॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
नवम स्कन्ध –बाईसवाँ अध्याय..(पोस्ट०४)
पाञ्चाल, कौरव और मगधदेशीय राजाओं के वंश का वर्णन
तवेमे तनयास्तात जनमेजयपूर्वकाः ।
श्रुतसेनो भीमसेन उग्रसेनश्च वीर्यवान् ॥ ३५ ॥
जनमेजयस्त्वां विदित्वा तक्षकान्निधनं गतम् ।
सर्पान् वै सर्पयागाग्नौ स होष्यति रुषान्वितः ॥ ३६ ॥
कावषेयं पुरोधाय तुरं तुरगमेधयाट् ।
समन्तात् पृथिवीं सर्वां जित्वा यक्ष्यति चाध्वरैः ॥ ३७ ॥
तस्य पुत्रः शतानीको याज्ञवल्क्यात् त्रयीं पठन् ।
अस्त्रज्ञानं क्रियाज्ञानं शौनकात् परमेष्यति ॥ ३८ ॥
सहस्रानीकस्तत्पुत्रः ततश्चैवाश्वमेधजः ।
असीमकृष्णस्तस्यापि नेमिचक्रस्तु तत्सुतः ॥ ३९ ॥
गजाह्वये हृते नद्या कौशाम्ब्यां साधु वत्स्यति ।
उक्तस्ततश्चित्ररथः तस्मात् कविरथः सुतः ॥ ४० ॥
तस्माच्च वृष्टिमांस्तस्य सुषेणोऽथ महीपतिः ।
सुनीथस्तस्य भविता नृचक्षुर्यत् सुखीनलः ॥ ४१ ॥
परिप्लवः सुतस्तस्मात् मेधावी सुनयात्मजः ।
नृपञ्जयस्ततो दूर्वः तिमिः तस्मात् जनिष्यति ॥ ४२ ॥
तिमेर्बृहद्रथः तस्मात् शतानीकः सुदासजः ।
शतानीकाद् दुर्दमनः तस्यापत्यं बहीनरः ॥ ४३ ॥
दण्डपाणिर्निमिस्तस्य क्षेमको भविता यतः ।
ब्रह्मक्षत्रस्य वै प्रोक्तो वंशो देवर्षिसत्कृतः ॥ ४४ ॥
क्षेमकं प्राप्य राजानं संस्थां प्राप्स्यति वै कलौ ।
अथ मागधराजानो भवितारो ये वदामि ते ॥ ४५ ॥
भविता सहदेवस्य मार्जारिर्यत् श्रुतश्रवाः ।
ततो युतायुः तस्यापि निरमित्रोऽथ तत्सुतः ॥ ४६ ॥
सुनक्षत्रः सुनक्षत्राद् बृहत्सेनोऽथ कर्मजित् ।
ततः सुतञ्जयाद् विप्रः शुचिस्तस्य भविष्यति ॥ ४७ ॥
क्षेमोऽथ सुव्रतस्तस्माद् धर्मसूत्रः शमस्ततः ।
द्युमत्सेनोऽथ सुमतिः सुबलो जनिता ततः ॥ ४८ ॥
सुनीथः सत्यजिदथ विश्वजित् यद् रिपुञ्जयः ।
बार्हद्रथाश्च भूपाला भाव्याः साहस्रवत्सरम् ॥ ४९ ॥
परीक्षित् ! तुम्हारे पुत्र तो सामने ही बैठे हुए हैं—इनके नाम हैं—जनमेजय, श्रुतसेन, भीमसेन और उग्रसेन। ये सब-के-सब बड़े पराक्रमी हैं ॥ ३५ ॥ जब तक्षक के काटने से तुम्हारी मृत्यु हो
जायगी, तब इस बातको जानकर जनमेजय बहुत क्रोधित होगा
और यह सर्प-यज्ञ की
आग में सर्पों का हवन करेगा ॥ ३६ ॥ यह कावषेय तुर को पुरोहित बनाकर अश्वमेध यज्ञ
करेगा और सब ओरसे सारी पृथ्वीपर विजय प्राप्त करके यज्ञोंके द्वारा भगवान्की
आराधना करेगा ॥ ३७ ॥ जनमेजयका पुत्र होगा शतानीक। वह याज्ञवल्क्य ऋषिसे तीनों वेद
और कर्मकाण्डकी तथा कृपाचार्यसे अस्त्रविद्याकी शिक्षा प्राप्त करेगा एवं शौनकजीसे
आत्मज्ञानका सम्पादन करके परमात्मा को प्राप्त होगा ॥ ३८ ॥ शतानीक का सहस्रानीक,
सहस्रानीकका अश्वमेधज,
अश्वमेधज का असीमकृष्ण और असीमकृष्ण का पुत्र
होगा नेमिचक्र ॥ ३९ ॥ जब हस्तिनापुर गङ्गाजीमें बह जायगा,
तब वह कौशाम्बीपुरीमें सुखपूर्वक निवास
करेगा। नेमिचक्रका पुत्र होगा चित्ररथ, चित्ररथका कविरथ,
कविरथका वृष्टिमान्,
वृष्टिमान् का राजा सुषेण,
सुषेणका सुनीथ, सुनीथका नृचक्षु,
नृचक्षुका सुखीनल,
सुखीनलका परिप्लव,
परिप्लवका सुनय,
सुनयका मेधावी, मेधावीका नृपञ्जय,
नृपञ्जयका दूर्व और दूर्वका पुत्र तिमि होगा
॥ ४०—४२ ॥ तिमिसे बृहद्रथ,
बृहद्रथसे सुदास,
सुदाससे शतानीक,
शतानीकसे दुर्दमन,
दुर्दमनसे वहीनर,
वहीनरसे दण्डपाणि,
दण्डपाणिसे निमि और निमिसे राजा क्षेमकका
जन्म होगा। इस प्रकार मैंने तुम्हें ब्राह्मण और क्षत्रिय दोनोंके उत्पत्तिस्थान
सोमवंशका वर्णन सुनाया। बड़े-बड़े देवता और ऋषि इस वंशका सत्कार करते हैं
॥ ४३-४४ ॥ यह वंश कलियुगमें
राजा क्षेमकके साथ ही समाप्त हो जायगा। अब मैं भविष्यमें होनेवाले मगध देशके
राजाओंका वर्णन सुनाता हूँ ॥ ४५ ॥
जरासन्धके पुत्र सहदेवसे मार्जारि, मार्जारिसे श्रुतश्रवा, श्रुतश्रवासे अयुतायु और अयुतायुसे निरमित्र नामक पुत्र होगा ॥ ४६ ॥ निरमित्रके सुनक्षत्र, सुनक्षत्रके बृहत्सेन, बृहत्सेनके कर्मजित्, कर्मजित्के सृतञ्जय, सृतञ्जयके विप्र और विप्रके पुत्रका नाम होगा शुचि ॥ ४७ ॥ शुचिसे क्षेम, क्षेमसे सुव्रत, सुव्रतसे धर्मसूत्र, धर्मसूत्रसे शम, शमसे द्युमत्सेन, द्युमत्सेनसे सुमति और सुमतिसे सुबलका जन्म होगा ॥ ४८ ॥ सुबलका सुनीथ, सुनीथका, सत्यजित् सत्यजित्का विश्वजित् और विश्वजित् का पुत्र रिपुञ्जय होगा। ये सब बृहद्रथवंशके राजा होंगे। इनका शासनकाल एक हजार वर्षके भीतर ही होगा ॥ ४९ ॥
जरासन्धके पुत्र सहदेवसे मार्जारि, मार्जारिसे श्रुतश्रवा, श्रुतश्रवासे अयुतायु और अयुतायुसे निरमित्र नामक पुत्र होगा ॥ ४६ ॥ निरमित्रके सुनक्षत्र, सुनक्षत्रके बृहत्सेन, बृहत्सेनके कर्मजित्, कर्मजित्के सृतञ्जय, सृतञ्जयके विप्र और विप्रके पुत्रका नाम होगा शुचि ॥ ४७ ॥ शुचिसे क्षेम, क्षेमसे सुव्रत, सुव्रतसे धर्मसूत्र, धर्मसूत्रसे शम, शमसे द्युमत्सेन, द्युमत्सेनसे सुमति और सुमतिसे सुबलका जन्म होगा ॥ ४८ ॥ सुबलका सुनीथ, सुनीथका, सत्यजित् सत्यजित्का विश्वजित् और विश्वजित् का पुत्र रिपुञ्जय होगा। ये सब बृहद्रथवंशके राजा होंगे। इनका शासनकाल एक हजार वर्षके भीतर ही होगा ॥ ४९ ॥
इति श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां
संहितायां नवमस्कन्धे द्वाविंशोऽध्यायः ॥ २२ ॥
हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
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