बुधवार, 22 अप्रैल 2020

श्रीमद्भागवतमहापुराण नवम स्कन्ध –तेईसवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
नवम स्कन्ध तेईसवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)

अनु, द्रुह्यु, तुर्वसु और यदुके वंशका वर्णन

श्रीशुक उवाच ।
अनोः सभानरश्चक्षुः परोक्षश्च त्रयः सुताः ।
सभानरात् कालनरः सृञ्जयः तत्सुतस्ततः ॥ १ ॥
जनमेजयः तस्य पुत्रो महाशालो महामनाः ।
उशीनरः तितिक्षुश्च महामनस आत्मजौ ॥ २ ॥
शिबिर्वनः शमिर्दक्षः चत्वार् उशीनरात्मजाः ।
वृषादर्भः सुधीरश्च मद्रः केकय आत्मवान् ॥ ३ ॥
शिबेश्चत्वार एवासन् तितिक्षोश्च रुशद्रथः ।
ततो होमोऽथ सुतपा बलिः सुतपसोऽभवत् ॥ ४ ॥
अंगवंगकलिंगाद्याः सुह्मपुण्ड्रान्ध्रसंज्ञिताः ।
जज्ञिरे दीर्घतमसो बलेः क्षेत्रे महीक्षितः ॥ ५ ॥
चक्रुः स्वनाम्ना विषयान् षडिमान् प्राच्यकांश्च ते ।
खनपानोऽङ्‌गतो जज्ञे तस्माद् दिविरथस्ततः ॥ ६ ॥
सुतो धर्मरथो यस्य जज्ञे चित्ररथोऽप्रजाः ।
रोमपाद इति ख्यातः तस्मै दशरथः सखा ॥ ७ ॥
शान्तां स्वकन्यां प्रायच्छद् ऋष्यशृङ्‌ग उवाह याम् ।
देवेऽवर्षति यं रामा आनिन्युर्हरिणीसुतम् ॥ ८ ॥
नाट्यसंगीतवादित्रैः विभ्रमालिंंगनार्हणैः ।
स तु राज्ञोऽनपत्यस्य निरूप्येष्टिं मरुत्वतः ॥ ९ ॥
प्रजामदाद् दशरथो येन लेभेऽप्रजाः प्रजाः ।
चतुरंगो रोमपादात् पृथुलाक्षस्तु तत्सुतः ॥ १० ॥
बृहद्रथो बृहत्कर्मा बृहद्‍भानुश्च तत्सुताः ।
आद्याद् बृहन्मनास्तस्मात् जयद्रथ उदाहृतः ॥ ११ ॥
विजयस्तस्य संभूत्यां ततो धृतिरजायत ।
ततो धृतव्रतस्तस्य सत्कर्माधिरथस्ततः ॥ १२ ॥
योऽसौ गंगातटे क्रीडन् मञ्जूषान्तर्गतं शिशुम् ।
कुन्त्यापविद्धं कानीनं अनपत्योऽकरोत्सुतम् ॥ १३ ॥
वृषसेनः सुतस्तस्य कर्णस्य जगतीपते ।
द्रुह्योश्च तनयो बभ्रुः सेतुः तस्यात्मजस्ततः ॥ १४ ॥
आरब्धस्तस्य गान्धारः तस्य धर्मस्ततो धृतः ।
धृतस्य दुर्मदस्तस्मात् प्रचेताः प्राचेतसः शतम् ॥ १५ ॥
म्लेच्छाधिपतयोऽभूवन् उदीचीं दिशमाश्रिताः ।
तुर्वसोश्च सुतो वह्निः वह्नेर्भर्गोऽथ भानुमान् ॥ १६ ॥
त्रिभानुस्तत्सुतोऽस्यापि करन्धम उदारधीः ।
मरुतस्तत्सुतोऽपुत्रः पुत्रं पौरवमन्वभूत् ॥ १७ ॥
दुष्मन्तः स पुनर्भेजे स्व वंशं राज्यकामुकः ।
ययातेर्ज्येष्ठपुत्रस्य यदोर्वंशं नरर्षभ ॥ १८ ॥

श्रीशुकदेवजी कहते हैंपरीक्षित्‌ ! ययातिनन्दन अनु के तीन पुत्र हुएसभानर, चक्षु और परोक्ष। सभानरका कालनर, कालनरका सृञ्जय, सृञ्जयका जनमेजय, जनमेजयका महाशील, महाशीलका पुत्र हुआ महामना। महामनाके दो पुत्र हुएउशीनर एवं तितिक्षु ॥ १-२ ॥ उशीनरके चार पुत्र थेशिबि, वन, शमी और दक्ष। शिबिके चार पुत्र हुएबृषादर्भ, सुवीर, मद्र और कैकेय। उशीनरके भाई तितिक्षुके रुशद्रथ, रुशद्रथके हेम, हेमके सुतपा और सुतपाके बलि नामक पुत्र हुआ ॥ ३-४ ॥ राजा बलिकी पत्नीके गर्भसे दीर्घतमा मुनिने छ: पुत्र उत्पन्न कियेअङ्ग, वङ्ग, कलिङ्ग, सुह्म, पुण्ंड्र और अन्ध्र ॥ ५ ॥ इन लोगोंने अपने-अपने नामसे पूर्व दिशामें छ: देश बसाये। अङ्गका पुत्र हुआ खनपान, खनपानका दिविरथ, दिविरथका धर्मरथ और धर्मरथका चित्ररथ। यह चित्ररथ ही रोमपादके नामसे प्रसिद्ध था। इसके मित्र थे अयोध्याधिपति महाराज दशरथ। रोमपादको कोई सन्तान न थी। इसलिये दशरथने उन्हें अपनी शान्ता नामकी कन्या गोद दे दी। शान्ताका विवाह ऋष्यशृङ्ग मुनिसे हुआ ऋष्यशृङ्ग विभाण्डक ऋषिके द्वारा हरिणीके गर्भसे उत्पन्न हुए थे। एक बार राजा रोमपादके राज्यमें बहुत दिनोंतक वर्षा नहीं हुई। तब गणिकाएँ अपने नृत्य, संगीत, वाद्य, हाव-भाव, आलिङ्गन और विविध उपहारोंसे मोहित करके ऋष्यशृङ्गको वहाँ ले आयीं। उनके आते ही वर्षा हो गयी। उन्होंने ही इन्द्र देवताका यज्ञ कराया, तब सन्तानहीन राजा रोमपादको भी पुत्र हुआ और पुत्रहीन दशरथने भी उन्हींके प्रयत्नसे चार पुत्र प्राप्त किये। रोमपादका पुत्र हुआ चतुरङ्ग और चतुरङ्गका पृथुलाक्ष ॥ ६१० ॥ पृथुलाक्षके बृहद्रथ, बृहत्कर्मा और बृहद्भानुतीन पुत्र हुए। बृहद्रथका पुत्र हुआ बृहन्मना और बृहन्मनाका जयद्रथ ॥ ११ ॥ जयद्रथकी पत्नीका नाम था सम्भूति। उसके गर्भसे विजयका जन्म हुआ। विजयका धृति, धृतिका धृतव्रत, धृतव्रतका सत्कर्मा और सत्कर्माका पुत्र था अधिरथ ॥ १२ ॥ अधिरथको कोई सन्तान न थी। किसी दिन वह गङ्गातटपर क्रीडा कर रहा था कि देखा एक पिटारीमें नन्हा-सा शिशु बहा चला जा रहा है। वह बालक कर्ण था, जिसे कुन्तीने कन्यावस्थामें उत्पन्न होनेके कारण उस प्रकार बहा दिया था। अधिरथने उसीको अपना पुत्र बना लिया ॥ १३ ॥ परीक्षित्‌ ! राजा कर्णके पुत्रका नाम था बृषसेन। ययातिके पुत्र द्रुह्युसे बभ्रुका जन्म हुआ। बभ्रुका सेतु, सेतुका आरब्ध, आरब्धका गान्धार, गान्धारका धर्म, धर्मका धृत, धृतका दुर्मना और दुर्मनाका पुत्र प्रचेता हुआ। प्रचेताके सौ पुत्र हुए, ये उत्तर दिशामें म्लेच्छोंके राजा हुए। ययातिके पुत्र तुर्वसुका वह्नि, वह्नि का भर्ग, भर्गका भानुमान्, भानुमान् का त्रिभानु, त्रिभानुका उदारबुद्धि करन्धम और करन्धमका पुत्र हुआ मरुत। मरुत सन्तानहीन था। इसलिये उसने पूरुवंशी दुष्यन्तको अपना पुत्र बनाकर रखा था ॥ १४१७ ॥ परंतु दुष्यन्त राज्यकी कामनासे अपने ही वंशमें लौट गये। परीक्षित्‌ ! अब मैं राजा ययातिके बड़े पुत्र यदुके वंशका वर्णन करता हूँ ॥ १८ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से



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