शनिवार, 25 अप्रैल 2020

श्रीमद्भागवतमहापुराण नवम स्कन्ध –चौबीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०४)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
नवम स्कन्ध चौबीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०४)

विदर्भके वंशका वर्णन

यदा यदा हि धर्मस्य क्षयो वृद्धिश्च पाप्मनः
तदा तु भगवानीश आत्मानं सृजते हरिः ॥ ५६
न ह्यस्य जन्मनो हेतुः कर्मणो वा महीपते
आत्ममायां विनेशस्य परस्य द्रष्टुरात्मनः ॥ ५७
यन्मायाचेष्टितं पुंसः स्थित्युत्पत्त्यप्ययाय हि
अनुग्रहस्तन्निवृत्तेरात्मलाभाय चेष्यते ॥ ५८
अक्षौहिणीनां पतिभिरसुरैर्नृपलाञ्छनैः
भुव आक्रम्यमाणाया अभाराय कृतोद्यमः ॥ ५९
कर्माण्यपरिमेयाणि मनसापि सुरेश्वरैः
सहसङ्कर्षणश्चक्रे भगवान्मधुसूदनः ॥ ६०
कलौ जनिष्यमाणानां दुःखशोकतमोनुदम्
अनुग्रहाय भक्तानां सुपुण्यं व्यतनोद्यशः ॥ ६१
यस्मिन्सत्कर्णपीयुषे यशस्तीर्थवरे सकृत्
श्रोत्राञ्जलिरुपस्पृश्य धुनुते कर्मवासनाम् ॥ ६२

जब-जब संसारमें धर्मका ह्रास और पापकी वृद्धि होती है, तब-तब सर्वशक्तिमान् भगवान्‌ श्रीहरि अवतार ग्रहण करते हैं ॥ ५६ ॥ परीक्षित्‌ ! भगवान्‌ सबके द्रष्टा और वास्तवमें असङ्ग आत्मा ही हैं। इसलिए उनकी आत्मस्वरूपिणी योगमायाके अतिरिक्त उनके जन्म अथवा कर्मका और कोई भी कारण नहीं है ॥ ५७ ॥ उनकी मायाका विलास ही जीवके जन्म, जीवन और मृत्युका कारण है। और उनका अनुग्रह ही मायाको अलग करके आत्मस्वरूपको प्राप्त करानेवाला है ॥ ५८ ॥ जब असुरोंने राजाओंका वेष धारण कर लिया और कई अक्षौहिणी सेना इकट्ठी करके वे सारी पृथ्वीको रौंदने लगे, तब पृथ्वीका भार उतारनेके लिये भगवान्‌ मधुसूदन बलरामजीके साथ अवतीर्ण हुए। उन्होंने ऐसी-ऐसी लीलाएँ कीं, जिनके सम्बन्धमें बड़े-बड़े देवता मन से अनुमान भी नहीं कर सकतेशरीरसे करनेकी बात तो अलग रही ॥ ५९-६० ॥ पृथ्वीका भार तो उतरा ही, साथ ही कलियुगमें पैदा होनेवाले भक्तोंपर अनुग्रह करनेके लिये भगवान्‌ने ऐसे परम पवित्र यशका विस्तार किया, जिसका गान और श्रवण करनेसे ही उनके दु:ख, शोक और अज्ञान सब-के-सब नष्ट हो जायँगे ॥ ६१ ॥ उनका यश क्या है, लोगोंको पवित्र करनेवाला श्रेष्ठ तीर्थ है। संतोंके कानोंके लिये तो वह साक्षात् अमृत ही है । एक बार भी यदि कानकी अञ्जलियोंसे उसका आचमन कर लिया जाता है, तो कर्मकी वासनाएँ निर्मूल हो जाती हैं ॥ ६२ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से



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