गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

श्रीमद्भागवतमहापुराण दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) – दूसरा अध्याय..(पोस्ट०१)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) दूसरा अध्याय..(पोस्ट०१)

भगवान्‌ का गर्भ-प्रवेश और देवताओं द्वारा गर्भ-स्तुति

श्रीशुक उवाच
प्रलम्बबकचाणूर तृणावर्तमहाशनैः
मुष्टिकारिष्टद्विविद पूतनाकेशीधेनुकैः ॥ १ ॥
अन्यैश्चासुरभूपालैर्बाणभौमादिभिर्युतः
यदूनां कदनं चक्रे बली मागधसंश्रयः ॥ २ ॥
ते पीडिता निविविशुः कुरुपञ्चालकेकयान्
शाल्वान्विदर्भान्निषधान्विदेहान्कोशलानपि ॥ ३ ॥
एके तमनुरुन्धाना ज्ञातयः पर्युपासते
हतेषु षट्सु बालेषु देवक्या औग्रसेनिना ॥ ४ ॥
सप्तमो वैष्णवं धाम यमनन्तं प्रचक्षते
गर्भो बभूव देवक्या हर्षशोकविवर्धनः ॥ ५ ॥
भगवानपि विश्वात्मा विदित्वा कंसजं भयम्
यदूनां निजनाथानां योगमायां समादिशत् ॥ ६ ॥
गच्छ देवि व्रजं भद्रे गोपगोभिरलङ्कृतम्
रोहिणी वसुदेवस्य भार्यास्ते नन्दगोकुले
अन्याश्च कंससंविग्ना विवरेषु वसन्ति हि ॥ ७ ॥
देवक्या जठरे गर्भं शेषाख्यं धाम मामकम्
तत्सन्निकृष्य रोहिण्या उदरे सन्निवेशय ॥ ८ ॥
अथाहमंशभागेन देवक्याः पुत्रतां शुभे
प्राप्स्यामि त्वं यशोदायां नन्दपत्न्यां भविष्यसि ॥ ९ ॥
अर्चिष्यन्ति मनुष्यास्त्वां सर्वकामवरेश्वरीम्
धूपोपहारबलिभिः सर्वकामवरप्रदाम् ॥ १० ॥
नामधेयानि कुर्वन्ति स्थानानि च नरा भुवि
दुर्गेति भद्र कालीति विजया वैष्णवीति च ॥ ११ ॥
कुमुदा चण्डिका कृष्णा माधवी कन्यकेति च
माया नारायणीशानी शारदेत्यम्बिकेति च ॥ १२ ॥
गर्भसङ्कर्षणात्तं वै प्राहुः सङ्कर्षणं भुवि
रामेति लोकरमणाद्बलभद्रं बलोच्छ्रयात् ॥ १३ ॥
सन्दिष्टैवं भगवता तथेत्योमिति तद्वचः
प्रतिगृह्य परिक्रम्य गां गता तत्तथाकरोत् ॥ १४ ॥
गर्भे प्रणीते देवक्या रोहिणीं योगनिद्र या
अहो विस्रंसितो गर्भ इति पौरा विचुक्रुशुः ॥ १५ ॥

श्रीशुकदेवजी कहते हैंपरीक्षित्‌ ! कंस एक तो स्वयं बड़ा बली था और दूसरे, मगधनरेश जरासन्धकी उसे बहुत बड़ी सहायता प्राप्त थी । तीसरे, उसके साथी थेप्रलम्बासुर, बकासुर, चाणूर, तृणावर्त, अघासुर, मुष्टिक, अरिष्टासुर, द्विविद, पूतना, केशी और धेनुक। तथा बाणासुर और भौमासुर आदि बहुत-से दैत्य राजा उसके सहायक थे । इनको साथ लेकर वह यदुवंशियोंको नष्ट करने लगा ॥ १-२ ॥ वे लोग भयभीत होकर कुरु, पञ्चाल, केकय, शाल्व, विदर्भ, निषध, विदेह और कोसल आदि देशोंमें जा बसे ॥ ३ ॥ कुछ लोग ऊपर-ऊपरसे उसके मनके अनुसार काम करते हुए उसकी सेवामें लगे रहे । जब कंसने एक-एक करके देवकीके छ: बालक मार डाले, तब देवकीके सातवें गर्भमें भगवान्‌के अंशस्वरूप श्रीशेषजी[*] जिन्हें अनन्त भी कहते हैंपधारे । आनन्दस्वरूप शेषजीके गर्भमें आनेके कारण देवकीको स्वाभाविक ही हर्ष हुआ । परंतु कंस शायद इसे भी मार डाले, इस भयसे उनका शोक भी बढ़ गया ॥ ४-५ ॥
विश्वात्मा भगवान्‌ ने देखा कि मुझे ही अपना स्वामी और सर्वस्व माननेवाले यदुवंशी कंसके द्वारा बहुत ही सताये जा रहे हैं । तब उन्होंने अपनी योगमायाको यह आदेश दिया॥ ६ ॥ देवि ! कल्याणी ! तुम व्रजमें जाओ ! वह प्रदेश ग्वालों और गौओंसे सुशोभित है । वहाँ नन्दबाबाके गोकुलमें वसुदेवकी पत्नी रोहिणी निवास करती हैं । उनकी और भी पत्नियाँ कंससे डरकर गुप्त स्थानोंमें रह रही हैं ॥ ७ ॥ इस समय मेरा वह अंश जिसे शेष कहते हैं, देवकीके उदरमें गर्भरूपसे स्थित है । उसे वहाँसे निकालकर तुम रोहिणीके पेटमें रख दो ॥ ८ ॥ कल्याणी ! अब मैं अपने समस्त ज्ञान, बल आदि अंशोंके साथ देवकीका पुत्र बनूँगा और तुम नन्दबाबाकी पत्नी यशोदाके गर्भसे जन्म लेना ॥ ९ ॥ तुम लोगोंको मुँहमाँगे वरदान देनेमें समर्थ होओगी । मनुष्य तुम्हें अपनी समस्त अभिलाषाओंको पूर्ण करनेवाली जानकर धूप-दीप, नैवेद्य एवं अन्य प्रकारकी सामग्रियोंसे तुम्हारी पूजा करेंगे ॥ १० ॥ पृथ्वीमें लोग तुम्हारे लिये बहुत-से स्थान बनायेंगे और दुर्गा, भद्रकाली, विजया, वैष्णवी, कुमुदा, चण्डिका, कृष्णा, माधवी, कन्या, माया, नारायणी, ईशानी, शारदा और अम्बिका आदि बहुत-से नामोंसे पुकारेंगे ॥ ११-१२ ॥ देवकीके गर्भमेंसे खींचे जानेके कारण शेषजीको लोग संसारमें संकर्षणकहेंगे, लोकरंजन करनेके कारण रामकहेंगे और बलवानोंमें श्रेष्ठ होनेके कारण बलभद्रभी कहेंगे ॥ १३ ॥
जब भगवान्‌ ने इस प्रकार आदेश दिया, तब योगमायाने जो आज्ञा’—ऐसा कहकर उनकी बात शिरोधार्य की और उनकी परिक्रमा करके वे पृथ्वीलोकमें चली आयीं तथा भगवान्‌ने जैसा कहा था, वैसे ही किया ॥ १४ ॥ जब योगमाया ने देवकी का गर्भ ले जाकर रोहिणीके उदरमें रख दिया, तब पुरवासी बड़े दु:खके साथ आपस में कहने लगे—‘हाय ! बेचारी देवकी का यह गर्भ तो नष्ट ही हो गया॥ १५ ॥
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[*] शेष भगवान्‌ ने विचार किया कि रामावतार में मैं छोटा भाई बना, इसीसे मुझे बड़े भाई की आज्ञा माननी पड़ी और वन जानेसे मैं उन्हें रोक नहीं सका । श्रीकृष्णावतार में मैं बड़ा भाई बनकर भगवान्‌ की अच्छी सेवा कर सकूँगा ।इसलिये वे श्रीकृष्णसे पहले ही गर्भमें आ गये ।

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




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