शुक्रवार, 3 जनवरी 2020

श्रीमद्भागवतमहापुराण नवम स्कन्ध –सत्रहवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥



श्रीमद्भागवतमहापुराण

नवम स्कन्ध सत्रहवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)



क्षत्रवृद्ध, रजि आदि राजाओं के वंशका वर्णन


श्रीशुक उवाच ।

यः पुरूरवसः पुत्र आयुः तस्याभवन् सुताः ।

नहुषः क्षत्रवृद्धश्च रजी रंभश्च वीर्यवान् ॥ १ ॥

अनेना इति राजेन्द्र शृणु क्षत्रवृधोऽन्वयम् ।

क्षत्रवृद्धसुतस्यासन् सुहोत्रस्यात्मजास्त्रयः ॥ २ ॥

काश्यः कुशो गृत्समद इति गृत्समदादभूत् ।

शुनकः शौनको यस्य बह्वृचप्रवरो मुनिः ॥ ३ ॥

काश्यस्य काशिः तत्पुत्रो राष्ट्रो दीर्घतमःपिता ।

धन्वन्तरिर्दैर्घतम आयुर्वेदप्रवर्तकः ॥ ४ ॥

यज्ञभुग् वासुदेवांशः स्मृतमात्रार्तिनाशनः ।

तत्पुत्रः केतुमानस्य जज्ञे भीमरथस्ततः ॥ ५ ॥

दिवोदासो द्युमांस्तस्मात् प्रतर्दन इति स्मृतः ।

स एव शत्रुजिद् वत्स ऋतध्वज इतीरितः ।

तथा कुवलयाश्वेति प्रोक्तोऽलर्कादयस्ततः ॥ ६ ॥

षष्टि वर्षसहस्राणि षष्टि वर्षशतानि च ।

नालर्काद् अपरो राजन् मेदिनीं बुभुजे युवा ॥ ७ ॥

अलर्कात् सन्ततिस्तस्मात् सुनीथोऽथ निकेतनः ।

धर्मकेतुः सुतस्तस्मात् सत्यकेतुरजायत ॥ ८ ॥

धृष्टकेतुः सुतस्तस्मात् सुकुमारः क्षितीश्वरः ।

वीतिहोत्रोऽस्य भर्गोऽतो भार्गभूमिरभून्नृप ॥ ९ ॥

इतीमे काशयो भूपाः क्षत्रवृद्धान्वयायिनः ।

रम्भस्य रभसः पुत्रो गम्भीरश्चाक्रियस्ततः ॥ १० ॥

तस्य क्षेत्रे ब्रह्म जज्ञे श्रृणु वंशमनेनसः ।

शुद्धस्ततः शुचिस्तस्मात् त्रिककुद् धर्मसारथिः ॥ ११ ॥

ततः शान्तरजो जज्ञे कृतकृत्यः स आत्मवान् ।

रजेः पञ्चशतान्यासन् पुत्राणां अमितौजसाम् ॥ १२ ॥


श्रीशुकदेवजी कहते हैंपरीक्षित्‌ ! राजेन्द्र पुरूरवा का एक पुत्र था आयु। उसके पाँच लडक़े हुएनहुष, क्षत्रवृद्ध, रजि, शक्तिशाली रम्भ और अनेना। अब क्षत्रवृद्ध का वंश सुनो। क्षत्रवृद्ध के पुत्र थे सुहोत्र। सुहोत्र के तीन पुत्र हुएकाश्य, कुश और गृत्समद। गृत्समद का पुत्र हुआ शुनक। इसी शुनक के पुत्र ऋग्वेदियों में श्रेष्ठ मुनिवर शौनकजी हुए ॥ १३ ॥ काश्य का पुत्र काशि, काशिका राष्ट्र, राष्ट्रका दीर्घतमा और दीर्घतमाके धन्वन्तरि। यही आयुर्वेदके प्रवर्तक हैं ॥ ४ ॥ ये यज्ञभागके भोक्ता और भगवान्‌ वासुदेवके अंश हैं। इनके स्मरणमात्रसे ही सब प्रकारके रोग दूर हो जाते हैं। धन्वन्तरिका पुत्र हुआ केतुमान् और केतुमान्का भीमरथ ॥ ५ ॥ भीमरथका दिवोदास और दिवोदासका द्युमान्जिसका एक नाम प्रतर्दन भी है। यही द्युमान् शत्रुजित्, वत्स, ऋतध्वज और कुवलयाश्वके नामसे भी प्रसिद्ध है। द्युमान्के ही पुत्र अलर्क आदि हुए ॥ ६ ॥ परीक्षित्‌ ! अलर्कके सिवा और किसी राजाने छाछठ हजार (६६०००) वर्षतक युवा रहकर पृथ्वीका राज्य नहीं भोगा ॥ ७ ॥ अलर्कका पुत्र हुआ सन्तति, सन्ततिका सुनीथ, सुनीथका सुकेतन, सुकेतनका धर्मकेतु और धर्मकेतुका सत्यकेतु ॥ ८ ॥ सत्यकेतुसे धृष्टकेतु, धृष्टकेतुसे राजा सुकुमार, सुकुमारसे वीतिहोत्र, वीतिहोत्रसे भर्ग और भर्गसे राजा भार्गभूमिका जन्म हुआ ॥ ९ ॥
ये सब-के-सब क्षत्रवृद्धके वंशमें काशिसे उत्पन्न नरपति हुए। रम्भके पुत्रका नाम था रभस, उससे गम्भीर और गम्भीरसे अक्रिय का जन्म हुआ ॥ १० ॥ अक्रिय की पत्नी से ब्राह्मणवंश चला। अब अनेना का वंश सुनो। अनेनाका पुत्र था शुद्ध, शुद्धका शुचि, शुचिका त्रिककुद् और त्रिककुद्का धर्मसारथि ॥ ११ ॥ धर्मसारथि के पुत्र थे शान्तरय। शान्तरय आत्मज्ञानी होनेके कारण कृतकृत्य थे, उन्हें सन्तानकी आवश्यकता न थी। परीक्षित्‌ ! आयुके पुत्र रजिके अत्यन्त तेजस्वी पाँच सौ पुत्र थे ॥ १२ ॥



शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




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