गुरुवार, 23 जुलाई 2020

दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) – इकतीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

 

श्रीमद्भागवतमहापुराण

दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) इकतीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)

 

गोपिकागीत

 

यत्ते सुजातचरणाम्बुरुहं स्तनेषु

भीताः शनैः प्रिय दधीमहि कर्कशेषु ।

तेनाटवीमटसि तद् व्यथते न किं स्वित्

कूर्पादिभिर्भ्रमति धीर्भवदायुषां नः ॥ १९ ॥

 

तुम्हारे चरणकमल से भी सुकुमार हैं। उन्हें हम अपने कठोर स्तनों पर भी डरते-डरते बहुत धीरे से रखती हैं कि कहीं उन्हें चोट न लग जाय। उन्हीं चरणोंसे तुम रात्रि के समय घोर जंगल में छिपे-छिपे भटक रहे हो ! क्या कंकड़, पत्थर आदि की चोट लगने से उनमें पीड़ा नहीं होती, हमें तो इसकी सम्भावनामात्र से ही चक्कर आ रहा है। हम अचेत होती जा रही हैं। श्रीकृष्ण ! श्यामसुन्दर ! प्राणनाथ ! हमारा जीवन तुम्हारे लिये है, हम तुम्हारे लिये जी रही हैं, हम तुम्हारी हैं ॥ १९ ॥

 

इति श्रीमद्‍भागवते महापुराणे पारमहंस्यां

संहितायां दशमस्कन्धे पूर्वार्धे रासक्रीडायां गोपीगीतं नामैकत्रिंशोऽध्यायः ॥ ३१ ॥

 

हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥

 

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से



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