॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
नवम स्कन्ध –छठा अध्याय..(पोस्ट०२)
इक्ष्वाकु के वंशका वर्णन,
मान्धाता और सौभरि ऋषि की कथा
कृतान्त आसीत् समरो देवानां सह दानवैः ।
पार्ष्णिग्राहो वृतो वीरो देवैर्दैत्यपराजितैः ॥ १३ ॥
वचनाद् देवदेवस्य विष्णोर्विश्वात्मनः प्रभोः ।
वाहनत्वे वृतस्तस्य बभूवेन्द्रो महावृषः ॥ १४ ॥
स सन्नद्धो धनुर्दिव्यं आदाय विशिखान्छितान् ।
स्तूयमानः समारुह्य युयुत्सुः ककुदि स्थितः ॥ १५ ॥
तेजसाऽऽप्यायितो विष्णोः पुरुषस्य परात्मनः ।
प्रतीच्यां दिशि दैत्यानां न्यरुणत् त्रिदशैः पुरम् ॥ १६ ॥
तैस्तस्य चाभूत् प्रधनं तुमुलं लोमहर्षणम् ।
यमाय भल्लैरनयद् दैत्यान् येऽभिययुर्मृधे ॥ १७ ॥
तस्येषुपाताभिमुखं युगान्ताग्निं इवोल्बणम् ।
विसृज्य दुद्रुवुर्दैत्या हन्यमानाः स्वमालयम् ॥ १८ ॥
जित्वा परं धनं सर्वं सश्रीकं वज्रपाणये ।
प्रत्ययच्छत्स राजर्षिः इति नामभिराहृतः ॥ १९ ॥
सत्ययुग के अन्त में देवताओं का दानवों के साथ घोर संग्राम हुआ था। उसमें सब-के-सब देवता दैत्यों से हार गये। तब उन्होंने वीर पुरञ्जय को सहायता के लिये अपना मित्र बनाया ॥ १३ ॥ पुरञ्जयने कहा कि ‘यदि देवराज इन्द्र मेरे वाहन बनें, तो मैं युद्ध कर सकता हूँ।’ पहले तो इन्द्रने अस्वीकार कर दिया, परंतु देवताओंके आराध्यदेव सर्वशक्तिमान् विश्वात्मा भगवान्की बात मानकर पीछे वे एक बड़े भारी बैल बन गये ॥ १४ ॥ सर्वान्तर्यामी भगवान् विष्णुने अपनी शक्तिसे पुरञ्जयको भर दिया। उन्होंने कवच पहनकर दिव्य धनुष और तीखे बाण ग्रहण किये। इसके बाद बैलपर चढक़र वे उसके ककुद् (डील) के पास बैठ गये। जब इस प्रकार वे युद्धके लिये तत्पर हुए, तब देवता उनकी स्तुति करने लगे। देवताओंको साथ लेकर उन्होंने पश्चिमकी ओरसे दैत्योंका नगर घेर लिया ॥ १५-१६ ॥ वीर पुरञ्जयका दैत्योंके साथ अत्यन्त रोमाञ्चकारी घोर संग्राम हुआ। युद्धमें जो-जो दैत्य उनके सामने आये, पुरञ्जयने बाणोंके द्वारा उन्हें यमराजके हवाले कर दिया ॥ १७ ॥ उनके बाणोंकी वर्षा क्या थी, प्रलयकालकी धधकती हुई आग थी। जो भी उसके सामने आता, छिन्न-भिन्न हो जाता। दैत्योंका साहस जाता रहा। वे रणभूमि छोडक़र अपने-अपने घरोंमें घुस गये ॥ १८ ॥ पुरञ्जयने उनका नगर, धन और ऐश्वर्य—सब कुछ जीतकर इन्द्रको दे दिया। इसीसे उन राजर्षिको पुर जीतनेके कारण ‘पुरञ्जय’, इन्द्रको वाहन बनानेके कारण ‘इन्द्रवाह’ और बैल के ककुद् पर बैठने के कारण ‘ककुत्स्थ’ कहा जाता है ॥ १९ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
Jay shree Krishna
जवाब देंहटाएंजय श्री सीताराम
जवाब देंहटाएं🌼🌿🏵️जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण