करने लगे ॥ १६-१७ ॥ जब राजा बलिने देखा कि भगवान्‌के पार्षद मेरे सैनिकोंको मार रहे हैं और वे भी क्रोधमें भरकर उनसे लडऩेके लिये तैयार हो रहे हैं, तो उन्होंने शुक्राचार्यके शापका स्मरण करके उन्हें युद्ध करनेसे रोक दिया ॥ १८ ॥ उन्होंने विप्रचित्ति, राहु, नेमि आदि दैत्योंको सम्बोधित करके कहा—‘भाइयो ! मेरी बात सुनो। लड़ो मत, वापस लौट आओ। यह समय हमारे कार्यके अनुकूल नहीं है ॥ १९ ॥ दैत्यो ! जो काल समस्त प्राणियोंको सुख और दु:ख देनेकी सामथ्र्य रखता हैउसे यदि कोई पुरुष चाहे कि मैं अपने प्रयत्नोंसे दबा दूँ, तो यह उसकी शक्तिसे बाहर है ॥ २० ॥ जो पहले हमारी उन्नति और देवताओंकी अवनतिके कारण हुए थे, वही कालभगवान्‌ अब उनकी उन्नति और हमारी अवनतिके कारण हो रहे हैं ॥ २१ ॥ बल, मन्त्री, बुद्धि, दुर्ग, मन्त्र, ओषधि और सामादि उपायइनमेंसे किसी भी साधनके द्वारा अथवा सबके द्वारा मनुष्य कालपर विजय नहीं प्राप्त कर सकता ॥ २२ ॥ जब दैव तुमलोगोंके अनुकूल था, तब तुमलोगोंने भगवान्‌के इन पार्षदोंको कई बार जीत लिया था। पर देखो, आज वे ही युद्धमें हमपर विजय प्राप्त करके सिंहनाद कर रहे हैं ॥ २३ ॥ यदि दैव हमारे अनुकूल हो जायगा, तो हम भी इन्हें जीत लेंगे। इसलिये उस समयकी प्रतीक्षा करो, जो हमारी कार्यसिद्धिके लिये अनुकूल हो॥ २४ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से





4 टिप्‍पणियां:

  1. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

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  2. जय श्री सीताराम

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  3. 🌼🎋🌹जय श्री हरि: 🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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