अगर आप सुगमता से भगवत्प्राप्ति चाहते हैं तो मेरी प्रार्थना है कि आप ‘मैं भगवान् का हूँ’‒-यह मान लें । यह ‘चुप साधन’ अथवा ‘मूक सत्संग’ से भी बढ़िया साधन है ! जैसे आपके घर की कन्या विवाह होने पर ‘मैं ससुराल की हूँ’‒यह मान लेती है, ऐसे आप ‘मैं भगवान् का हूँ’‒यह मान लें । यह सबसे सुगम और सबसे बढ़िया साधन है । इसको भगवान् ने सबसे अधिक गोपनीय साधन कहा है‒‘सर्वगुह्यतमम्’ (गीता १८ । ६४) । गीताभर में यह ‘सर्वगुह्यतमम्’ पद एक ही बार आया है । मैं हाथ जोड़कर प्रेम से कहता हूँ कि मेरी जानकारी में यह सबसे बढ़िया साधन है ।
आप जहाँ हैं, वहाँ ही अपने को भगवान् का मान लो । चिन्ता बिल्कुल छोड़ दो । जो हमारा मालिक है, वह चिन्ता करे, मैं चिन्ता क्यों करूँ ?
चिन्ता दीनदयाल को, मो मन सदा आनन्द ।
जायो सो प्रतिपालसी, रामदास गोबिन्द ॥
वास्तव में आप बिल्कुल भगवान् के ही हैं, पर आपने मान रखा है कि मैं अमुक देश, गाँव, मोहल्ले, घर आदि का हूँ । यह देश, गाँव, मोहल्ला, घर आपका नहीं है । आप यहाँ आये हो । इसलिये मेरी सम्मति यही है कि आप आज से ही यह स्वीकार कर लो कि ‘मैं भगवान् का हूँ’ । हर समय भगवान् के ही होकर रहो । भजन करो तो भगवान् के होकर भजन करो । संसार के होकर भजन करते हो तो वह भजन बढ़िया नहीं होता ।
.........गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित ‘बिन्दुमें सिन्धु’ पुस्तक से
Jai Shrihari
जवाब देंहटाएंNarayan narayan narayan
जवाब देंहटाएंकोटि कोटि प्रणाम गुरुदेव
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