॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
नवम स्कन्ध –सत्रहवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)
क्षत्रवृद्ध,
रजि आदि राजाओं के वंशका वर्णन
देवैरभ्यर्थितो दैत्यान् हत्वेन्द्रायाददाद् दिवम् ।
इन्द्रस्तस्मै पुनर्दत्त्वा गृहीत्वा चरणौ रजेः ॥ १३ ॥
आत्मानमर्पयामास प्रह्रादाद्यरिशंकितः ।
पितरि उपरते पुत्रा याचमानाय नो ददुः ॥ १४ ॥
त्रिविष्टपं महेन्द्राय यज्ञभागान् समाददुः ।
गुरुणा हूयमानेऽग्नौ बलभित् तनयान् रजेः ॥ १५ ॥
अवधीद् भ्रंशितान् मार्गान् न कश्चित् अवशेषितः ।
कुशात् प्रतिः क्षात्रवृद्धात् संजयस्तत्सुतो जयः ॥ १६ ॥
ततः कृतः कृतस्यापि जज्ञे हर्यवनो नृपः ।
सहदेवस्ततो हीनो जयसेनस्तु तत्सुतः ॥ १७ ॥
सङ्कृतिस्तस्य च जयः क्षत्रधर्मा महारथः ।
क्षत्रवृद्धान्वया भूपा इमे श्रृणु वंशं च नाहुषात् ॥ १८ ॥
देवताओंकी
प्रार्थनासे रजि ने दैत्यों का वध करके इन्द्रको स्वर्गका राज्य दिया। परंतु वे
अपने प्रह्लाद आदि शत्रुओंसे भयभीत रहते थे, इसलिये उन्होंने वह स्वर्ग फिर रजिको लौटा दिया और
उनके चरण पकडक़र उन्हींको अपनी रक्षाका भार भी सौंप दिया। जब रजिकी मृत्यु हो गयी,
तब इन्द्रके माँगनेपर भी रजिके पुत्रोंने स्वर्ग नहीं लौटाया। वे
स्वयं ही यज्ञोंका भाग भी ग्रहण करने लगे। तब गुरु बृहस्पतिजीने इन्द्रकी
प्रार्थनासे अभिचार-विधिसे हवन किया। इससे वे धर्मके मार्गसे भ्रष्ट हो गये। तब
इन्द्रने अनायास ही उन सब रजिके पुत्रोंको मार डाला। उनमेंसे कोई भी न बचा। क्षत्रवृद्धके
पौत्र कुशसे प्रति, प्रतिसे सञ्जय और सञ्जयसे जयका जन्म हुआ
॥ १३—१६ ॥ जय से कृत, कृत से राजा
हर्यवन, हर्यवन से सहदेव, सहदेव से हीन
और हीन से जयसेन नामक पुत्र हुआ ॥ १७ ॥ जयसेन का सङ्कृति, सङ्कृतिका
पुत्र हुआ महारथी वीरशिरोमणि जय। क्षत्रवृद्ध की वंश-परम्परा में इतने ही नरपति
हुए। अब नहुषवंश का वर्णन सुनो ॥ १८ ॥
इति श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां
संहितायां नवमस्कन्धे सप्तदशोऽध्यायः ॥ १७ ॥
हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
Jay shree Krishna
जवाब देंहटाएं🌺🍂🌹जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🙏
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