॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
नवम स्कन्ध –नवाँ अध्याय..(पोस्ट०३)
भगीरथ-चरित्र और गङ्गावतरण
श्रुतो भगीरथाज्जज्ञे तस्य नाभोऽपरोऽभवत् ।
सिन्धुद्वीपः ततस्तस्मात् अयुतायुः ततोऽभवत् ॥ १६ ॥
ऋतूपर्णो नलसखो योऽश्वविद्यामयान्नलात् ।
दत्त्वाक्षहृदयं चास्मै सर्वकामस्तु तत्सुतम् ॥ १७ ॥
ततः सुदासः तत्पुत्रो मदयन्तीपतिर्नृपः ।
आहुर्मित्रसहं यं वै कल्माषाङ्घ्रिमुत क्वचित् ।
वसिष्ठशापाद्रक्षोऽभूत् अनपत्यः स्वकर्मणा ॥ १८ ॥
भगीरथ का पुत्र था श्रुत, श्रुत का नाभ। यह नाभ पूर्वोक्त नाभ से भिन्न है। नाभ का पुत्र था सिन्धुद्वीप और सिन्धुद्वीप का अयुतायु। अयुतायु के पुत्रका नाम था ऋतुपर्ण। वह नलका मित्र था। उसने नलको पासा फेंकने की विद्या का रहस्य बतलाया था और बदलेमें उससे अश्वविद्या सीखी थी। ऋतुपर्णका पुत्र सर्वकाम हुआ ॥ १६-१७ ॥ परीक्षित् ! सर्वकाम के पुत्रका नाम था सुदास। सुदासके पुत्रका नाम था सौदास और सौदासकी पत्नीका नाम था मदयन्ती। सौदासको ही कोई-कोई मित्रसह कहते हैं और कहीं-कहीं उसे कल्माषपाद भी कहा गया है। वह वसिष्ठके शापसे राक्षस हो गया था और फिर अपने कर्मोंके कारण सन्तानहीन हुआ ॥ १८ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
Jay shree Krishna
जवाब देंहटाएंअद्भुत है गीता
जवाब देंहटाएंजय श्री सीताराम
जवाब देंहटाएं🌼🍂🌻 जय श्री हरि: 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण