गुरुवार, 26 दिसंबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण नवम स्कन्ध –चौदहवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥



श्रीमद्भागवतमहापुराण

नवम स्कन्ध चौदहवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)



चन्द्रवंश का वर्णन


निवेदितोऽथाङ्‌गिरसा सोमं निर्भर्त्स्य विश्वकृत् ।

तारां स्वभर्त्रे प्रायच्छद् अन्तर्वत्‍नीमवैत् पतिः ॥ ८ ॥

त्यज त्यजाशु दुष्प्रज्ञे मत्क्षेत्रात् आहितं परैः ।

नाहं त्वां भस्मसात्कुर्यां स्त्रियं सान्तानिकः सति ॥ ९ ॥

तत्याज व्रीडिता तारा कुमारं कनकप्रभम् ।

स्पृहामाङ्‌गिरसश्चक्रे कुमारे सोम एव च ॥ १० ॥

ममायं न तवेत्युच्चैः तस्मिन् विवदमानयोः ।

पप्रच्छुः ऋषयो देवा नैवोचे व्रीडिता तु सा ॥ ११ ॥

कुमारो मातरं प्राह कुपितोऽलीकलज्जया ।

किं न वोचस्यसद्‌वृत्ते आत्मावद्यं वदाशु मे ॥ १२ ॥

ब्रह्मा तां रह आहूय समप्राक्षीच्च सान्त्वयन् ।

सोमस्येत्याह शनकैः सोमस्तं तावदग्रहीत् ॥ १३ ॥

तस्यात्मयोनिरकृत बुध इत्यभिधां नृप ।

बुद्ध्या गम्भीरया येन पुत्रेणापोडुराण्मुदम् ॥१४



तदनन्तर अङ्गिरा ऋषि ने ब्रह्माजी के पास जाकर यह युद्ध बंद कराने की प्रार्थना की। इसपर ब्रह्माजीने चन्द्रमा को बहुत डाँटा-फटकारा और तारा को उसके पति बृहस्पतिजी के हवाले कर दिया। जब बृहस्पतिजी को यह मालूम हुआ कि तारा तो गर्भवती है, तब उन्होंने कहा॥ ८ ॥ दुष्टे ! मेरे क्षेत्र में यह तो किसी दूसरे का गर्भ है। इसे तू अभी त्याग दे, तुरंत त्याग दे। डर मत, मैं तुझे जलाऊँगा नहीं। क्योंकि एक तो तू स्त्री है और दूसरे मुझे भी सन्तानकी कामना है। देवी होनेके कारण तू निर्दोष भी है ही॥ ९ ॥ अपने पतिकी बात सुनकर तारा अत्यन्त लज्ङ्क्षजत हुई। उसने सोनेके समान चमकता हुआ एक बालक अपने गर्भसे अलग कर दिया। उस बालकको देखकर बृहस्पति और चन्द्रमा दोनों ही मोहित हो गये और चाहने लगे कि यह हमें मिल जाय ॥ १० ॥ अब वे एक-दूसरे से इस प्रकार जोर-जोर से झगड़ा करने लगे कि यह तुम्हारा नहीं, मेरा है।ऋषियों और देवताओं ने तारा से पूछा कि यह किसका लडक़ा है।परंतु तारा ने लज्जावश कोई उत्तर न दिया ॥ ११ ॥ बालक ने अपनी माता की झूठी लज्जा से क्रोधित होकर कहा—‘दुष्टे ! तू बतलाती क्यों नहीं ? तू अपना कुकर्म मुझे शीघ्र-से-शीघ्र बतला दे॥ १२ ॥ उसी समय ब्रह्माजी ने तारा को एकान्त में बुलाकर बहुत कुछ समझा-बुझाकर पूछा। तब तारा  ने धीरे से कहा कि चन्द्रमाका।इसलिये चन्द्रमा ने उस बालक को ले लिया ॥ १३ ॥ परीक्षित्‌ ! ब्रह्माजी ने उस बालक का नाम रखा बुध’, क्योंकि उसकी बुद्धि बड़ी गम्भीर थी। ऐसा पुत्र प्राप्त करके चन्द्रमा को बहुत आनन्द हुआ ॥ १४ ॥



शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




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