॥
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
दशम
स्कन्ध (पूर्वार्ध) – पहला अध्याय..(पोस्ट०८)
भगवान्
के द्वारा पृथ्वी को आश्वासन, वसुदेव-देवकी का
विवाह
और
कंस के द्वारा देवकी के छ: पुत्रों हत्या
नन्दाद्या
ये व्रजे गोपा याश्चामीषां च योषितः ।
वृष्णयो
वसुदेवाद्या देवक्याद्या यदुस्त्रियः ॥ ६२ ॥
सर्वे
वै देवताप्राया उभयोरपि भारत ।
ज्ञातयो
बन्धुसुहृदो ये च कंसं अनुव्रताः ॥ ६३ ॥
एतत्
कंसाय भगवान् शशंसाभ्येत्य नारदः ।
भूमेर्भारायमाणानां
दैत्यानां च वधोद्यमम् ॥ ६४ ॥
ऋषेः
विनिर्गमे कंसो यदून् मत्वा सुरान् इति ।
देवक्या
गर्भसंभूतं विष्णुं च स्ववधं प्रति ॥ ६५ ॥
देवकीं
वसुदेवं च निगृह्य निगडैर्गृहे ।
जातं
जातं अहन् पुत्रं तयोः अजनशंकया ॥ ६६ ॥
मातरं
पितरं भ्रातॄन् सर्वांश्च सुहृदस्तथा ।
घ्नन्ति
ह्यसुतृपो लुब्धा राजानः प्रायशो भुवि ॥ ६७ ॥
आत्मानं
इह सञ्जातं जानन् प्राग् विष्णुना हतम् ।
महासुरं
कालनेमिं यदुभिः स व्यरुध्यत ॥ ६८ ॥
उग्रसेनं
च पितरं यदुभोजान्धकाधिपम् ।
स्वयं
निगृह्य बुभुजे शूरसेनान् महाबलः ॥ ६९ ॥
परीक्षित्
! इधर भगवान् नारद कंस के पास आये और उससे बोले कि ‘कंस ! व्रज में रहनेवाले नन्द आदि गोप, उनकी
स्त्रियाँ, वसुदेव आदि वृष्णिवंशी यादव, देवकी आदि यदुवंश की स्त्रियाँ और नन्द, वसुदेव
दोनों के सजातीय बन्धु-बान्धव और सगे-सम्बन्धी सब-के-सब देवता हैं; जो इस समय तुम्हारी सेवा कर रहे हैं, वे भी देवता ही
हैं ।’ उन्होंने यह भी बतलाया कि ‘दैत्योंके
कारण पृथ्वीका भार बढ़ गया है, इसलिये देवताओंकी ओरसे अब
उनके वधकी तैयारी की जा रही है’ ॥ ६२—६४
॥ जब देवर्षि नारद इतना कहकर चले गये, तब कंसको यह निश्चय हो
गया कि यदुवंशी देवता हैं और देवकीके गर्भसे विष्णुभगवान् ही मुझे मारनेके लिये
पैदा होनेवाले हैं। इसलिये उसने देवकी और वसुदेवको हथकड़ी-बेड़ीसे जकडक़र कैदमें
डाल दिया और उन दोनोंसे जो-जो पुत्र होते गये, उन्हें वह
मारता गया। उसे हर बार यह शंका बनी रहती कि कहीं विष्णु ही उस बालकके रूपमें न आ
गया हो ॥ ६५-६६ ॥ परीक्षित् ! पृथ्वीमें यह बात प्राय: देखी जाती है कि अपने
प्राणोंका ही पोषण करनेवाले लोभी राजा अपने स्वार्थके लिये माता-पिता, भाई-बन्धु और अपने अत्यन्त हितैषी इष्ट-मित्रोंकी भी हत्या कर डालते हैं ॥
६७ ॥ कंस जानता था कि मैं पहले कालनेमि असुर था और विष्णुने मुझे मार डाला था।
इससे उसने यदुवंशियोंसे घोर विरोध ठान लिया ॥ ६८ ॥ कंस बड़ा बलवान् था। उसने यदु,
भोज और अन्धक वंशके अधिनायक अपने पिता उग्रसेनको कैद कर लिया और
शूरसेन-देशका राज्य वह स्वयं करने लगा ॥ ६९ ॥
इति
श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां
संहितायां
दशमस्कन्धे पूर्वार्धे प्रथमोध्याऽयः ॥ १ ॥
हरिः
ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
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