रविवार, 14 जून 2020

श्रीमद्भागवतमहापुराण दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) – चौदहवाँ अध्याय..(पोस्ट०९)



॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) चौदहवाँ अध्याय..(पोस्ट०९)

ब्रह्माजी के द्वारा भगवान्‌ की स्तुति

एकस्त्वमात्मा पुरुषः पुराणः
सत्यः स्वयंज्योतिरनन्त आद्यः ।
नित्योऽक्षरोऽजस्रसुखो निरञ्जनः
पूर्णाद्वयो मुक्त उपाधितोऽमृतः ॥ २३ ॥
एवंविधं त्वां सकलात्मनामपि
स्वात्मानमात्मात्मतया विचक्षते ।
गुर्वर्कलब्धोपनिषत् सुचक्षुषा
ये ते तरन्तीव भवानृताम्बुधिम् ॥ २४ ॥

प्रभो ! आप ही एकमात्र सत्य हैं । क्योंकि आप सबके आत्मा जो हैं । आप पुराणपुरुष होनेके कारण समस्त जन्मादि विकारोंसे रहित हैं । आप स्वयंप्रकाश हैं; इसलिये देश, काल और वस्तुजो परप्रकाश हैंकिसी प्रकार आपको सीमित नहीं कर सकते । आप उनके भी आदि प्रकाशक हैं । आप अविनाशी होनेके कारण नित्य हैं । आपका आनन्द अखण्डित है । आपमें न तो किसी प्रकारका मल है और न अभाव । आप पूर्ण, एक हैं । समस्त उपाधियोंसे मुक्त होनेके कारण आप अमृतस्वरूप हैं ॥ २३ ॥ आपका यह ऐसा स्वरूप समस्त जीवोंका ही अपना स्वरूप है । जो गुरुरूप सूर्यसे तत्त्वज्ञानरूप दिव्य दृष्टि प्राप्त करके उससे आपको अपने स्वरूपके रूपमें साक्षात्कार कर लेते हैं, वे इस झूठे संसार-सागरको मानो पार कर जाते हैं । (संसार-सागरके झूठा होनेके कारण इससे पार जाना भी अविचार-दशाकी दृष्टिसे ही है) ॥ २४ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




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