शुक्रवार, 15 मई 2020

श्रीमद्भागवतमहापुराण दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) – छठा अध्याय..(पोस्ट०५)



॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) छठा अध्याय..(पोस्ट०५)

पूतना-उद्धार

अव्यादजोऽङ्‌घ्रि मणिमांस्तव जान्वथोरू
यज्ञोऽच्युतः कटितटं जठरं हयास्यः ।
हृत्केशवस्त्वदुर ईश इनस्तु कण्ठं
विष्णुर्भुजं मुखमुरुक्रम ईश्वरः कम् ॥ २२ ॥
चक्र्यग्रतः सहगदो हरिरस्तु पश्चात् ।
त्वत्पार्श्वयोर्धनुरसी मधुहाजनश्च ।
कोणेषु शङ्‌ख उरुगाय उपर्युपेन्द्रः
तार्क्ष्यः क्षितौ हलधरः पुरुषः समन्तात् ॥ २३ ॥
इन्द्रियाणि हृषीकेशः प्राणान्नारायणोऽवतु ।
श्वेतद्वीपपतिश्चित्तं मनो योगेश्वरोऽवतु ॥ २४ ॥
पृश्निगर्भस्तु ते बुद्धिं आत्मानं भगवान्परः ।
क्रीडन्तं पातु गोविन्दः शयानं पातु माधवः ॥ २५ ॥
व्रजन्तमव्याद् वैकुण्ठ आसीनं त्वां श्रियः पतिः ।
भुञ्जानं यज्ञभुक् पातु सर्वग्रहभयङ्‌करः ॥ २६ ॥
डाकिन्यो यातुधान्यश्च कुष्माण्डा येऽर्भकग्रहाः ।
भूतप्रेत पिशाचाश्च यक्षरक्षो विनायकाः ॥ २७ ॥
कोटरा रेवती ज्येष्ठा पूतना मातृकादयः ।
उन्मादा ये ह्यपस्मारा देह प्राणेन्द्रियद्रुहः ॥ २८ ॥
स्वप्नदृष्टा महोत्पाता वृद्धा बालग्रहाश्च ये ।
सर्वे नश्यन्तु ते विष्णोः नामग्रहणभीरवः ॥ २९ ॥

वे कहने लगीं—‘अजन्मा भगवान्‌ तेरे पैरोंकी रक्षा करें, मणिमान् घुटनों की, यज्ञपुरुष जाँघोंकी, अच्युत कमरकी, हयग्रीव पेटकी, केशव हृदयकी, ईश वक्ष:स्थल की, सूर्य कण्ठकी, विष्णु बाँहोंकी, उरुक्रम मुखकी और ईश्वर सिर की रक्षा करें ॥ २२ ॥ चक्रधर भगवान्‌ रक्षाके लिये तेरे आगे रहें, गदाधारी श्रीहरि पीछे, क्रमश: धनुष और खड्ग धारण करनेवाले भगवान्‌ मधुसूदन और अजन दोनों बगलमें, शङ्खधारी उरुगाय चारों कोनोंमें, उपेन्द्र ऊपर, हलधर पृथ्वीपर और भगवान्‌ परमपुरुष तेरे सब ओर रक्षाके लिये रहें ॥ २३ ॥ हृषीकेश भगवान्‌ इन्द्रियोंकी और नारायण प्राणोंकी रक्षा करें । श्वेतद्वीपके अधिपति चित्तकी और योगेश्वर मनकी रक्षा करें ॥ २४ ॥ पृश्निगर्भ  तेरी बुद्धिकी और परमात्मा भगवान्‌ तेरे अहंकारकी रक्षा करें । खेलते समय गोविन्द रक्षा करें, सोते समय माधव रक्षा करें ॥ २५ ॥ चलते समय भगवान्‌ वैकुण्ठ और बैठते समय भगवान्‌ श्रीपति तेरी रक्षा करें। भोजनके समय समस्त ग्रहोंको भयभीत करनेवाले यज्ञभोक्ता भगवान्‌ तेरी रक्षा करें ॥ २६ ॥ डाकिनी, राक्षसी और कूष्माण्डा आदि बालग्रह; भूत, प्रेत, पिशाच, यक्ष, राक्षस और विनायक, कोटरा, रेवती, ज्येष्ठा, पूतना, मातृका आदि; शरीर, प्राण तथा इन्द्रियोंका नाश करनेवाले उन्माद (पागलपन) एवं अपस्मार (मृगी) आदि रोग; स्वप्न में देखे हुए महान् उत्पात, वृद्धग्रह और बालग्रह आदिये सभी अनिष्ट भगवान्‌ विष्णुका नामोच्चारण करनेसे भयभीत होकर नष्ट हो जायँ[*] ॥ २७२९ ॥
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[*] इस प्रसङ्ग को पढक़र भावुक भक्त भगवान्‌ से कहता है—‘भगवन् ! जान पड़ता है, आपकी अपेक्षा भी आपके नाम में शक्ति अधिक है; क्योंकि आप त्रिलोकी की रक्षा करते हैं और नाम आपकी रक्षा कर रहा है ।

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




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