॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
नवम स्कन्ध –पाँचवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)
दुर्वासाजीकी दु:खनिवृत्ति
श्रीशुक उवाच
।
एवं
भगवताऽऽदिष्टो दुर्वासाश्चक्रतापितः ।
अंबरीषं
उपावृत्य तत्पादौ दुःखितोऽग्रहीत् ॥ १ ॥
तस्य सोद्यमनं
वीक्ष्य पादस्पर्शविलज्जितः ।
अस्तावीत् तत्
हरेः अस्त्रं कृपया पीडितो भृशम् ॥ २ ॥
अंबरीष उवाच ।
त्वमग्निर्भगवान्
सूर्यः त्वं सोमो ज्योतिषां पतिः ।
त्वं आपस्त्वं
क्षितिर्व्योम वायुर्मात्रेन्द्रियाणि च ॥ ३ ॥
सुदर्शन
नमस्तुभ्यं सहस्राराच्युतप्रिय ।
सर्वास्त्रघातिन्
विप्राय स्वस्ति भूया इडस्पते ॥ ४ ॥
त्वं
धर्मस्त्वमृतं सत्यं त्वं यज्ञोऽखिलयज्ञभुक् ।
त्वं लोकपालः
सर्वात्मा त्वं तेजः पौरुषं परम् ॥ ५ ॥
नमः
सुनाभाखिलधर्मसेतवे
ह्यधर्मशीलासुरधूमकेतवे
।
त्रैलोक्यगोपाय
विशुद्धवर्चसे
मनोजवायाद्भुतकर्मणे
गृणे ॥ ६ ॥
त्वत्तेजसा
धर्ममयेन संहृतं
तमः प्रकाशश्च
दृशो महात्मनाम् ।
दुरत्ययस्ते
महिमा गिरां पते
त्वद्
रूपमेतत् सदसत् परावरम् ॥ ७ ॥
श्रीशुकदेवजी कहते हैं—परीक्षित् ! जब भगवान्ने इस प्रकार आज्ञा दी, तब सुदर्शन चक्रकी ज्वालासे जलते हुए दुर्वासा लौटकर राजा अम्बरीषके पास आये और उन्होंने अत्यन्त दु:खी होकर राजाके पैर पकड़ लिये ॥ १ ॥ दुर्वासाजीकी यह चेष्टा देखकर और उनके चरण पकडऩेसे लज्जित होकर राजा अम्बरीष भगवान्के चक्रकी स्तुति करने लगे। उस समय उनका हृदय दयावश अत्यन्त पीडि़त हो रहा था ॥ २ ॥
अम्बरीषने कहा—प्रभो ! सुदर्शन ! आप अग्निस्वरूप हैं। आप ही परम समर्थ सूर्य हैं। समस्त नक्षत्रमण्डलके अधिपति चन्द्रमा भी आपके स्वरूप हैं। जल, पृथ्वी, आकाश, वायु, पञ्चतन्मात्रा और सम्पूर्ण इन्द्रियोंके रूपमें भी आप ही हैं ॥ ३ ॥ भगवान् के प्यारे, हजार दाँतवाले चक्रदेव ! मैं आपको नमस्कार करता हूँ। समस्त अस्त्र-शस्त्रोंको नष्ट कर देनेवाले एवं पृथ्वीके रक्षक ! आप इन ब्राह्मणकी रक्षा कीजिये ॥ ४ ॥ आप ही धर्म हैं, मधुर एवं सत्य वाणी हैं; आप ही समस्त यज्ञोंके अधिपति और स्वयं यज्ञ भी हैं। आप समस्त लोकोंके रक्षक एवं सर्वलोकस्वरूप भी हैं। आप परमपुरुष परामात्मा के श्रेष्ठ तेज हैं ॥ ५ ॥ सुनाभ ! आप समस्त धर्मोंकी मर्यादाके रक्षक हैं। अधर्मका आचरण करनेवाले असुरोंको भस्म करनेके लिये आप साक्षात् अग्नि हैं। आप ही तीनों लोकोंके रक्षक एवं विशुद्ध तेजोमय हैं। आपकी गति मनके वेगके समान है और आपके कर्म अद्भुत हैं। मैं आपको नमस्कार करता हूँ, आपकी स्तुति करता हूँ ॥ ६ ॥ वेदवाणीके अधीश्वर ! आपके धर्ममय तेजसे अन्धकारका नाश होता है और सूर्य आदि महापुरुषोंके प्रकाशकी रक्षा होती है। आपकी महिमाका पार पाना अत्यन्त कठिन है। ऊँचे-नीचे और छोटे-बड़ेके भेद-भावसे युक्त यह समस्त कार्यकारणात्मक संसार आपका ही स्वरूप है ॥ ७ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
Jay shree Krishna
जवाब देंहटाएं🌹💖🥀जय श्री हरि: 🙏🙏🙏 ।। ॐ नमो भगवते वावासुदेवाय ।।
जवाब देंहटाएंनारायण नारायण नारायण नारायण
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
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