॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
नवम स्कन्ध –नवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)
भगीरथ-चरित्र और गङ्गावतरण
श्रीभगीरथ उवाच ।
साधवो न्यासिनः शान्ता ब्रह्मिष्ठा लोकपावनाः ।
हरन्ति अघं ते अंगसंगात् तेष्वास्ते ह्यघभित् हरिः ॥ ६ ॥
धारयिष्यति ते वेगं रुद्रस्त्वात्मा शरीरिणाम् ।
यस्मिन् ओतं इदं प्रोतं विश्वं शाटीव तन्तुषु ॥ ७ ॥
इत्युक्त्वा स नृपो देवं तपसा तोषयच्छिवम् ।
कालेनाल्पीयसा राजन् तस्येशः समतुष्यत ॥ ८ ॥
तथेति राज्ञाभिहितं सर्वलोकहितः शिवः ।
दधारावहितो गंगां पादपूतजलां हरेः ॥ ९ ॥
भगीरथः स राजर्षिः निन्ये भुवनपावनीम् ।
यत्र स्वपितॄणां देहा भस्मीभूताः स्म शेरते ॥ १० ॥
रथेन वायुवेगेन प्रयान्तं अनुधावती ।
देशान् पुनन्ती निर्दग्धान् आसिञ्चत् सगरात्मजान् ॥ ११ ॥
यज्जलस्पर्शमात्रेण ब्रह्मदण्डहता अपि ।
सगरात्मजा दिवं जग्मुः केवलं देहभस्मभिः ॥ १२ ॥
भस्मीभूतांगसंगेन स्वर्याताः सगरात्मजाः ।
किं पुनः श्रद्धया देवीं सेवन्ते ये धृतव्रताः ॥ १३ ॥
न ह्येतत् परमाश्चर्यं स्वर्धुन्या यदिहोदितम् ।
अनन्तचरणाम्भोज प्रसूताया भवच्छिदः ॥ १४ ॥
सन्निवेश्य मनो यस्मिन् श्रद्धया मुनयोऽमलाः ।
त्रैगुण्यं दुस्त्यजं हित्वा सद्यो यातास्तदात्मताम् ॥ १५ ॥
भगीरथ ने कहा—‘माता ! जिन्होंने लोक-परलोक, धन-सम्पत्ति और स्त्री-पुत्रकी कामना का संन्यास कर दिया है, जो संसार से उपरत होकर अपने-आपमें शान्त हैं, जो ब्रह्मनिष्ठ और लोकों को पवित्र करनेवाले परोपकारी सज्जन हैं—वे अपने अङ्गस्पर्श से तुम्हारे पापोंको नष्ट कर देंगे। क्योंकि उनके हृदयमें अघरूप अघासुरको मारनेवाले भगवान् सर्वदा निवास करते हैं ॥ ६ ॥ समस्त प्राणियोंके आत्मा रुद्रदेव तुम्हारा वेग धारण कर लेंगे। क्योंकि जैसे साड़ी सूतों में ओतप्रोत है, वैसे ही यह सारा विश्व भगवान् रुद्रमें ही ओतप्रोत है’ ॥ ७ ॥ परीक्षित् ! गङ्गाजी से इस प्रकार कहकर राजा भगीरथने तपस्याके द्वारा भगवान् शङ्कर को प्रसन्न किया। थोड़े ही दिनोंमें महादेवजी उनपर प्रसन्न हो गये ॥ ८ ॥ भगवान् शङ्कर तो सम्पूर्ण विश्वके हितैषी हैं, राजाकी बात उन्होंने ‘तथास्तु’ कहकर स्वीकार कर ली। फिर शिवजीने सावधान होकर गङ्गाजीको अपने सिरपर धारण किया। क्यों न हो, भगवान्के चरणोंका सम्पर्क होनेके कारण गङ्गाजीका जल परम पवित्र जो है ॥ ९ ॥ इसके बाद राजर्षि भगीरथ त्रिभुवनपावनी गङ्गाजीको वहाँ ले गये, जहाँ उनके पितरोंके शरीर राखके ढेर बने पड़े थे ॥ १० ॥ वे वायुके समान वेगसे चलनेवाले रथपर सवार होकर आगे-आगे चल रहे थे और उनके पीछे-पीछे मार्गमें पडऩेवाले देशोंको पवित्र करती हुई गङ्गाजी दौड़ रही थीं। इस प्रकार गङ्गासागर-सङ्गमपर पहुँचकर उन्होंने सगरके जले हुए पुत्रोंको अपने जलमें डुबा दिया ॥ ११ ॥ यद्यपि सगरके पुत्र ब्राह्मणके तिरस्कारके कारण भस्म हो गये थे, इसलिये उनके उद्धारका कोई उपाय न था—फिर भी केवल शरीरकी राखके साथ गङ्गाजलका स्पर्श हो जानेसे ही वे स्वर्गमें चले गये ॥ १२ ॥ परीक्षित् ! जब गङ्गाजलसे शरीरकी राखका स्पर्श हो जानेसे सगरके पुत्रोंको स्वर्गकी प्राप्ति हो गयी, तब जो लोग श्रद्धाके साथ नियम लेकर श्रीगङ्गाजीका सेवन करते हैं, उनके सम्बन्धमें तो कहना ही क्या है ॥ १३ ॥ मैंने गङ्गाजीकी महिमाके सम्बन्धमें जो कुछ कहा है, उसमें आश्चर्यकी कोई बात नहीं है। क्योंकि गङ्गाजी भगवान् के उन चरणकमलोंसे निकली हैं, जिनका श्रद्धाके साथ चिन्तन करके बड़े-बड़े मुनि निर्मल हो जाते हैं और तीनों गुणोंके कठिन बन्धनको काटकर तुरंत भगवत्स्वरूप बन जाते हैं। फिर गङ्गाजी संसारका बन्धन काट दें, इसमें कौन बड़ी बात है ॥ १४-१५ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
Jay shree Krishna
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
जवाब देंहटाएंसियावर राम चंद्र भगवान की जय
जवाब देंहटाएंहर हर महादेव,हर हर गंगे,ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌺🌹🙏
जवाब देंहटाएंजय जय नारायण नारायण हरि: हरि:
जवाब देंहटाएंहरि:शरणम् हरि:शरणम् हरि:शरणम्
🌺💖🍂जय श्री हरि: 🙏🙏🙏🙏नमामि गंगे नमामि गंगे 🌷🎋🌷
ओम नमो भगवते वासुदेवाय
जवाब देंहटाएंओम नमो नारायण हरि 🙏🌹🙏
श्रीकृष्ण शरणम
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