मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

श्रीमद्भागवतमहापुराण नवम स्कन्ध –उन्नीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥



श्रीमद्भागवतमहापुराण

नवम स्कन्ध उन्नीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)



ययातिका गृहत्याग


श्रीशुक उवाच ।

स इत्थं आचरन् कामान् स्त्रैणोऽपह्नवमात्मनः ।

बुद्ध्वा प्रियायै निर्विण्णो गाथामेतामगायत ॥ १ ॥

श्रृणु भार्गव्यमूं गाथां मद्विधाचरितां भुवि ।

धीरा यस्यानुशोचन्ति वने ग्रामनिवासिनः ॥ २ ॥

बस्त एको वने कश्चिद् विचिन्वन् प्रियमात्मनः ।

ददर्श कूपे पतितां स्वकर्मवशगामजाम् ॥ ३ ॥

तस्या उद्धरणोपायं बस्तः कामी विचिन्तयन् ।

व्यधत्त तीर्थमुद्‌धृत्य विषाणाग्रेण रोधसी ॥ ४ ॥

सोत्तीर्य कूपात् सुश्रोणी तमेव चकमे किल ।

तया वृतं समुद्वीक्ष्य बह्व्योऽजाः कान्तकामिनीः ॥ ५ ॥

पीवानं श्मश्रुलं प्रेष्ठं मीढ्वांसं याभकोविदम् ।

स एकोऽजवृषस्तासां बह्वीनां रतिवर्धनः ।

रेमे कामग्रहग्रस्त आत्मानं नावबुध्यत ॥ ६ ॥


श्रीशुकदेवजी कहते हैंपरीक्षित्‌ ! राजा ययाति इस प्रकार स्त्रीके वशमें होकर विषयोंका उपभोग करते रहे। एक दिन जब अपने अध:पतनपर दृष्टि गयी तब उन्हें बड़ा वैराग्य हुआ और उन्होंने अपनी प्रिय पत्नी देवयानीसे इस गाथा का गान किया ॥ १ ॥ भृगुनन्दिनी ! तुम यह गाथा सुनो। पृथ्वीमें मेरे ही समान विषयीका यह सत्य इतिहास है। ऐसे ही ग्रामवासी विषयी पुरुषोंके सम्बन्धमें वनवासी जितेन्द्रिय पुरुष दु:ख के साथ विचार किया करते हैं कि इनका कल्याण कैसे होगा ? ॥ २ ॥ एक था बकरा। वह वनमें अकेला ही अपनेको प्रिय लगनेवाली वस्तुएँ ढूँढ़ता हुआ घूम रहा था। उसने देखा कि अपने कर्मवश एक बकरी कूएँमें गिर पड़ी है ॥ ३ ॥ वह बकरा बड़ा कामी था। वह सोचने लगा कि इस बकरी को किस प्रकार कूएँ से निकाला जाय। उसने अपने सींग से कूएँ के पास की धरती खोद डाली और रास्ता तैयार कर लिया ॥ ४ ॥ जब वह सुन्दरी बकरी कूएँ से निकली, तो उसने उस बकरेसे ही प्रेम करना चाहा। वह दाढ़ी-मूँछमण्डित बकरा हृष्ट-पुष्ट, जवान, बकरियों को सुख देनेवाला, विहारकुशल और बहुत प्यारा था। जब दूसरी बकरियोंने देखा कि कूएँमें गिरी हुई बकरीने उसे अपना प्रेमपात्र चुन लिया है, तब उन्होंने भी उसीको अपना पति बना लिया। वे तो पहलेसे ही पतिकी तलाशमें थीं। उस बकरेके सिरपर कामरूप पिशाच सवार था। वह अकेला ही बहुत-सी बकरियोंके साथ विहार करने लगा और अपनी सब सुध-बुध खो बैठा ॥ ५-६ ॥



शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




5 टिप्‍पणियां:

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध-पांचवां अध्याय..(पोस्ट०९)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  तृतीय स्कन्ध - पाँचवा अध्याय..(पोस्ट०९) विदुरजीका प्रश्न  और मैत्रेयजीका सृष्टिक्रमवर्णन देव...