॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
दशम स्कन्ध (उत्तरार्ध)— इक्यावनवाँ अध्याय..(पोस्ट०४)
कालयवन का भस्म होना, मुचुकुन्द की कथा
श्रीमुचुकुन्द उवाच
विमोहितोऽयं जन ईश मायया त्वदीयया त्वां न भजत्यनर्थदृक्
सुखाय दुःखप्रभवेषु सज्जते गृहेषु योषित्पुरुषश्च वञ्चितः ४६
लब्ध्वा जनो दुर्लभमत्र मानुषं
कथञ्चिदव्यङ्गमयत्नतोऽनघ
पादारविन्दं न भजत्यसन्मतिर्
गृहान्धकूपे पतितो यथा पशुः ४७
ममैष कालोऽजित निष्फलो गतो
राज्यश्रियोन्नद्धमदस्य भूपतेः
मर्त्यात्मबुद्धेः सुतदारकोशभू-
ष्वासज्जमानस्य दुरन्तचिन्तया ४८
कलेवरेऽस्मिन्घटकुड्यसन्निभे
निरूढमानो नरदेव इत्यहम्
वृतो रथेभाश्वपदात्यनीकपैर्
गां पर्यटंस्त्वागणयन्सुदुर्मदः ४९
प्रमत्तमुच्चैरितिकृत्यचिन्तया
प्रवृद्धलोभं विषयेषु लालसम्
त्वमप्रमत्तः सहसाभिपद्यसे
क्षुल्लेलिहानोऽहिरिवाखुमन्तकः ५०
पुरा रथैर्हेमपरिष्कृतैश्चरन्
मतंगजैर्वा नरदेवसंज्ञितः
स एव कालेन दुरत्ययेन ते
कलेवरो विट्कृमिभस्मसंज्ञितः ५१
निर्जित्य दिक्चक्रमभूतविग्रहो
वरासनस्थः समराजवन्दितः
गृहेषु मैथुन्यसुखेषु योषितां
क्रीडामृगः पूरुष ईश नीयते ५२
मुचुकुन्द ने कहा- ‘प्रभो! जगत के सभी प्राणी आपकी माया से
अत्यन्त मोहित हो रहे हैं। वे आपसे विमुख होकर अनर्थ में ही फँसे रहते हैं और आपका
भजन नहीं करते। वे सुख के लिये घर-गृहस्थी के उन झंझटों में फँस जाते हैं, जो सारे दुःखों के मूल स्रोत हैं। इस तरह स्त्री और पुरुष सभी
ठगे जा रहे हैं। इस पापरूप संसार से सर्वथा रहित प्रभो! यह भूमि अत्यन्त पवित्र
कर्मभूमि है, इसमें मनुष्य का जन्म होना अत्यन्त दुर्लभ है।
मनुष्य-जीवन इतना पूर्ण है कि उसमें भजन के लिए कोई भी असुविधा नहीं है। अपने परम
सौभाग्य और भगवान की अहैतुक कृपा से उसे अनायास ही प्राप्त करके भी जो अपनी मति,
गति असत् संसार में ही लगा देते हैं और तुच्छ विषय सुख के लिये ही
सारा प्रयत्न करते हुए घर-गृहस्थी के अँधेरे कूएँ में पड़े रहते हैं- भगवान के
चरणकमलों की उपासना नहीं करते, भजन नहीं करते, वे तो ठीक उस पशु के समान हैं, जो तुच्छ तृण के लोभ
से अँधेरे कूएँ में गिर जाता है।
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
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