सोमवार, 30 दिसंबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण नवम स्कन्ध –पंद्रहवाँ अध्याय..(पोस्ट०४)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥



श्रीमद्भागवतमहापुराण

नवम स्कन्ध पंद्रहवाँ अध्याय..(पोस्ट०४)



ऋचीक, जमदग्नि और परशुरामजी का चरित्र



स एकदा तु मृगयां विचरन् विजने वने ।

यदृच्छयाऽऽश्रमपदं जमदग्नेरुपाविशत् ॥ २३ ॥

तस्मै स नरदेवाय मुनिरर्हणमाहरत् ।

ससैन्यामात्यवाहाय हविष्मत्या तपोधनः ॥ २४ ॥

स वै रत्‍नं तु तद् दृष्ट्वा आत्मैश्वर्यातिशायनम् ।

तन्नाद्रियताग्निहोत्र्यां साभिलाषः स हैहयः ॥ २५ ॥

हविर्धानीं ऋषेर्दर्पान् नरान् हर्तुमचोदयत् ।

ते च माहिष्मतीं निन्युः सवत्सां क्रन्दतीं बलात् ॥ २६ ॥

अथ राजनि निर्याते राम आश्रम आगतः ।

श्रुत्वा तत् तस्य दौरात्म्यं चुक्रोधाहिरिवाहतः ॥ २७ ॥

घोरमादाय परशुं सतूणं चर्म कार्मुकम् ।

अन्वधावत दुर्धर्षो मृगेन्द्र इव यूथपम् ॥ २८ ॥


एक दिन सहस्रबाहु अर्जुन शिकार खेलने के लिये बड़े घोर जंगल में निकल गया था। दैववश वह जमदग्नि मुनि के आश्रमपर जा पहुँचा ॥ २३ ॥ परम तपस्वी जमदग्नि मुनिके आश्रममें कामधेनु रहती थी। उसके प्रताप से उन्होंने सेना, मन्त्री और वाहनोंके साथ हैहयाधिपति का खूब स्वागत- सत्कार किया ॥ २४ ॥ वीर हैहयाधिपति ने देखा कि जमदग्नि मुनि का ऐश्वर्य तो मुझसे भी बढ़ा-चढ़ा है। इसलिये उसने उनके स्वागत-सत्कारको कुछ भी आदर न देकर कामधेनुको ही ले लेना चाहा ॥ २५ ॥ उसने अभिमानवश जमदग्नि मुनिसे माँगा भी नहीं, अपने सेवकोंको आज्ञा दी कि कामधेनु को छीन ले चलो। उसकी आज्ञासे उसके सेवक बछड़ेके साथ बाँ-बाँडकराती हुई कामधेनु को बलपूर्वक माहिष्मतीपुरी ले गये ॥ २६ ॥ जब वे सब चले गये, तब परशुरामजी आश्रमपर आये और उसकी दुष्टताका वृत्तान्त सुनकर चोट खाये हुए साँपकी तरह क्रोधसे तिलमिला उठे ॥ २७ ॥ वे अपना भयङ्कर फरसा, तरकस, ढाल एवं धनुष लेकर बड़े वेगसे उसके पीछे दौड़ेजैसे कोई किसीसे न दबनेवाला सिंह हाथीपर टूट पड़े ॥ २८ ॥



शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




4 टिप्‍पणियां:

  1. नारायण हरिः नारायण हरिः नारायण हरिः नारायण हरिः

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  2. 🌺💐🌺जय श्री हरि: 🙏🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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