शुक्रवार, 20 जनवरी 2023

सन्त-वाणी

|| श्रीहरि: ||

आपने भगवान्‌ के होते हुए भी अपने को भगवान्‌ का नहीं माना और संसार के नहीं होते हुए भी अपने को संसारका मान लिया, यह बहुत बड़ी भूल है । आप संसार का काम करो, पर भगवान्‌ के होकर करो । आप किसी बैंक, रेलवे, फैक्टरी आदि में काम करते हैं तो उसी के कर्मचारी कहलाने पर भी क्या आप पिता के नहीं होते ? क्या आप पिता को छोड़कर कर्मचारी होते हो ? इसी तरह आप संसारका कोई भी काम करो, अपनेको भगवान्‌ का मानते हुए ही करो । आप कैसे ही हों, हो भगवान्‌ के ही । भगवान् हमारे परमपिता हैं‒यह आप अभी-अभी स्वीकार कर लो । हम साक्षात् भगवान्‌ के बेटा-बेटी हैं । यह कोई नयी बात नहीं है । आप सदासे ही भगवान्‌के हो‒‘ईस्वर अंश जीव अबिनासी’ (मानस, उत्तर॰ ११७ । १) । भगवान् भी कहते हैं‒‘ममैवांशो जीवलोके’ (गीता १५ । ७) ‘सब मम प्रिय सब मम उपजाए’ (मानस, उत्तर॰ ८६ । २) । भगवान्‌ को आप चाहे जैसे मान लो, वे वैसे ही हैं, पर आप के भीतर सन्देह नहीं रहना चाहिये ।

अगर आप अपना कल्याण चाहते हो तो अपना सम्बन्ध भगवान्‌ से मानो और अपना समय भगवान्‌ को दो । समय देनेका तात्पर्य है‒हरेक काम भगवान्‌ के लिये करो ।

कोई पूछे कि आप कौन हो, तो आपके भीतर सबसे पहले यह बात आनी चाहिये कि मैं भगवान्‌ का हूँ । मैं भगवान्‌का हूँ‒यह घरके भीतर गड़ा हुआ धन है, जिसको न जानने के कारण आप गरीब होकर दुःख पा रहे हैं !
    
-----गीताप्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित ‘बिन्दु में सिन्धु’ पुस्तक से


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