गुरुवार, 26 दिसंबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण नवम स्कन्ध –चौदहवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥



श्रीमद्भागवतमहापुराण

नवम स्कन्ध चौदहवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)



चन्द्रवंश का वर्णन


श्रीशुक उवाच ।



अथातः श्रूयतां राजन् वंशः सोमस्य पावनः ।

यस्मिन्नैलादयो भूपाः कीर्त्यन्ते पुण्यकीर्तयः ॥ १ ॥

सहस्रशिरसः पुंसो नाभिह्रद सरोरुहात् ।

जातस्यासीत् सुतो धातुः अत्रिः पितृसमो गुणैः ॥ २ ॥

तस्य दृग्भ्योऽभवत् पुत्रः सोमोऽमृतमयः किल ।

विप्रौषध्युडुगणानां ब्रह्मणा कल्पितः पतिः ॥ ३ ॥

सोऽयजद् राजसूयेन विजित्य भुवनत्रयम् ।

पत्‍नीं बृहस्पतेर्दर्पात् तारां नामाहरद् बलात् ॥ ४ ॥

यदा स देवगुरुणा याचितोऽभीक्ष्णशो मदात् ।

नात्यजत् तत्कृते जज्ञे सुरदानवविग्रहः ॥ ५ ॥

शुक्रो बृहस्पतेर्द्वेषाद् अग्रहीत् सासुरोडुपम् ।

हरो गुरुसुतं स्नेहात् सर्वभूतगणावृतः ॥ ६ ॥

सर्वदेवगणोपेतो महेन्द्रो गुरुमन्वयात् ।

सुरासुरविनाशोऽभूत् समरस्तारकामयः ॥ ७ ॥


श्रीशुकदेवजी कहते हैंपरीक्षित्‌ ! अब मैं तुम्हें चन्द्रमा के पावन वंश का वर्णन सुनाता हूँ। इस वंश में पुरूरवा आदि बड़े-बड़े पवित्रकीर्ति राजाओं का कीर्तन किया जाता है ॥ १ ॥ सहस्रों सिरवाले विराट् पुरुष नारायण  के नाभि-सरोवर के कमल से ब्रह्माजी की उत्पत्ति हुई। ब्रह्माजी के पुत्र हुए अत्रि। वे अपने गुणोंके कारण ब्रह्माजीके समान ही थे ॥ २ ॥ उन्हीं अत्रि के नेत्रों से  अमृतमय चन्द्रमा का जन्म हुआ। ब्रह्माजी ने चन्द्रमा को ब्राह्मण, ओषधि और नक्षत्रों का अधिपति बना दिया ॥ ३ ॥ उन्होंने तीनों लोकोंपर विजय प्राप्त की और राजसूय यज्ञ किया। इससे उनका घमंड बढ़ गया और उन्होंने बलपूर्वक बृहस्पति की पत्नी तारा को हर लिया ॥ ४ ॥ देवगुरु बृहस्पति ने अपनी पत्नी को लौटा देने के लिये उनसे बार-बार याचना की, परंतु वे इतने मतवाले हो गये थे कि उन्होंने किसी प्रकार उनकी पत्नीको नहीं लौटाया। ऐसी परिस्थिति में उसके लिये देवता और दानव  में घोर संग्राम छिड़ गया ॥ ५ ॥ शुक्राचार्यजी ने बृहस्पतिजी के द्वेषसे असुरोंके साथ चन्द्रमाका पक्ष ले लिया और महादेवजीने स्नेहवश समस्त भूतगणोंके साथ अपने विद्यागुरु अङ्गिराजीके पुत्र बृहस्पतिका पक्ष लिया ॥ ६ ॥ देवराज इन्द्रने भी समस्त देवताओंके साथ अपने गुरु बृहस्पतिजीका ही पक्ष लिया। इस प्रकार ताराके निमित्तसे देवता और असुरोंका संहार करनेवाला घोर संग्राम हुआ ॥ ७ ॥



शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


3 टिप्‍पणियां:

  1. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌺🌹🙏

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  2. 🌹🥀🌼जय श्री हरि:🙏🙏
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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