शुक्रवार, 13 दिसंबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण नवम स्कन्ध –आठवाँ अध्याय..(पोस्ट०५)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
नवम स्कन्ध आठवाँ अध्याय..(पोस्ट०५)

सगर-चरित्र

श्रीशुक उवाच ।

इत्थं गीतानुभावस्तं भगवान् कपिलो मुनिः ।
अंशुमन्तं उवाचेदं अनुग्राह्य धिया नृप ॥ २८ ॥

श्रीभगवानुवाच ।

अश्वोऽयं नीयतां वत्स पितामहपशुस्तव ।
इमे च पितरो दग्धा गंगाम्भोऽर्हन्ति नेतरत् ॥ २९ ॥
तं परिक्रम्य शिरसा प्रसाद्य हयमानयत् ।
सगरस्तेन पशुना यज्ञशेषं समापयत् ॥ ३० ॥
राज्यं अंशुमते न्यस्य निःस्पृहो मुक्तबन्धनः ।
और्वोपदिष्टमार्गेण लेभे गतिमनुत्तमाम् ॥ ३१ ॥

श्रीशुकदेवजी कहते हैंपरीक्षित्‌ ! जब अंशुमान् ने भगवान्‌ कपिलमुनि के प्रभावका इस प्रकार गान किया, तब उन्होंने मन-ही-मन अंशुमान् पर  बड़ा अनुग्रह किया और कहा॥ २८ ॥
श्रीभगवान्‌ने कहा—‘बेटा ! यह घोड़ा तुम्हारे पितामहका यज्ञपशु है। इसे तुम ले जाओ। तुम्हारे जले हुए चाचाओं का उद्धार केवल गङ्गाजल से होगा, और कोई उपाय नहीं है॥ २९ ॥ अंशुमान् ने बड़ी नम्रतासे उन्हें प्रसन्न करके उनकी परिक्रमा की और वे घोड़े को ले आये। सगर ने उस यज्ञपशु के द्वारा यज्ञकी शेष क्रिया समाप्त की ॥ ३० ॥ तब राजा सगर ने अंशुमान् को राज्य का भार सौंप दिया और वे स्वयं विषयोंसे नि:स्पृह एवं बन्धनमुक्त हो गये। उन्होंने महर्षि और्व के बतलाये हुए मार्गसे परमपदकी प्राप्ति की ॥ ३१ ॥

इति श्रीमद्‍भागवते महापुराणे पारमहंस्यां
संहितायां नवमस्कन्धे अष्टमोऽध्यायः ॥ ८ ॥

हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से





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