॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
नवम स्कन्ध –आठवाँ अध्याय..(पोस्ट०३)
सगर-चरित्र
योऽसमञ्जस इत्युक्तः स केशिन्या नृपात्मजः ।
तस्य पुत्रोऽंशुमान्नाम पितामहहिते रतः ॥ १५ ॥
असमञ्जस आत्मानं दर्शयन् असमञ्जसम् ।
जातिस्मरः पुरा संगाद् योगी योगाद् विचालितः ॥ १६ ॥
आचरन् गर्हितं लोके ज्ञातीनां कर्म विप्रियम् ।
सरय्वां क्रीडतो बालान् प्रास्यदुद्वेजयञ्जनम् ॥ १७ ॥
एवंवृत्तः परित्यक्तः पित्रा स्नेहमपोह्य वै ।
योगैश्वर्येण बालान् तान् दर्शयित्वा ततो ययौ ॥ १८ ॥
अयोध्यावासिनः सर्वे बालकान् पुनरागतान् ।
दृष्ट्वा विसिस्मिरे राजन्राजा चाप्यन्वतप्यत ॥ १९ ॥
अंशुमांश्चोदितो राज्ञा तुरगान्वेषणे ययौ ।
पितृव्यखातानुपथं भस्मान्ति ददृशे हयम् ॥ २० ॥
तत्रासीनं मुनिं वीक्ष्य कपिलाख्यं अधोक्षजम् ।
अस्तौत् समाहितमनाः प्राञ्जलिः प्रणतो महान् ॥ २१ ॥
सगर की दूसरी पत्नी का नाम था केशिनी। उसके गर्भ से उन्हें असमञ्जस नाम का पुत्र हुआ था। असमञ्जस के पुत्र का नाम था अंशुमान्। वह अपने दादा सगर की आज्ञाओं के पालन तथा उन्हींकी सेवामें लगा रहता ॥ १५ ॥ असमञ्जस पहले जन्ममें योगी थे। सङ्ग के कारण वे योगसे विचलित हो गये थे, परंतु अब भी उन्हें अपने पूर्वजन्मका स्मरण बना हुआ था। इसलिये वे ऐसे काम किया करते थे, जिनसे भाई-बन्धु उन्हें प्रिय न समझें। वे कभी-कभी तो अत्यन्त निन्दित कर्म कर बैठते और अपनेको पागल-सा दिखलाते—यहाँतक कि खेलते हुए बच्चोंको सरयूमें डाल देते ! इस प्रकार उन्होंने लोगों को उद्विग्न कर दिया था ॥ १६-१७ ॥ अन्तमें उनकी ऐसी करतूत देखकर पिताने पुत्र-स्नेहको तिलाञ्जलि दे दी और उन्हें त्याग दिया। तदनन्तर असमञ्जस ने अपने योगबलसे उन सब बालकोंको जीवित कर दिया और अपने पिताको दिखाकर वे वनमें चले गये ॥ १८ ॥ अयोध्याके नागरिकोंने जब देखा कि हमारे बालक तो फिर लौट आये, तब उन्हें असीम आश्चर्य हुआ और राजा सगरको भी बड़ा पश्चात्ताप हुआ ॥ १९ ॥ इसके बाद राजा सगरकी आज्ञासे अंशुमान् घोड़ेको ढूँढऩेके लिये निकले। उन्होंने अपने चाचाओंके द्वारा खोदे हुए समुद्रके किनारे-किनारे चलकर उनके शरीरके भस्मके पास ही घोड़ेको देखा ॥ २० ॥ वहीं भगवान् के अवतार कपिल मुनि बैठे हुए थे। उनको देखकर उदारहृदय अंशुमान् ने उनके चरणोंमें प्रणाम किया और हाथ जोडक़र एकाग्र मनसे उनकी स्तुति की ॥ २१ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
Jay shree Krishna
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
जवाब देंहटाएंजय श्री सीताराम जय हो प्रभु जी
जवाब देंहटाएं🌾🌺🌾जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय