रविवार, 25 अप्रैल 2021

श्रीमद्भागवतमहापुराण द्वादश स्कन्ध– ग्यारहवाँ अध्याय (पोस्ट०२)


 

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

 

श्रीमद्भागवतमहापुराण

द्वादश स्कन्धग्यारहवाँ अध्याय (पोस्ट०२)

 

भगवान्‌ के अङ्ग, उपाङ्ग और आयुधों का रहस्य

तथा विभिन्न सूर्यगणों का वर्णन

 

श्रीशौनक उवाच

शुको यदाह भगवान्विष्णुराताय शृण्वते

सौरो गणो मासि मासि नाना वसति सप्तकः २७

तेषां नामानि कर्माणि नियुक्तानामधीश्वरैः

ब्रूहि नः श्रद्दधानानां व्यूहं सूर्यात्मनो हरेः २८

 

सूत उवाच

अनाद्यविद्यया विष्णोरात्मनः सर्वदेहिनाम्

निर्मितो लोकतन्त्रोऽयं लोकेषु परिवर्तते २९

एक एव हि लोकानां सूर्य आत्मादिकृद्धरिः

सर्ववेदक्रियामूलमृषिभिर्बहुधोदितः ३०

कालो देशः क्रिया कर्ता करणं कार्यमागमः

द्रव्यं फलमिति ब्रह्मन्नवधोक्तोऽजया हरिः ३१

मध्वादिषु द्वादशसु भगवान्कालरूपधृक्

लोकतन्त्राय चरति पृथग्द्वादशभिर्गणैः ३२

धाता कृतस्थली हेतिर्वासुकी रथकृन्मुने

पुलस्त्यस्तुम्बुरुरिति मधुमासं नयन्त्यमी ३३

अर्यमा पुलहोऽथौजाः प्रहेतिः पुञ्जिकस्थली

नारदः कच्छनीरश्च नयन्त्येते स्म माधवम् ३४

मित्रोऽत्रिः पौरुषेयोऽथ तक्षको मेनका हहाः

रथस्वन इति ह्येते शुक्रमासं नयन्त्यमी ३५

वसिष्ठो वरुणो रम्भा सहजन्यस्तथा हुहूः

शुक्रश्चित्रस्वनश्चैव शुचिमासं नयन्त्यमी ३६

इन्द्रो विश्वावसुः श्रोता एलापत्रस्तथाङ्गिराः

प्रम्लोचा राक्षसो वर्यो नभोमासं नयन्त्यमी ३७

विवस्वानुग्रसेनश्च व्याघ्र आसारणो भृगुः

अनुम्लोचा शङ्खपालो नभस्याख्यं नयन्त्यमी ३८

पूषा धनञ्जयो वातः सुषेणः सुरुचिस्तथा

घृताची गौतमश्चेति तपोमासं नयन्त्यमी ३९

ऋतुर्वर्चा भरद्वाजः पर्जन्यः सेनजित्तथा

विश्व ऐरावतश्चैव तपस्याख्यं नयन्त्यमी ४०

अथांशुः कश्यपस्तार्क्ष्य ऋतसेनस्तथोर्वशी

विद्युच्छत्रुर्महाशङ्खः सहोमासं नयन्त्यमी ४१

भगः स्फूर्जोऽरिष्टनेमिरूर्ण आयुश्च पञ्चमः

कर्कोटकः पूर्वचित्तिः पुष्यमासं नयन्त्यमी ४२

त्वष्टा ऋचीकतनयः कम्बलश्च तिलोत्तमा

ब्रह्मापेतोऽथ शतजिद्धृतराष्ट्र इषम्भराः ४३

विष्णुरश्वतरो रम्भा सूर्यवर्चाश्च सत्यजित्

विश्वामित्रो मखापेत ऊर्जमासं नयन्त्यमी ४४

एता भगवतो विष्णोरादित्यस्य विभूतयः

स्मरतां सन्ध्ययोर्नॄणां हरन्त्यंहो दिने दिने ४५

द्वादशस्वपि मासेषु देवोऽसौ षड्भिरस्य वै

चरन्समन्तात्तनुते परत्रेह च सन्मतिम् ४६

सामर्ग्यजुर्भिस्तल्लिङ्गैरृषयः संस्तुवन्त्यमुम्

गन्धर्वास्तं प्रगायन्ति नृत्यन्त्यप्सरसोऽग्रतः ४७

उन्नह्यन्ति रथं नागा ग्रामण्यो रथयोजकाः

चोदयन्ति रथं पृष्ठे नैरृता बलशालिनः ४८

वालखिल्याः सहस्राणि षष्टिर्ब्रह्मर्षयोऽमलाः

पुरतोऽभिमुखं यान्ति स्तुवन्ति स्तुतिभिर्विभुम् ४९

एवं ह्यनादिनिधनो भगवान्हरिरीश्वरः

कल्पे कल्पे स्वमात्मानं व्यूह्य लोकानवत्यजः ५०

 

शौनकजीने कहा—सूतजी ! भगवान्‌ श्रीशुकदेवजीने श्रीमद्भागवत-कथा सुनाते समय राजर्षि परीक्षित्‌से (पञ्चम स्कन्धमें) कहा था कि ऋषि, गन्धर्व, नाग, अप्सरा, यक्ष, राक्षस और देवताओंका एक सौरगण होता है और ये सातों प्रत्येक महीनेमें बदलते रहते हैं। ये बारह गण अपने स्वामी द्वादश आदित्योंके साथ रहकर क्या काम करते हैं और उनके अन्तर्गत व्यक्तियोंके नाम क्या हैं ? सूर्यके रूपमें भी स्वयं भगवान्‌ ही हैं; इसलिये उनके विभागको हम बड़ी श्रद्धाके साथ सुनना चाहते हैं, आप कृपा करके कहिये ॥ २७-२८ ॥

सूतजीने कहा—समस्त प्राणियोंके आत्मा भगवान्‌ विष्णु ही हैं। अनादि अविद्यासे अर्थात् उनके वास्तविक स्वरूपके अज्ञानसे ही समस्त लोकोंके व्यवहार-प्रवर्तक प्राकृत सूर्यमण्डलका निर्माण हुआ है। वही लोकोंमें भ्रमण किया करता है ॥ २९ ॥ असलमें समस्त लोकोंके आत्मा एवं आदिकर्ता एकमात्र श्रीहरि ही अन्तर्यामीरूपसे सूर्य बने हुए हैं। वे यद्यपि एक ही हैं, तथापि ऋषियोंने उनका बहुत रूपोंमें वर्णन किया है, वे ही समस्त वैदिक क्रियाओंके मूल हैं ॥ ३० ॥ शौनकजी ! एक भगवान्‌ ही मायाके द्वारा काल, देश, यज्ञादि क्रिया, कर्ता, स्रुवा आदि करण, यागादि कर्म, वेदमन्त्र, शाकल्य आदि द्रव्य और फलरूपसे नौ प्रकारके कहे जाते हैं ॥ ३१ ॥ कालरूपधारी भगवान्‌ सूर्य लोगोंका व्यवहार ठीक-ठीक चलानेके लिये चैत्रादि बारह महीनोंमें अपने भिन्न-भिन्न बारह गणोंके साथ चक्कर लगाया करते हैं ॥ ३२ ॥

शौनकजी ! धाता नामक सूर्य, कृतस्थली अप्सरा, हेति राक्षस, वासुकि सर्प, रथकृत् यक्ष, पुलस्त्य ऋषि और तुम्बुरु गन्धर्व—ये चैत्र मासमें अपना-अपना कार्य सम्पन्न करते हैं ॥ ३३ ॥ अर्यमा सूर्य, पुलह ऋषि, अथौजा यक्ष, प्रहेति राक्षस, पुञ्जिकस्थली अप्सरा, नारद गन्धर्व और कच्छनीर सर्प—ये वैशाख मासके कार्यनिर्वाहक हैं ॥ ३४ ॥ मित्र सूर्य, अत्रि ऋषि, पौरुषेय राक्षस, तक्षक सर्प, मेनका अप्सरा, हाहा गन्धर्व और रथस्वन यक्ष—ये ज्येष्ठ मासके कार्यनिर्वाहक हैं ॥ ३५ ॥ आषाढ़में वरुण नामक सूर्यके साथ वसिष्ठ ऋषि, रम्भा अप्सरा, सहजन्य यक्ष, हूहू गन्धर्व, शुक्र नाग और चित्रस्वन राक्षस अपने-अपने कार्यका निर्वाह करते हैं ॥ ३६ ॥ श्रावण मास इन्द्र नामक सूर्यका कार्यकाल है। उनके साथ विश्वावसु गन्धर्व, श्रोता यक्ष, एलापत्र नाग, अङ्गिरा ऋषि, प्रम्लोचा अप्सरा एवं वर्य नामक राक्षस अपने कार्यका सम्पादन करते हैं ॥ ३७ ॥ भाद्रपदके सूर्यका नाम है विवस्वान्। उनके साथ उग्रसेन गन्धर्व, व्याघ्र राक्षस, आसारण यक्ष, भृगु ऋषि, अनुम्लोचा अप्सरा और शङ्खपाल नाग रहते हैं ॥ ३८ ॥ शौनकजी ! माघ मासमें पूषा नामके सूर्य रहते हैं। उनके साथ धनञ्जय नाग, वात राक्षस, सुषेण गन्धर्व, सुरुचि यक्ष, घृताची अप्सरा और गौतम ऋषि रहते हैं ॥ ३९ ॥ फाल्गुन मासका कार्यकाल पर्जन्य नामक सूर्यका है। उनके साथ क्रतु यक्ष, वर्चा राक्षस, भरद्वाज ऋषि, सेनजित् अप्सरा, विश्व गन्धर्व और ऐरावत सर्प रहते हैं ॥ ४० ॥ मार्गशीर्ष मासमें सूर्यका नाम होता है अंशु। उनके साथ कश्यप ऋषि, ताक्ष्1र्य यक्ष, ऋतसेन गन्धर्व, उर्वशी अप्सरा, विद्युच्छत्रु राक्षस और महाशङ्ख नाग रहते हैं ॥ ४१ ॥ पौष मासमें भग नामक सूर्यके साथ स्फूर्ज राक्षस, अरिष्टनेमि गन्धर्व, ऊर्ण यक्ष, आयु ऋषि, पूर्वचित्ति अप्सरा और कर्कोटक नाग रहते हैं ॥ ४२ ॥ आश्विन मासमें त्वष्टा सूर्य, जमदग्रि ऋषि, कम्बल नाग, तिलोत्तमा अप्सरा, ब्रह्मापेत राक्षस, शतजित् यक्ष और धृतराष्ट्र गन्धर्वका कार्यकाल है ॥ ४३ ॥ तथा कार्तिकमें विष्णु नामक सूर्यके साथ अश्वतर नाग, रम्भा अप्सरा, सूर्यवर्चा गन्धर्व, सत्यजित् यक्ष, विश्वामित्र ऋषि और मखापेत राक्षस अपना-अपना कार्य सम्पन्न करते हैं ॥ ४४ ॥

शौनकजी ! वे सब सूर्यरूप भगवान्‌की विभूतियाँ हैं। जो लोग इनका प्रतिदिन प्रात:काल और सायङ्काल स्मरण करते हैं, उनके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं ॥ ४५ ॥ ये सूर्यदेव अपने छ: गणोंके साथ बारहों महीने सर्वत्र विचरते रहते हैं और इस लोक तथा परलोकमें विवेकबुद्धिका विस्तार करते हैं ॥ ४६ ॥ सूर्यभगवान्‌के गणोंमें ऋषिलोग तो सूर्यसम्बन्धी ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेदके मन्त्रोंद्वारा उनकी स्तुति करते हैं और गंधर्व उनके सुयशका गान करते रहते हैं। अप्सराएँ आगे-आगे नृत्य करती चलती हैं ॥ ४७ ॥ नागगण रस्सीकी तरह उनके रथको कसे रहते हैं। यक्षगण रथका साज सजाते हैं और बलवान् राक्षस उसे पीछेसे ढकेलते हैं ॥ ४८ ॥ इनके सिवा वालखिल्य नामके साठ हजार निर्मलस्वभाव ब्रहमर्षि सूर्यकी ओर मुँह करके उनके आगे-आगे स्तुतिपाठ करते चलते हैं ॥ ४९ ॥ इस प्रकार अनादि, अनन्त, अजन्मा भगवान्‌ श्रीहरि ही कल्प-कल्पमें अपने स्वरूपका विभाग करके लोकोंका पालन-पोषण करते-रहते हैं ॥ ५० ॥

 

इति श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां

द्वादशस्कन्धे आदित्यव्यूहविवरणं नामैकादशोऽध्यायः

 

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से



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