बुधवार, 17 जून 2020

श्रीमद्भागवतमहापुराण दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) – चौदहवाँ अध्याय..(पोस्ट१४)



॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) चौदहवाँ अध्याय..(पोस्ट१४)

ब्रह्माजी के द्वारा भगवान्‌ की स्तुति

एषां घोषनिवासिनामुत भवान्
किं देव रातेति नः
चेतो विश्वफलात् फलं त्वदपरं
कुत्राप्ययन्मुह्यति ।
सद्वेषादिव पूतनापि सकुला
त्वामेव देवापिता
यद्धामार्थसुहृत् प्रियात्मतनय
प्राणाशयास्त्वत्कृते ॥ ३५ ॥
तावद् रागादयः स्तेनाः तावत् कारागृहं गृहम् ।
तावन्मोहोऽङ्‌घ्रिनिगडो यावत् कृष्ण न ते जनाः ॥ ३६ ॥

देवताओंके भी आराध्यदेव प्रभो ! इन व्रजवासियोंको इनकी सेवाके बदलेमें आप क्या फल देंगे ? सम्पूर्ण फलोंके फलस्वरूप ! आपसे बढक़र और कोई फल तो है ही नहीं, यह सोचकर मेरा चित्त मोहित हो रहा है। आप उन्हें अपना स्वरूप भी देकर उऋण नहीं हो सकते। क्योंकि आपके स्वरूपको तो उस पूतनाने भी अपने सम्बन्धियोंअघासुर, बकासुर आदिके साथ प्राप्त कर लिया, जिसका केवल वेष ही साध्वी स्त्रीका था, पर जो हृदयसे महान् क्रूर थी। फिर, जिन्होंने अपने घर, धन, स्वजन, प्रिय, शरीर, पुत्र, प्राण और मनसब कुछ आपके ही चरणोंमें समर्पित कर दिया है, जिनका सब कुछ आपके ही लिये है, उन व्रजवासियोंको भी वही फल देकर आप कैसे उऋण हो सकते हैं ॥ ३५ ॥ सच्चिदानन्दस्वरूप श्यामसुन्दर ! तभीतक राग-द्वेष आदि दोष चोरोंके समान सर्वस्व अपहरण करते रहते हैं, तभीतक घर और उसके सम्बन्धी कैदकी तरह सम्बन्धके बन्धनोंमें बाँध रखते हैं और तभीतक मोह पैरकी बेडिय़ों की तरह जकड़े रखता हैजबतक जीव आपका नहीं हो जाता ॥ ३६ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से





कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध-पांचवां अध्याय..(पोस्ट११)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  तृतीय स्कन्ध - पाँचवा अध्याय..(पोस्ट११) विदुरजीका प्रश्न  और मैत्रेयजीका सृष्टिक्रमवर्णन पान...