॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
नवम स्कन्ध –चौदहवाँ अध्याय..(पोस्ट०४)
चन्द्रवंश का वर्णन
तया
स पुरुषश्रेष्ठो रमयन्त्या यथार्हतः ।
रेमे
सुरविहारेषु कामं चैत्ररथादिषु ॥ २४ ॥
रममाणस्तया
देव्या पद्मकिञ्जल्क गन्धया ।
तन्मुखामोदमुषितो
मुमुदेऽहर्गणान् बहून् ॥ २५ ॥
अपश्यन्
उर्वशीं इन्द्रो गन्धर्वान् समचोदयत् ।
उर्वशीरहितं
मह्यं आस्थानं नातिशोभते ॥ २६ ॥
ते
उपेत्य महारात्रे तमसि प्रत्युपस्थिते ।
उर्वश्या
उरणौ जह्रुः न्यस्तौ राजनि जायया ॥ २७ ॥
निशम्याक्रन्दितं
देवी पुत्रयोः नीयमानयोः ।
हतास्म्यहं
कुनाथेन नपुंसा वीरमानिना ॥ २८ ॥
यद्
विश्रम्भादहं नष्टा हृतापत्या च दस्युभिः ।
यः
शेते निशि संत्रस्तो यथा नारी दिवा पुमान् ॥ २९ ॥
इति
वाक् सायकैर्बिद्धः प्रतोत्त्रैरिव कुञ्जरः ।
निशि
निस्त्रिंशमादाय विवस्त्रोऽभ्यद्रवद् रुषा ॥ ३० ॥
ते
विसृज्योरणौ तत्र व्यद्योतन्त स्म विद्युतः ।
आदाय
मेषावायान्तं नग्नमैक्षत सा पतिम् ॥ ३१ ॥
परीक्षित् ! तब उर्वशी कामशास्त्रोक्त पद्धति से पुरुष-श्रेष्ठ पुरूरवा के साथ विहार करने लगी। वे भी देवताओं की विहारस्थली चैत्ररथ, नन्दनवन आदि उपवनोंमें उसके साथ स्वच्छन्द विहार करने लगे ॥ २४ ॥ देवी उर्वशीके शरीर से कमलकेसरकी-सी सुगन्ध निकला करती थी। उसके साथ राजा पुरूरवा ने बहुत वर्षोंतक आनन्द-विहार किया। वे उसके मुखकी सुरभि से अपनी सुध-बुध खो बैठते थे ॥ २५ ॥ इधर जब इन्द्रने उर्वशीको नहीं देखा, तब उन्होंने गन्धर्वोंको उसे लानेके लिये भेजा और कहा—‘उर्वशीके बिना मुझे यह स्वर्ग फीका जान पड़ता है’ ॥ २६ ॥ वे गन्धर्व आधी रातके समय घोर अन्धकारमें वहाँ गये और उर्वशीके दोनों भेड़ोंको, जिन्हें उसने राजाके पास धरोहर रखा था, चुराकर चलते बने ॥ २७ ॥ उर्वशीने जब गन्धर्वोंके द्वारा ले जाये जाते हुए अपने पुत्रके समान प्यारे भेड़ोंकी ‘बें-बें’ सुनी, तब वह कह उठी कि ‘अरे, इस कायरको अपना स्वामी बनाकर मैं तो मारी गयी। यह नपुंसक अपनेको बड़ा वीर मानता है। यह मेरे भेड़ोंको भी न बचा सका ॥ २८ ॥ इसीपर विश्वास करनेके कारण लुटेरे मेरे बच्चोंको लूटकर लिये जा रहे हैं। मैं तो मर गयी। देखो तो सही, यह दिनमें तो मर्द बनता है और रातमें स्त्रियोंकी तरह डरकर सोया रहता है’ ॥ २९ ॥ परीक्षित् ! जैसे कोई हाथीको अंकुशसे बेध डाले, वैसे ही उर्वशीने अपने वचन-बाणोंसे राजाको बींध दिया। राजा पुरूरवाको बड़ा क्रोध आया और हाथमें तलवार लेकर वस्त्रहीन अवस्थामें ही वे उस ओर दौड़ पड़े ॥ ३० ॥ गन्धर्वोंने उनके झपटते ही भेड़ोंको तो वहीं छोड़ दिया और स्वयं बिजलीकी तरह चमकने लगे। जब राजा पुरूरवा भेड़ोंको लेकर लौटे, तब उर्वशीने उस प्रकाशमें उन्हें वस्त्रहीन अवस्थामें देख लिया। (बस,वह उसी समय उन्हें छोडक़र चली गयी) ॥ ३१ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
जवाब देंहटाएंJay shree Krishna
जवाब देंहटाएंजय श्री सीताराम
जवाब देंहटाएं💐🥀🌷जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः