सोमवार, 16 दिसंबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण नवम स्कन्ध –दसवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
नवम स्कन्ध दसवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)

भगवान्‌ श्रीराम की लीलाओं का वर्णन

विश्वामित्राध्वरे येन मारीचाद्या निशाचराः ।
पश्यतो लक्ष्मणस्यैव हता नैर्‌ऋतपुंगवाः ॥ ५ ॥
यो लोकवीरसमितौ धनुरैशमुग्रं
सीतास्वयंवरगृहे त्रिशतोपनीतम् ॥
आदाय बालगजलील इवेक्षुयष्टिं
सज्ज्यीकृतं नृप विकृष्य बभञ्ज मध्ये ॥ ६ ॥
जित्वानुरूपगुणशीलवयोऽङ्‌गरूपां ।
सीताभिधां श्रियमुरस्यभिलब्धमानाम् ॥
मार्गे व्रजन् भृगुपतेर्व्यनयत् प्ररूढं ।
दर्पं महीमकृत यस्त्रिरराजबीजाम् ॥ ७ ॥
यः सत्यपाशपरिवीतपितुर्निदेशं ।
स्त्रैणस्य चापि शिरसा जगृहे सभार्यः ॥
राज्यं श्रियं प्रणयिनः सुहृदो निवासं ।
त्यक्त्वा ययौ वनमसूनिव मुक्तसङ्‌गः ॥ ८ ॥

भगवान्‌ श्रीराम ने विश्वामित्र के यज्ञमें लक्ष्मण के सामने ही मारीच आदि राक्षसोंको मार डाला। वे सब बड़े-बड़े राक्षसोंकी गिनतीमें थे ॥ ५ ॥ परीक्षित्‌ ! जनकपुरमें सीताजीका स्वयंवर हो रहा था। संसारके चुने हुए वीरोंकी सभामें भगवान्‌ शङ्करका वह भयङ्कर धनुष रखा हुआ था। वह इतना भारी था कि तीन सौ वीर बड़ी कठिनाईसे उसे स्वयंवरसभामें ला सके थे। भगवान्‌ श्रीरामने उस धनुषको बात-की-बातमें उठाकर उसपर डोरी चढ़ा दी और खींचकर बीचोबीचसे उसके दो टुकड़े कर दियेठीक वैसे ही, जैसे हाथीका बच्चा खेलते-खेलते ईख तोड़ डाले ॥ ६ ॥ भगवान्‌ने जिन्हें अपने वक्ष:स्थलपर स्थान देकर सम्मानित किया है, वे श्रीलक्ष्मीजी ही सीताके नामसे जनकपुरमें अवतीर्ण हुई थीं। वे गुण, शील, अवस्था, शरीरकी गठन और सौन्दर्यमें सर्वथा भगवान्‌ श्रीरामके अनुरूप थीं। भगवान्‌ ने धनुष तोडक़र उन्हें प्राप्त कर लिया। अयोध्याको लौटते समय मार्गमें उन परशुरामजी से भेंट हुई, जिन्होंने इक्कीस बार पृथ्वीको राजवंश के बीज से भी रहित कर दिया था। भगवान्‌ ने उनके बढ़े हुए गर्वको नष्ट कर दिया ॥ ७ ॥ इसके बाद पिताके वचन को सत्य करने के लिये उन्होंने वनवास स्वीकार किया। यद्यपि महाराज दशरथ ने अपनी पत्नी के अधीन होकर ही उसे वैसा वचन दिया था फिर भी वे सत्यके बन्धन में बँध गये थे। इसलिये भगवान्‌ ने अपने पिताकी आज्ञा शिरोधार्य कर राज्य, लक्ष्मी, प्रेमी, हितैषी, मित्र और महलों को वैसे ही छोडक़र अपनी पत्नीके साथ यात्रा की, जैसे मुक्तसंग योगी प्राणों को छोड़ देता है। ॥ ८ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से



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