॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
नवम स्कन्ध –पंद्रहवाँ अध्याय..(पोस्ट०४)
ऋचीक,
जमदग्नि और परशुरामजी का चरित्र
स एकदा तु मृगयां विचरन् विजने वने ।
यदृच्छयाऽऽश्रमपदं जमदग्नेरुपाविशत् ॥ २३ ॥
तस्मै स नरदेवाय मुनिरर्हणमाहरत् ।
ससैन्यामात्यवाहाय हविष्मत्या तपोधनः ॥ २४ ॥
स वै रत्नं तु तद् दृष्ट्वा आत्मैश्वर्यातिशायनम् ।
तन्नाद्रियताग्निहोत्र्यां साभिलाषः स हैहयः ॥ २५ ॥
हविर्धानीं ऋषेर्दर्पान् नरान् हर्तुमचोदयत् ।
ते च माहिष्मतीं निन्युः सवत्सां क्रन्दतीं बलात् ॥ २६ ॥
अथ राजनि निर्याते राम आश्रम आगतः ।
श्रुत्वा तत् तस्य दौरात्म्यं चुक्रोधाहिरिवाहतः ॥ २७ ॥
घोरमादाय परशुं सतूणं चर्म कार्मुकम् ।
अन्वधावत दुर्धर्षो मृगेन्द्र इव यूथपम् ॥ २८ ॥
एक दिन सहस्रबाहु अर्जुन शिकार खेलने के लिये बड़े घोर जंगल में निकल गया था। दैववश वह जमदग्नि मुनि के आश्रमपर जा पहुँचा ॥ २३ ॥ परम तपस्वी जमदग्नि मुनिके आश्रममें कामधेनु रहती थी। उसके प्रताप से उन्होंने सेना, मन्त्री और वाहनोंके साथ हैहयाधिपति का खूब स्वागत- सत्कार किया ॥ २४ ॥ वीर हैहयाधिपति ने देखा कि जमदग्नि मुनि का ऐश्वर्य तो मुझसे भी बढ़ा-चढ़ा है। इसलिये उसने उनके स्वागत-सत्कारको कुछ भी आदर न देकर कामधेनुको ही ले लेना चाहा ॥ २५ ॥ उसने अभिमानवश जमदग्नि मुनिसे माँगा भी नहीं, अपने सेवकोंको आज्ञा दी कि कामधेनु को छीन ले चलो। उसकी आज्ञासे उसके सेवक बछड़ेके साथ ‘बाँ-बाँ’ डकराती हुई कामधेनु को बलपूर्वक माहिष्मतीपुरी ले गये ॥ २६ ॥ जब वे सब चले गये, तब परशुरामजी आश्रमपर आये और उसकी दुष्टताका वृत्तान्त सुनकर चोट खाये हुए साँपकी तरह क्रोधसे तिलमिला उठे ॥ २७ ॥ वे अपना भयङ्कर फरसा, तरकस, ढाल एवं धनुष लेकर बड़े वेगसे उसके पीछे दौड़े—जैसे कोई किसीसे न दबनेवाला सिंह हाथीपर टूट पड़े ॥ २८ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
Jay shree Krishna
जवाब देंहटाएंJai shree Krishna
जवाब देंहटाएंनारायण हरिः नारायण हरिः नारायण हरिः नारायण हरिः
जवाब देंहटाएं🌺💐🌺जय श्री हरि: 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण