॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
नवम स्कन्ध –नवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)
भगीरथ-चरित्र और गङ्गावतरण
श्रीशुक उवाच ।
अंशुमांश्च तपस्तेपे गंगानयनकाम्यया ।
कालं महान्तं नाशक्नोत् ततः कालेन संस्थितः ॥ १ ॥
दिलीपस्तत्सुतस्तद्वद् अशक्तः कालमेयिवान् ।
भगीरथस्तस्य पुत्रः तेपे स सुमहत् तपः ॥ २ ॥
दर्शयामास तं देवी प्रसन्ना वरदास्मि ते ।
इत्युक्तः स्वं अभिप्रायं शशंसावनतो नृपः ॥ ३ ॥
कोऽपि धारयिता वेगं पतन्त्या मे महीतले ।
अन्यथा भूतलं भित्त्वा नृप यास्ये रसातलम् ॥ ४ ॥
किं चाहं न भुवं यास्ये नरा मय्यामृजन्त्यघम् ।
मृजामि तदघं क्वाहं राजन् तत्र विचिन्त्यताम् ॥ ५ ॥
श्रीशुकदेवजी कहते हैं—परीक्षित् ! अंशुमान ने गङ्गाजी को लाने की कामनासे बहुत वर्षों तक घोर तपस्या की। परंतु उन्हें सफलता नहीं मिली, समय आनेपर उनकी मृत्यु हो गयी ॥ १ ॥ अंशुमान् के पुत्र दिलीप ने भी वैसी ही तपस्या की। परंतु वे भी असफल ही रहे, समयपर उनकी भी मृत्यु हो गयी। दिलीपके पुत्र थे भगीरथ। उन्होंने बहुत बड़ी तपस्या की ॥ २ ॥ उनकी तपस्यासे प्रसन्न होकर भगवती गङ्गाने उन्हें दर्शन दिया और कहा कि—‘मैं तुम्हें वर देनेके लिये आयी हूँ।’ उनके ऐसा कहनेपर राजा भगीरथने बड़ी नम्रतासे अपना अभिप्राय प्रकट किया कि ‘आप मर्त्यलोकमें चलिये’ ॥ ३ ॥
[गङ्गाजीने कहा—]‘जिस समय मैं स्वर्गसे पृथ्वीतलपर गिरूँ, उस समय मेरे वेगको कोई धारण करनेवाला होना चाहिये। भगीरथ ! ऐसा न होनेपर मैं पृथ्वीको फोडक़र रसातलमें चली जाऊँगी ॥ ४ ॥ इसके अतिरिक्त इस कारणसे भी मैं पृथ्वीपर नहीं जाऊँगी कि लोग मुझमें अपने पाप धोयेंगे। फिर मैं उस पाप को कहाँ धोऊँगी। भगीरथ ! इस विषयमें तुम स्वयं विचार कर लो’ ॥ ५ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
Jay shree Krishna
जवाब देंहटाएंJai Shri Krishna
जवाब देंहटाएंजय श्री सीताराम
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
जवाब देंहटाएं🌺🏵️🎋जय श्री हरि: 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय