शनिवार, 4 जनवरी 2020

श्रीमद्भागवतमहापुराण नवम स्कन्ध –अठारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥



श्रीमद्भागवतमहापुराण

नवम स्कन्ध अठारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)



ययाति चरित्र


श्रीशुक उवाच ।

यतिर्ययातिः संयातिः आयतिर्वियतिः कृतिः ।

षडिमे नहुषस्यासन् इन्द्रियाणीव देहिनः ॥ १ ॥

राज्यं नैच्छद् यतिः पित्रा दत्तं तत्परिणामवित् ।

यत्र प्रविष्टः पुरुष आत्मानं नावबुध्यते ॥ २ ॥

पितरि भ्रंशिते स्थानाद् इन्द्राण्या धर्षणाद्‌ द्विजैः ।

प्रापितेऽजगरत्वं वै ययातिरभवन्नृपः ॥ ३ ॥

चतसृष्वादिशद् दिक्षु भ्रातॄन् भ्राता यवीयसः ।

कृतदारो जुगोपोर्वीं काव्यस्य वृषपर्वणः ॥ ४ ॥



श्रीराजोवाच ।

ब्रह्मर्षिर्भगवान् काव्यः क्षत्रबन्धुश्च नाहुषः ।

राजन्यविप्रयोः कस्माद् विवाहः प्रतिलोमकः ॥ ५ ॥


श्रीशुकदेवजी कहते हैंपरीक्षित्‌ ! जैसे शरीरधारियों के छ: इन्द्रियाँ होती हैं, वैसे ही नहुष के छ: पुत्र थे। उनके नाम थेयति, ययाति, संयाति, आयति, वियति और कृति ॥ १ ॥ नहुष अपने बड़े पुत्र यतिको राज्य देना चाहते थे। परंतु उसने स्वीकार नहीं किया; क्योंकि वह राज्य पानेका परिणाम जानता था। राज्य एक ऐसी वस्तु है कि जो उसके दाव-पेंच और प्रबन्ध आदिमें भीतर प्रवेश कर जाता है, वह अपने आत्मस्वरूपको नहीं समझ सकता ॥ २ ॥ जब इन्द्रपत्नी शचीसे सहवास करनेकी चेष्टा करनेके कारण नहुषको ब्राह्मणोंने इन्द्रपदसे गिरा दिया और अजगर बना दिया, तब राजाके पदपर ययाति बैठे ॥ ३ ॥ ययातिने अपने चार छोटे भाइयोंको चार दिशाओंमें नियुक्त कर दिया और स्वयं शुक्राचार्यकी पुत्री देवयानी और दैत्यराज वृषपर्वाकी पुत्री शर्मिष्ठाको पत्नीके रूपमें स्वीकार करके पृथ्वीकी रक्षा करने लगा ॥ ४ ॥
राजा परीक्षित्‌ने पूछाभगवन् ! भगवान्‌ शुक्राचार्यजी तो ब्राह्मण थे और ययाति क्षत्रिय। फिर ब्राह्मण-कन्या और क्षत्रिय-वरका प्रतिलोम (उलटा) विवाह कैसे हुआ ? ॥ ५ ॥



शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


2 टिप्‍पणियां:

  1. 💐🍂🌹जय श्री हरि: 🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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