॥
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
दशम
स्कन्ध (पूर्वार्ध) – पाँचवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)
गोकुल
में भगवान् का जन्ममहोत्सव
गोप्यश्चाकर्ण्य
मुदिता यशोदायाः सुतोद्भवम् ।
आत्मानं
भूषयां चक्रुः वस्त्राकल्पाञ्जनादिभिः ॥ ९ ॥
नवकुंकुमकिञ्जल्क
मुखपंकजभूतयः ।
बलिभिस्त्वरितं
जग्मुः पृथुश्रोण्यश्चलत्कुचाः ॥ १० ॥
गोप्यः
सुमृष्टमणिकुण्डल निष्ककण्ठ्यः ।
चित्राम्बराः
पथि शिखाच्युतमाल्यवर्षाः ।
नन्दालयं
सवलया व्रजतीर्विरेजुः
व्यालोलकुण्डल
पयोधरहारशोभाः ॥ ११ ॥
ता
आशिषः प्रयुञ्जानाः चिरं पाहीति बालके ।
हरिद्राचूर्णतैलाद्भिः
सिञ्चन्त्यो जनमुज्जगुः ॥ १२ ॥
यशोदाजीके
पुत्र हुआ है,
यह सुनकर गोपियोंको भी बड़ा आनन्द हुआ । उन्होंने सुन्दर-सुन्दर
वस्त्र, आभूषण और अञ्जन आदिसे अपना शृङ्गार किया ॥ ९ ॥
गोपियोंके मुखकमल बड़े ही सुन्दर जान पड़ते थे । उनपर लगी हुई कुंकुम ऐसी लगती
मानो कमलकी केशर हो । उनके नितम्ब बड़े- बड़े थे । वे भेंट की सामग्री ले-लेकर
जल्दी-जल्दी यशोदाजीके पास चलीं । उस समय उनके पयोधर हिल रहे थे ॥ १० ॥ गोपियोंके
कानोंमें चमकती हुई मणियोंके कुण्डल झिलमिला रहे थे । गलेमें सोनेके हार (हैकल या
हुमेल) जगमगा रहे थे । वे बड़े सुन्दर-सुन्दर रंग-बिरंगे वस्त्र पहने हुए थीं ।
मार्गमें उनकी चोटियोंमें गुँथे हुए फूल बरसते जा रहे थे । हाथोंमें जड़ाऊ कंगन
अलग ही चमक रहे थे । उनके कानोंके कुण्डल, पयोधर और हार
हिलते जाते थे । इस प्रकार नन्दबाबाके घर जाते समय उनकी शोभा बड़ी अनूठी जान पड़ती
थी ॥ ११ ॥ नन्दबाबाके घर जाकर वे नवजात शिशुको आशीर्वाद देतीं ‘यह चिरजीवी हो, भगवन् ! इसकी रक्षा करो ।’ और लोगोंपर हल्दी-तेलसे मिला हुआ पानी छिडक़ देतीं तथा ऊँचे स्वरसे
मङ्गलगान करती थीं ॥ १२ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
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