॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
नवम स्कन्ध –छठा अध्याय..(पोस्ट०३)
इक्ष्वाकु के वंशका वर्णन,
मान्धाता और सौभरि ऋषि की कथा
पुरञ्जयस्य पुत्रोऽभूद् अनेनास्तत्सुतः पृथुः ।
विश्वगन्धिस्ततश्चन्द्रो युवनाश्वस्तु तत्सुतः ॥ २० ॥
शाबस्तः तत्सुतो येन शाबस्ती निर्ममे पुरी ।
बृहदश्वस्तु शाबस्तिः ततः कुवलयाश्वकः ॥ २१ ॥
यः प्रियार्थमुतंकस्य धुन्धुनामासुरं बली ।
सुतानां एकविंशत्या सहस्रैः अहनद् वृतः ॥ २२ ॥
धुन्धुमार इति ख्यातः तत्सुतास्ते च जज्वलुः ।
धुन्धोर्मुखाग्निना सर्वे त्रय एवावशेषिताः ॥ २३ ॥
दृढाश्वः कपिलाश्वश्च भद्राश्व इति भारत ।
दृढाश्वपुत्रो हर्यश्वो निकुम्भः तत्सुतः स्मृतः ॥ २४ ॥
बहुलाश्वो निकुम्भस्य कृशाश्वोऽथास्य सेनजित् ।
युवनाश्वोऽभवत्तस्य सोऽनपत्यो वनं गतः ॥ २५ ॥
भार्याशतेन निर्विण्ण ऋषयोऽस्य कृपालवः ।
इष्टिं स्म वर्तयां चक्रुः ऐन्द्रीं ते सुसमाहिताः ॥ २६ ॥
पुरञ्जय का पुत्र था अनेना। उसका पुत्र पृथु हुआ। पृथु के विश्वरन्धि, उसके चन्द्र और चन्द्र के युवनाश्व ॥ २० ॥ युवनाश्व के पुत्र हुए शाबस्त, जिन्होंने शाबस्तीपुरी बसायी। शाबस्त के बृहदश्व और उसके कुवलयाश्व हुए ॥ २१ ॥ ये बड़े बली थे। इन्होंने उतङ्क ऋषिको प्रसन्न करनेके लिये अपने इक्कीस हजार पुत्रोंको साथ लेकर धुन्धु नामक दैत्यका वध किया ॥ २२ ॥ इसीसे उनका नाम हुआ ‘धुन्धुमार’। धुन्धु दैत्यके मुखकी आगसे उनके सब पुत्र जल गये। केवल तीन ही बच रहे थे ॥ २३ ॥ परीक्षित् ! बचे हुए पुत्रों के नाम थे—दृढाश्व, कपिलाश्व और भद्राश्व। दृढाश्वसे हर्यश्व और उससे निकुम्भ का जन्म हुआ ॥ २४ ॥ निकुम्भ के बहर्णाश्व, उनके कृशाश्व, कृशाश्व के सेनजित् और सेनजित् के युवनाश्व नामक पुत्र हुआ। युवनाश्व सन्तानहीन था, इसलिये वह बहुत दु:खी होकर अपनी सौ स्त्रियों के साथ वन में चला गया। वहाँ ऋषियों ने बड़ी कृपा करके युवनाश्व से पुत्रप्राप्ति के लिये बड़ी एकाग्रता के साथ इन्द्रदेवता का यज्ञ कराया ॥ २५-२६ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
Jay shree Krishna
जवाब देंहटाएं🍂🌼🌺जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण