गुरुवार, 11 जून 2020

श्रीमद्भागवतमहापुराण दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) – चौदहवाँ अध्याय..(पोस्ट०३)



॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) चौदहवाँ अध्याय..(पोस्ट०३)

ब्रह्माजी के द्वारा भगवान्‌ की स्तुति

पुरेह भूमन् बहवोऽपि योगिनः
त्वदर्पितेहा निजकर्मलब्धया ।
विबुध्य भक्त्यैव कथोपनीतया
प्रपेदिरेऽञ्जोऽच्युत ते गतिं पराम् ॥ ५ ॥

हे अच्युत ! हे अनन्त ! इस लोकमें पहले भी बहुत-से योगी हो गये हैं । जब उन्हें योगादिके द्वारा आपकी प्राप्ति न हुई, तब उन्होंने अपने लौकिक और वैदिक समस्त कर्म आपके चरणोंमें समर्पित कर दिये । उन समर्पित कर्मोंसे तथा आपकी लीला-कथासे उन्हें आपकी भक्ति प्राप्त हुई । उस भक्तिसे ही आपके स्वरूपका ज्ञान प्राप्त करके उन्होंने बड़ी सुगमतासे आपके परमपदकी प्राप्ति कर ली ॥ ५ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




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