॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
नवम स्कन्ध –आठवाँ अध्याय..(पोस्ट०५)
सगर-चरित्र
श्रीशुक उवाच ।
इत्थं गीतानुभावस्तं भगवान् कपिलो मुनिः ।
अंशुमन्तं उवाचेदं अनुग्राह्य धिया नृप ॥ २८ ॥
श्रीभगवानुवाच ।
अश्वोऽयं नीयतां वत्स पितामहपशुस्तव ।
इमे च पितरो दग्धा गंगाम्भोऽर्हन्ति नेतरत् ॥ २९ ॥
तं परिक्रम्य शिरसा प्रसाद्य हयमानयत् ।
सगरस्तेन पशुना यज्ञशेषं समापयत् ॥ ३० ॥
राज्यं अंशुमते न्यस्य निःस्पृहो मुक्तबन्धनः ।
और्वोपदिष्टमार्गेण लेभे गतिमनुत्तमाम् ॥ ३१ ॥
श्रीशुकदेवजी कहते हैं—परीक्षित्
! जब अंशुमान् ने भगवान् कपिलमुनि के प्रभावका इस प्रकार गान किया, तब उन्होंने मन-ही-मन अंशुमान् पर बड़ा अनुग्रह किया और कहा— ॥ २८ ॥
श्रीभगवान्ने कहा—‘बेटा ! यह घोड़ा तुम्हारे पितामहका यज्ञपशु है। इसे तुम ले जाओ। तुम्हारे जले हुए चाचाओं का उद्धार केवल गङ्गाजल से होगा, और कोई उपाय नहीं है’ ॥ २९ ॥ अंशुमान् ने बड़ी नम्रतासे उन्हें प्रसन्न करके उनकी परिक्रमा की और वे घोड़े को ले आये। सगर ने उस यज्ञपशु के द्वारा यज्ञकी शेष क्रिया समाप्त की ॥ ३० ॥ तब राजा सगर ने अंशुमान् को राज्य का भार सौंप दिया और वे स्वयं विषयोंसे नि:स्पृह एवं बन्धनमुक्त हो गये। उन्होंने महर्षि और्व के बतलाये हुए मार्गसे परमपदकी प्राप्ति की ॥ ३१ ॥
श्रीभगवान्ने कहा—‘बेटा ! यह घोड़ा तुम्हारे पितामहका यज्ञपशु है। इसे तुम ले जाओ। तुम्हारे जले हुए चाचाओं का उद्धार केवल गङ्गाजल से होगा, और कोई उपाय नहीं है’ ॥ २९ ॥ अंशुमान् ने बड़ी नम्रतासे उन्हें प्रसन्न करके उनकी परिक्रमा की और वे घोड़े को ले आये। सगर ने उस यज्ञपशु के द्वारा यज्ञकी शेष क्रिया समाप्त की ॥ ३० ॥ तब राजा सगर ने अंशुमान् को राज्य का भार सौंप दिया और वे स्वयं विषयोंसे नि:स्पृह एवं बन्धनमुक्त हो गये। उन्होंने महर्षि और्व के बतलाये हुए मार्गसे परमपदकी प्राप्ति की ॥ ३१ ॥
इति श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां
संहितायां नवमस्कन्धे अष्टमोऽध्यायः ॥ ८ ॥
हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
Jay shree Krishna
जवाब देंहटाएंजय श्री सीताराम
जवाब देंहटाएंजय श्री सीताराम
जवाब देंहटाएं🌸🍂🥀जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय