रविवार, 5 जनवरी 2020

श्रीमद्भागवतमहापुराण नवम स्कन्ध –अठारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०४)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥



श्रीमद्भागवतमहापुराण

नवम स्कन्ध अठारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०४)



ययाति चरित्र


स्वानां तत् संकटं वीक्ष्य तदर्थस्य च गौरवम् ।

देवयानीं पर्यचरत् स्त्रीसहस्रेण दासवत् ॥ २९ ॥

नाहुषाय सुतां दत्त्वा सह शर्मिष्ठयोशना ।

तमाह राजन् शर्मिष्ठां आधास्तल्पे न कर्हिचित् ॥ ३० ॥

विलोक्यौशनसीं राजन् शर्मिष्ठा सप्रजां क्वचित् ।

तमेव वव्रे रहसि सख्याः पतिमृतौ सती ॥ ३१ ॥

राजपुत्र्यार्थितोऽपत्ये धर्मं चावेक्ष्य धर्मवित् ।

स्मरन् शुक्रवचः काले दिष्टमेवाभ्यपद्यत ॥ ३२ ॥

यदुं च तुर्वसुं चैव देवयानी व्यजायत ।

द्रुह्युं चानुं च पूरुं च शर्मिष्ठा वार्षपर्वणी ॥ ३३ ॥

गर्भसंभवमासुर्या भर्तुर्विज्ञाय मानिनी ।

देवयानी पितुर्गेहं ययौ क्रोधविमूर्छिता ॥ ३४ ॥

प्रियां अनुगतः कामी वचोभिः उपमन्त्रयन् ।

न प्रसादयितुं शेके पादसंवाहनादिभिः ॥ ३५ ॥

शुक्रस्तमाह कुपितः स्त्रीकामानृतपूरुष ।

त्वां जरा विशतां मन्द विरूपकरणी नृणाम् ॥ ३६ ॥


शर्मिष्ठा ने अपने परिवारवालों का संकट और उनके कार्यका गौरव देखकर देवयानीकी बात स्वीकार कर ली। वह अपनी एक हजार सहेलियोंके साथ दासीके समान उसकी सेवा करने लगी ॥ २९ ॥ शुक्राचार्यजीने देवयानीका विवाह राजा ययातिके साथ कर दिया और शर्मिष्ठाको दासीके रूपमें देकर उनसे कह दिया—‘राजन् ! इसको अपनी सेजपर कभी न आने देना॥ ३० ॥ परीक्षित्‌ ! कुछ ही दिनों बाद देवयानी पुत्रवती हो गयी। उसको पुत्रवती देखकर एक दिन शर्मिष्ठाने भी अपने ऋतुकालमें देवयानीके पति ययातिसे एकान्तमें सहवासकी याचना की ॥ ३१ ॥ शर्मिष्ठाकी पुत्रके लिये प्रार्थना धर्मसंगत हैयह देखकर धर्मज्ञ राजा ययातिने शुक्राचार्यकी बात याद रहनेपर भी यही निश्चय किया कि समयपर प्रारब्धके अनुसार जो होना होगा, हो जायेगा ॥ ३२ ॥ देवयानीके दो पुत्र हुएयदु और तुर्वसु तथा वृषपर्वाकी पुत्री शर्मिष्ठाके तीन पुत्र हुएद्रुह्यु, अनु और पूरु ॥ ३३ ॥ जब मानिनी देवयानीको यह मालूम हुआ कि शर्मिष्ठाको भी मेरे पतिके द्वारा ही गर्भ रहा था, तब वह क्रोधसे बेसुध होकर अपने पिताके घर चली गयी ॥ ३४ ॥ कामी ययातिने मीठी-मीठी बातें, अनुनय-विनय और चरण दबाने आदिके द्वारा देवयानीको मनानेकी चेष्टा की, उसके पीछे-पीछे वहाँतक गये भी, परंतु मना न सके ॥ ३५ ॥ शुक्राचार्यजीने भी क्रोधमें भरकर ययातिसे कहा—‘तू अत्यन्त स्त्रीलम्पट, मन्दबुद्धि और झूठा है। जा, तेरे शरीरमें वह बुढ़ापा आ जाय, जो मनुष्योंको कुरूप कर देता है॥ ३६ ॥



शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




3 टिप्‍पणियां:

  1. जय श्री सीताराम जय हो प्रभु जय हो

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  2. 🏵️🍂🌼जय श्री हरि: 🙏🙏
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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